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झारखण्ड राज्य से जे.एम रंगीला ने झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि ईस्ट सेंट्रल रेलवे के गोमो-बरकाखाना रेल खंड में भंडारीदह स्टेशन उपस्थित है, जो बोकारो ज़िला के चंद्रपुरा अंतर्गत आता है। स्टेशन के पूर्वी केबिन से सटकर रेलवे संपर्क गेट बनाया गया है। इस गेट से पहाड़ी ऊपर बिशु पहाड़ी सड़क बना हुआ है। यह सड़क बेरमो प्रखंड,चंद्रपुरा प्रखंड तथा नावाडीह प्रखंड को जोड़ता है। भंडारीदह बिशु घाटी सड़क मार्ग से हज़ारों की संख्या में वाहन व दर्जनों गाँव के राहगीर प्रतिदिन आवागमन करते है। स्टेशन के पश्चिम दिशा स्थित सीसीएल की एसडीओसीएम परियोजना का रेलवे साइडिंग है। जहाँ कोयला की ढुलाई मालगाड़ी द्वारा अन्य प्रदेशों में की जाती है। कोयला ढुलाई के वास्ते मालगाड़ियों के आवागमन से भंडारीदह का रेलवे गेट प्राय बंद रहता है। वर्षों से इस इलाक़े की जनता द्वारा भंडारीदह में एक ओवरब्रिज बनाने की माँग की जा रही है। परन्तु धनबाद डिवीज़न रेल प्रबंधक इस माँग पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे है। झारखण्ड सरकार के शिक्षा ,उत्पाद एवं मध्य निषेद मंत्री जगरनाथ महतो ने भी रेल मंत्रालय भारत सरकार को पत्र के माध्यम से ओवरब्रिज बनवाने की माँग की है। डेढ़ दशक के अधिक समय से इस क्षेत्र की जनता ,सामाजिक कार्यकर्ताओं,राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा ज्ञापन,धरना प्रदर्शन आदि के माध्यम से ओवरब्रिज बनवाने की माँग की जाती रही है।किन्तु ओवरब्रिज बनवाने की माँग आज तक अधूरी पड़ी हुई है।

झारखंड राज्य के बोकारो जिला के नावाडीह प्रखंड से जे.एम रंगीला,झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि बोकारो जिला के गोमिया प्रखंड के आदिवासी बहुल पंचायत सियारी के गोसेराजस्व गांव के अधीन आने वाले असनापानी गाँव में आजादी के 7 दशक बाद भी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। मिली सुचना के अनुसार असनापानी झुमरा पहाड़ की तराई में बसा हुआ है। जहाँ संथाली आदिवासी समुदाय के लगभग बीस परिवार के लगभग 150 आबादी निवास करते हैं और यहाँ पीने के लिए पानी नहीं रहने के कारण लोग आज भी नाले का पानी पीने को विवश हैं।इस गाँव में ना ही अबतक बिजली आई है ना ही पेयजल की और ना ही सड़क की व्यवस्था की गई है। झुमरा एक्सॉन प्लांट के तहत सड़क निर्माण का कार्य आरम्भ किया गया था। जो कि अबतक अधूरा पड़ा हुआ है।इससे यह प्रतीत होता है कि जहाँ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधा का अभाव हो वहाँ विद्यालय एवं अस्पताल की कल्पना करना ही एक स्वप्न के जैसा प्रतीत होता है। यदि गाँव में कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाता है तो दस-बारह किलोमीटर दूर डुमरी बिहार में स्वास्थ्य उपकेंद्र है और वहाँ तक जाने के लिए गोमो बरकाखाना रेल लाइन के किनारे रास्ता भी बनाया गया था पर रेल दोहरीकरण के कारण उस रास्ते को बंद कर दिया गया है। इस संबंध में सांसद ने रेल मंत्री के समक्ष नीचे पुल बनाने की मांग रखी है। पर अबतक रेल प्रशासन की ओर से कोई पहल होता नजर नहीं आ रहा है।

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झारखण्ड राज्य के बोकारो जिला से जे एम रंगीला झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि बोकारो जिला के गोमिया प्रखंड में आदिवासी बहुल पंचायत सियारी के अंतर्गत डुमरी राजस्व गावँ में स्थित बिरहोर टंडा में आदिम जनजाति बिरहोर के 26 परिवार निवास करते हैं। जिसकी आबादी 140 के करीब है। विलुप्त होने के कगार पर स्थित इस आदिम जनजाति के अस्तित्व रक्षा एवं विकास के लिए सरकार काफी राशि व्यय करती है। परन्तु धरातल पर अवलोकन करने पर प्रतीत होता है कि सारी की सारी राशि बिचौलिये डकार जाते हैं ,अथवा समाज कल्याण विभाग सही तरिके से खर्च ही नहीं कर पाते हैं । विधुत व विद्यालय की व्यवस्था होने के बावजूद सड़क सम्पर्क पथ का घोर अभाव है। यदि कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाये तो उसे चारपाई पर डुमरी स्टेशन अथवा गोमिया अस्पताल पहुंचाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं होता । पेय जल की व्यवस्था के लिए पेय जल एवं स्वछता विभाग से की गयी है परन्तु नहाने धोने की कोई व्यस्था नहीं है। यदि चरकपनिया नाला को मजबूती के साथ बाँध दिया जाये तो नहाने धोने की मुकमल व्यवस्था अवश्य हो जाएगी। डुमरी में उप स्वस्थ्य केंद्र है जिसमे सप्ताह में एक दिन एनएम रेखा कुमारी आतीं हैं साथ ही डॉक्टर का भी अभाव है । एनएम रेखा कुमारी मात्र खानापूर्ति कर चली जाती हैं। ऐसे में क्या किसी भी मरीज की इलाज संभव है ?रोजगार का कोई साधन नहीं है। कुछ कामों में बिरहोर इतने अच्छे कारीगर है कि कौशल विकास का प्रशिक्षण देकर इन्हे रोजगार मुहैया कराया जा सकता है। पर इस तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है।

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झारखंड राज्य के बोकारो जिला के नावाडीह प्रखंड से जे.एम रंगीला मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि बेरमो कोयलांचल के नाम से विख्यात बेरमो अनुमंडल इलाका जहाँ कोल इण्डिया से संबंधित इकाई सीसीएल के दर्जनों कोयला खदाने ,दुग्धा कोलवाशरी,कलगरी कोलवाशरी,स्वांग कोलवाशरी,कथारा कोलवाशरी सहित दामोदर घाटी निगम की चंद्रपुरा तथा थर्मल इकाई और झारखंड सरकार की तेनूघाट विधुत निगम आदि महत्वपूर्ण सरकारी प्रतिष्ठान स्थापित है। इस वजह से बेरमो कोयलांचल क्षेत्र में दर्जनों ट्रांसपोर्ट कम्पनियाँ है और यहाँ करीब पांच हजार छोटी बड़ी गाड़ियाँ संचालित की जाती है। इन ट्रांसपोर्ट कंपनियों में लगभग बीस हजार के करीब उक्त चालक कार्यरत हैं। पर विडंबना यह है कि इन ट्रांसपोर्ट कंपनियों में कोई भी नियम लागु नहीं है और यहाँ कम्पनियों के मालिकों की मनमानी अधिक चलती है। कार्यरत चालकों के लिए कोई निर्धारित वेतन नहीं है मालिक अपने अनुसार ही कर्मियों को वेतन देते है। ट्रांसपोर्ट कंपनियों में चालक उपचालक को आज तक किसी भी तरह की नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया है। उनके वेतन में भारी अनियमितता बरती जाती है। इसे यह साफ़ झलकता है कि किस तरह से कामगारों के साथ शोषण किया जाता है। एक मिली जानकारी के अनुसार जब कर्मियों ने यूनियन से मिल कर अपनी हक की लड़ाई में खड़े हुए तो उन्हें काम से हटा दिया गया। आश्चर्य जनक बात यह है कि इस क्षेत्र में कोल इण्डिया स्तर के कई यूनियन निवास करते हैं। लेकिन इन नेताओं को ट्रांसपोर्ट के द्वारा प्रतिमाह अच्छी खासी रकम मिलती है। जिससे यह प्रमाणित होता है कि कभी भी ये नेता जनता के हित के लिए कभी खड़ा नहीं होने और ना ही कोई सराहनीये कार्य करेंगे।

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झारखंड राज्य के बोकारो जिला के नावाडीह प्रखंड से निर्मल महतो मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि बेरमो स्टेशन के समीप सार्वजनिक शौचालय का निर्माण हुए करीब पांच वर्ष हो गए हैं लेकिन इसे अब तक चालू नहीं किया गया। जबकि बीसीसीएल वयंकी प्रक्षेत्र के सीएसआर मदसरे बेरमो स्टेशन के समीप एक ही जगह चार कमरे के शौचालय बनाए गए हैं। साथ ही छत पर सिन्टेक भी बैठाए गए हैं। लेकिन उसमे पानी की व्यवस्था नहीं की गई है और ना ही बिजली की सुविधा दी गई है। देखा जाए तो बेरमो स्टेशन के समीप बना हुआ सीसीएल द्वारा निर्मित शौचालय भवन के दस कदम की दुरी पर ही पानी का पाईप लाइन एवं बिजली का पोल लगा है। जिससे दोनों सुविधा शौचालय में किया जा सकता है। इस विषय में पूछे जाने पर संबंधित ठेकेदार एवं अधिकारीयों का कहना है कि शौचालय के समीप जो भी पाइप लाइन लगा है उसमे पानी का प्रेसर नहीं आता है। जिस कारण शौचालय की टंकी में पानी का कनेकशन नहीं हो पाया है। उन्होंने बताया कि पानी की वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए सीसीएल प्रबंधन को आवेदन दे दिया गया है। अतः सीसीएल प्रबंधन जल्द से जल्द इन जरुरी सुविधाओं को मुहैया कराने का कष्ट करें।

झारखंड राज्य के बोकारो जिला के नावाडीह प्रखंड से जे.एम रंगीला मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि बेरमो कोयलांचल से सटे गाँव के निवासियों का वायु प्रदूषण,जल प्रदूषण एवं विस्फोट से होने वाले कम्पन तथा घटते वनों से रूबरू होना नियति बन गया है। जिसका प्रतिकूल असर गाँव के निवासियों पर पड़ता है। परन्तु गाँव वालों को औद्योगिक प्रतिष्ठानों के बे शुमार आय का दस प्रतिशत भी सुविधाएँ हासिल नहीं हो पाती है। वहीँ कोलइंडिया के अनुसंगी इकाई सीसीएल की ढोरी क्षेत्र स्थित, एसडीओसीएम परियोजना के समीप गाँव गुंजडीह,मुंगो,बड़कीबेडा,हेटपेडा,तुरियों,कारीपाली,चपरी एवं मकौली इत्यादि दर्जनों गाँव आते हैं। लेकिन यदि इन गाँवो की तुलना सीसीएल की क्लोनियों से की जाए तो, इण्डिया बनाम भारत की तस्वीर झलकती है। खदानों के लगातार विस्तार से वनों का क्षेत्रफल घनत्व लगातार घटता चला जा रहा है। खदानों के विस्तार के कारण मवेशियों के लिए चारा का अभाव लगातार बढ़ता जा रहा है।कई हरे भरे वनों को नष्ट कर दिया गया लेकिन सीसीएल के अधिकारीयों द्वारा इसकी भरपाई करने की कोशिश अब तक नहीं की गई। सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष पेड़ लगाव,पर्यावरण को स्वछ बनाओं अभियान चलाया तो जाता है लेकिन खदान निर्माण के लिए उन्ही पेड़ो को काट दिया जाता है।सरकार द्वारा सीसीएल अधिकारी एवं वन विभाग के पास पेड़ लगाने के नाम पर करोड़ो रूपए दिए जाते हैं जिसका जमीनी स्तर पर कोई रूप नजर नहीं आता है। परिणामस्वरूप कोयलांचल से सटे गाँव की भूमि बंजर हो गई जिसका कुप्रभाव इस वर्ष देखने को मिला कि बारिश के अभाव में अनेकों खेत में धान की रोपाई नहीं हो सकी। नियमतः उक्त गाँवो को विद्युत,सड़क,पेजल,स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएँ सीसीएल को मुहैया करवाना चाहिए।