कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की स्वीकारोकती के बाद सवाल उठता है, कि भारत की जांच एजेंसियां क्या कर रही थीं? इतनी जल्दबाजी मंजूरी देने के क्या कारण था, क्या उन्होंने किसी दवाब का सामना करना पड़ रहा था, या फिर केवल भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला है। जिसके लिए फार्मा कंपनियां अक्सर कटघरे में रहती हैं? मसला केवल कोविशील्ड का नहीं है, फार्मा कंपनियों को लेकर अक्सर शिकायतें आती रहती हैं, उसके बाद भी जांच एजेंसियां कोई ठोस कारवाई क्यों नहीं करती हैं?

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महाराष्ट्र के जिला नागपुर से आदर्श श्रमिक वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि इस सरकार ने दिव्यांगों के लिए कुछ नहीं किया है

महाराष्ट्र के जिला नागपुर से आदर्श श्रमिक वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि अगर हम सरकार को वोट दे सकते है तो विरोध भी कर सकते है

नेताओं के भाषणों में कोई सच्चाई नहीं होती, वे हमेशा झूठ बोलकर चुनाव जीतते हैं, यह सोचकर कि जनता यहाँ मूर्ख है, वे कुछ भी कहते हैं और किसी पर कुछ भी आरोप लगाते हैं, वे इतिहास के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, वे शिक्षा के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, वे शिक्षित नेता नहीं हैं।कभी भी शिक्षित लोगों को नेता नहीं बनाया गया है। वे ऐसे नेता बनाते हैं है जो उनका काम करते रहे और वे उनके ठेकेदार बनके रहें ।

उत्तरप्रदेश राज्य के पीलीभीत जिला से हमारे श्रोता मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे किसी भी पार्टी का विरोध नहीं करना चाहिए

गुजरात से मुकेश मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे एक बार विवेकानंद ने परमहंस जी से कहा, "आप भूखे हैं, रामकृष्ण।" परमंश ने कहा कि बेटा, मुझे कैंसर है, आप जानते हैं, लेकिन रामकृष्ण परमहंस ने जब बात की तो उन्हें बहुत अच्छा सबक दिया। विवेकानंद जी, अगर आप खाते हैं तो मेरा पेट भर जाता है, मुझे भूख नहीं है, मुझे भगवान की भूख है। तब विवेकानंद को यह समझ में आया। वे एक पूर्ण संत हैं, उन्हें भूख नहीं लगती, इतना बड़ा कैंसर होने के बाद भी उन्हें कभी किसी चीज की कोई इच्छा नहीं थी, इसलिए विवेकानंद उनसे फिर कभी नहीं पूछते थे कि परमहंस जी, आप भूखे हैं क्योंकि उन्होंने उनसे वादा किया था कि अगर आप खा रहे हैं, तो समझें कि मैं खा रहा हूं, तो यह हमारा भी प्रयास होना चाहिए।

गुजरात के अहमदाबाद से मुकेश मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे मोबाइल वाणी के कार्यक्रम अच्छा लगता है

महाराष्ट्र के नागपुर से आदर्श मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि देश में जो कुछ भी बनाया जा रहा है, उसमें दो चीजें शामिल होनी चाहिए, पहला, मजदूर और दूसरा, लोगों का पैसा। सरकार लोगों के पैसे से सब कुछ बना रही है, चाहे वह राम मंदिर हो। लेकिन एक बड़े मंच पर बैठे मंत्री को वहाँ आमंत्रित नहीं किया गया था चाहे देश के राष्ट्रपति हों या उच्च पदों पर आसीन लोग, वे केवल विपक्षी दलों को आश्वासन दे रहे हैं ताकि राम राज्य की राजनीति आगे बढ़े और हिंसा और शांति का निर्माण हो। कौन कहता है कि सरकार मज़दूर को पैसे देती है, मज़दूर मेहनत कर रहा है, इसलिए उन्हें पैसे मिलने चाहिए। सरकार के भीतर काम करने वाली कंपनियां श्रमिकों के पैसे खाती हैं, श्रमिकों को पैसा नहीं मिलता है, श्रमिकों को दबाने का काम किया जाता है।

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