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दिल्ली फरीदाबाद से सतीश साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि वे अठाइस दिनों के बाद जब काम पर गए तो कंपनी मालिक ने उन्हें बकाया राशि देने से इंकार कर दिया और इसके अतिरिक्त कुछ पैसे चुकाने की बात कर रहे हैं। इस कारण वे बहुत परेशान है।
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बिहार के रहने वाले आज़ाद कुमार ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि वो दिल्ली एनसीआर के फरीदाबाद स्थित बलभगढ़ शहर में फँसे हुए है। उन्हें किरायदार मकान से निकाल दिए है। उनके पास खाने के लिए पैसे नहीं है।
दिल्ली एनसीआर के फ़रीदाबाद के वार्ड नंबर 23 से सुधीर सिंह ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि वो रादनिक एक्सपोर्ट में सात साल तक कार्य किये थे। वहां कमिटी की हेड मैडम उनका पैसा रोक कर रखी हुई हैं। माँगने पर केवल धमकी ही दी जाती हैं। पुलिस द्वारा भी कोई सहायता नहीं मिलती हैं। पैसे भी सही से नहीं मिलता हैं। दूसरी कंपनी में कार्य करते हुए ग्यारह महीनें हो गए लेकिन अभी तक परमानेंट नहीं किया गया और पैसा भी नहीं मिल रहा हैं।
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हरियाणा राज्य के फरीदाबाद जिले से समर चौधरी साझा मंच के माध्यम से शायरी प्रस्तुत कर रहे है
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मनोहर लाल कश्यप साझा मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि साझा मंच के माध्यम से कई जानकारी प्राप्त हुई ,कार्यक्रम के माध्यम से किसी भी समस्याओं का समाधान की जानकारी दी जाती है। इसी तरह साझा मंच कार्य करता रहे
Feb. 24, 2019, 3:44 p.m. | Tags: personal expressions acknowledgement
दिल्ली एनसीआर फरीदाबाद से बहादुर सिंह साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं, कि सरकार द्वारा जारी किया गया 2019 अंतरिम बजट गरीब जनता एवं निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों के लिए अधिक लाभकारी नहीं है। यह बजट मध्यम वर्ग के लोगों के लिए ही लाभदायक है। जिस प्रकार सरकार द्वारा किसानों को प्रतिदिन 17 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से दिए जाने की घोषणा की गई है, इससे किसानों को कितना लाभ मिलेगा। साथ ही ढाई लाख रूपए इनकम टेक्स के रूप में जमा करना था उसे पांच लाख रुपया कर दिया गया है। कई बार यह देखा जाता है की प्राइवेट सेक्टर में जो मजदुर कार्य करते हैं, उनके लिए कम्पनी के द्वारा कार्ड बना कर ठेकेदार मंडल में रख दिया जाता है। दोबारा छः माह बाद कार्ड को रेनुवल करवा कर जॉइनिंग दिखा दिया जाता है। साथ ही चार से छः माह बाद मजदुरों को वेतन दिया जाता है। ऐसी स्थिति में मजदूरों को क्या करना चाहिए।
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सवाल बजट का है। तो ये सवाल कुछ यूँ है कि थाली से रोटी गायब है और हम सलाद की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे हों। यहाँ न्यूनतम् वेतन नहीं मिल रहा है, चाहे वह मज़दूर हो या खेतिहर मज़दूर। 17 रुपये हों या 1700 अगर मिलेंगे भी तो ज़मींदार किसान को, भूमिहीन खेतिहर मज़दूर को नहीं।मज़दूरों की असंगठन और डर की वजह से ठेकेदारी की समस्या नासूर हो चुकी है। मज़दूर लड़ने से परहेज करने लगा है इसलिए व्यवस्था मे बैठे लोग सरेआम कानून की धज्जियाँ उड़ाते हैं।"रिज्वानिंग की हेराफेरी" एक बड़ी समस्या बन चुकी है।मज़दूरों को इसके खिलाफ़ लेबर आॅफिस मे चिट्ठी लिखनी चाहिए। RTI से उन चिट्ठियों पर जवाब मांगना चाहिए। लेबर कोर्ट मे केस डालना चाहिए। हाईकोर्ट मे रिट डालनी चाहिए। यह सब संगठन बनाने से और आसान हो जाता है।कानून मे ठेकेदारी पर रोक है। "रिज्वानिंग की हेराफेरी" कानूनन निषिद्ध है।
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यदि आपने कंपनी को छुट्टी जाने से पहले छुट्टी के लिए आवेदन पत्र नहीं दिया है तो कंपनी का हक बन जाता है कि वह आपको काम से निकाल दें। रही सैलरी की बात तो हम जाना चाहते हैं कि आपके और कंपनी के बीच में किस प्रकार का संबंध था जैसे कि क्या आप कॉन्ट्रैक्ट में काम करते थे या शिफ्ट में काम करते थे, लेकिन फिर भी 28 दिन की छुट्टी बहुत लंबी है हम सुझाव देते हैं कि आप अपने यूनियन की मदद से अपनी कंपनी में बात करें।
June 4, 2020, 5:55 p.m. | Tags: int-PAJ