महिलाओं को अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी जैसे क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यह भेदभाव उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने से रोकता है। महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, दहेज हत्या और बाल विवाह जैसी हिंसा लैंगिक असमानता का एक भयानक रूप है। यह हिंसा महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाती है और उन्हें डर और असुरक्षा में जीने के लिए मजबूर करती है। लैंगिक असमानता गरीबी और असमानता को बढ़ावा देती है, क्योंकि महिलाएं अक्सर कम वेतन वाली नौकरियों में काम करती हैं और उन्हें भूमि और संपत्ति जैसे संसाधनों तक कम पहुंच होती है। दोस्तों, आप हमें बताइए कि *-----लैंगिक असमानता के मुख्य कारण क्या हैं? *-----आपके अनुसार से लैंगिक समानता को मिटाने के लिए भविष्य में क्या-क्या तरीके अपनाएँ जा सकते हैं? *-----साथ ही, लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए हम व्यक्तिगत रूप से क्या प्रयास कर सकते हैं?

मध्यप्रदेश राज्य के जिला छिंदवाड़ा से हमारे श्रोता , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि इस मतदान के बाद खुशी आए, डिजिटल को भी अपनाया जाए और साथ ही पेंशन भी बढ़ाई जाए। गरीब महिलाओं को और विधवा को राशन भी दिया जाये।

2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।

भारत गंभीर भुखमरी और कुपोषण के से जूझ रहा है इस संबंध में पिछले सालों में अलग-अलग कई रिपोर्टें आई हैं जो भारत की गंभीर स्थिति को बताती है। भारत का यह हाल तब है जब कि देश में सरकार की तरफ से ही राशन मुफ्त या फिर कम दाम पर राशन दिया जाता है। उसके बाद भी भारत गरीबी और भुखमरी के मामले में पिछड़ता ही जा रहा है। ऐसे में सरकारी नीतियों में बदलाव की सख्त जरूरत है ताकि कोई भी बच्चा भूखा न सोए। आखिर बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं।स्तों क्या आपको भी लगता है कि सरकार की नीतियों से देश के चुनिंदा लोग ही फाएदा उठा रहे हैं, क्या आपको भी लगता है कि इन नीतियों में बदलाव की जरूरत है जिससे देश के किसी भी बच्चे को भूखा न सोना पड़े। किसी के व्यक्तिगत लालच पर कहीं तो रोक लगाई जानी चाहिए जिससे किसी की भी मानवीय गरिमा का शोषण न किया जा सके।

मध्य प्रदेश राज्य के छिंदवाड़ा जिला से योगेश गौतम ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया की आज हमारे साथ लोकंतात्रिक समाजवादी पार्टी की महिमा प्रकोष्ठ की प्रदेश अध्यक्ष शिवा श्रीवास्तव ताई के साथ विशेष बातचीत कर जानकारी साझा की। उन्नीस का वास्तविक आंकड़ा सामने नहीं लाया जा रहा है और जनता के सामने नहीं रखा जा रहा है ? वास्तव में , सरकार हमेशा अपनी वास्तविक स्थितियों को छिपाने के लिए कुछ नया लाती है , जैसा कि आपने उल्लेख किया है कि पहला छह हजार आठ सौ पचहत्तर रुपये है , जो कि उसका अपना आंकड़ा है । उनके अनुसार , लेकिन तब से उन्होंने कोई आंकड़ा नहीं दिया है , जबकि कुछ दिन पहले ही नीति आयोग ने देश के गरीबी स्तर के आंकड़े दिए थे। जिसमें लगभग पांच प्रतिशत की कमी आई है। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

पिछले 10 सालों में गेहूं की एमएसपी में महज 800 रुपये की वृद्धि हुई है वहीं धान में 823 रुपये की वृद्धि हुई है। सरकार की तरफ से 24 फसलों को ही एमएसपी में शामिल किया गया है। जबकि इसका बड़ा हिस्सा धान और गेहूं के हिस्से में जाता है, यह हाल तब है जबकि महज कुछ प्रतिशत बड़े किसान ही अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। एक और आंकड़ा है जो इसकी वास्तविक स्थिति को बेहतर ढ़ंग से बंया करत है, 2013-14 में एक आम परिवार की मासिक 6426 रुपये थी, जबकि 2018-19 में यह बढ़कर 10218 रुपये हो गई। उसके बाद से सरकार ने आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिए इससे पता लगाना मुश्किल है कि वास्तवितक स्थिति क्या है। दोस्तों आपको सरकार के दावें कितने सच लगते हैं। क्या आप भी मानते हैं कि देश में गरीबी कम हुई है? क्या आपको अपने आसपास गरीब लोग नहीं दिखते हैं, क्या आपके खुद के घर का खर्च बिना सोचे बिचारे पूरे हो जाते हैं? इन सब सरकारी बातों का सच क्या है बताइये ग्रामवाणी पर अपनी राय को रिकॉर्ड करके

मध्यप्रदेश राज्य के छिंदवाड़ा जिले से सुरभि ,मोबाइल वाणी के माध्यम से बताती है कि अंतरिम बजट पेश किया गया जिसमे वित्त मंत्री ने पिछले 10 सालो में सरकार के दावे बताए। साथ ही कहा कि सरकार ने कई लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। आईसीई की रिपोर्ट के अनुसार 2016 से 2021 के बीच अमीरों की आय 20 प्रतिशत की दर से बढ़ी है तो वही गरीबों ,मिडिल क्लास की आय 20 प्रतिशत की दर से घटी है।इससे पता चलता है कि अमीर अमीर बनता जा रहा है ,गरीब गरीब ही रह रहा है। यही असामनता को दर्शा रहा है। अब सरकारी आंकड़ों पर भरोसा करना मुश्किल हो रहा है।

सरकार का दावा है कि वह 80 करोड़ लोगों को फ्री राशन दे रही है, और उसको अगले पांच साल तक दिये जाने की घोषणा की है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में यह भी दावा किया कि उनकी सरकार की नीतियों के कारण देश के आम लोगों की औसत आय में करीब 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इस दौरान वित्त मंत्री यह बताना भूल गईं की इस दौरान आम जरूरत की वस्तुओं की कीमतों में कितनी बढ़ोत्तरी हुई है।

उद्योगपतियों का मुनाफा बढ़ती दुनिया की गरीबी? हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार बीस तीन सालों में दुनिया के 5 बड़े उद्योगपतियों की संपत्ति में दुगनी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। जिस समय इन अमीरों की दौलत में इजाफा हो रहा था, ठीक उसी समय 5 मिलियन लोग गरीब से और ज्यादा गरीब हो रहे थे। इसमें ज्यादा मजे की बात यह है कि, हाल ही में दौड़ में हुई वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक में सर से पांच उद्योगपतियों ने एक नई रणनीति पर चर्चा की और गठबंधन किया। आज हमारे साथ विदर्भ राज्य आंदोलन समिति चेअध्यक्ष नरेश निमजे सर के साथ मोबाइलवाणी पर विशेष बातचीत कर जानकारी साझा की।