पेड़ पौधों को रक्षा सुत्र बाँध कर पर्यावरण संरक्षण का लिया संकल्प। लोगों से भी पौधारोपण करने की अपील की गई

बिहार राज्य के पूर्वी चम्पारण जिला से राजेश मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बता रहे हैं कि प्रदेशभर में आम के पेड़ों की संख्या में कमी आ रही है। इनमें सबसे अधिक कमी बीजू आम के पेड़ों में आई है। बीजू आम का रकवा पिछले एक दशक में 50 प्रतिशत से भी कम हो गया है। अब भी पूरे प्रदेश में कुल आम का औसत 10 प्रतिशत बीजू आम है। जबकि दस साल पहले कुल आम के उत्पादन का 20 से 25 प्रतिशत बीजू आम का होता था। कृषि वैज्ञानिकों के आकलन के अनुसार 2020-21 में 15 हजार हेक्टेयर में बीजू आम का करीब 150 हजार टन उत्पादन हुआ था, जो कुल आम का दस प्रतिशत था। जबकि एक दशक पहले इसका उत्पादन व क्षेत्रफल अभी से दोगुना अधिक था। आईसीएआर वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार बीजू आम पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अनुमानत अभी 150 हजार टन बीजू आम का उत्पादन होता है। 10 साल पहले यह करीब 300 हजार टन होगा। बिहार जैव विविधता पर्षद भी विलुप्त हो रही बीजू आम की प्रजातियों के संरक्षण व क्षेत्रफल विस्तार का उपाय कर रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिक भी इसपर शोध में लगे हैं।24 जिले में सर्वे कर रहे वैज्ञानिक बीजू आम के सर्वे का कार्य आईसीएआर के वैज्ञानिकों ने शुरू कर दिया है। करीब 24 जिलों में बीजू आम की पहचान की जा रही है। आईसीएआर वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार ने बताया कि बीजू आम की नई वेरायटी तैयार करने में 20 से 25 साल लग जाएंगे। इस कारण अच्छी गुणवत्ता वाले बीजू आम से कलमी पौधा तैयार कर उसकी संख्या में विस्तार किया जायेगा। बताया कि मधुबनी जिले के बिरौल में ऐसे बीजू आम के पेड़ मिले हैं जिसमें एक पेड़ पर करीब 10 क्विंटल आम निकला है। उसी प्रकार मुजफ्फरपुर के मुसहरी में बीजू आम के आकार काफी बड़े देखने को मिले हैं। जबकि अरेराज के संग्रामपुर में ऐसे पेड़ मिले, जिसके आम को कमरे के ताप पर तीस दिनों तक रखा जा सकता है।

दुनिया का तापमान बढ़ रहा है और इससे जलवायु में होता जा रहा परिवर्तन अब मानव जीवन के हर पहलू के लिए ख़तरा बन चुका है। यदि जलवायु परिवर्तन को समय रहते न रोका गया तो लाखों लोग भुखमरी, जल संकट और बाढ़ जैसी विपदाओं का शिकार होंगे। यह संकट पूरी दुनिया को प्रभावित करेगा। आने वाले समय में तापमान इस क़दर बढ़ जाएगा कि मानव जीवन पर संकट आ सकता है, और इन सब प्राकृतिक आपदाओं के फ़लस्वरूप कई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं. मानव समाज के आगे यह एक बड़ी चुनौती है, लेकिन इस चुनौती से निपटने के लिए कुछ संभावित समाधान भी हैं. सुनने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।