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मजदूरों की जान जोखिम में डालने के लिए पहले कंपनी और फिर शासन प्रशाशन है,क्योंकि कंपनी की जुमेदारी होती है कि हमारे वर्क्स नीचे जा रहे है उनकी जिंदगी और मौत का जुमेदारी कंपनी की होनी चाहिए,मजदूरों के भी घर वाले होते है।

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टनल से मजदूरों को बाहर निकालने में लगे 17 दिनों में हर बार की तरह इस बार भी नेताओं से लेकर मीडिया का भारी जमावड़ा आखिरी दिन तक लगा रहा, जो हर संभव तरीके से वहां की पल पल की जानकारी साझा कर रहे था। इन 17 दिनों में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो गए, क्रिकेट विश्वकप का आयोजन हो गया,

48000 जॉब कार्ड धारकों के खातों में नहीं जुड़े आधार

उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे मजदूरों के लिए सकुशल वापसी के लिए की गई प्रार्थना

रसोइयों के मानदेय को मिले और दो करोड़ परिषदीय विद्यालयों में तैनात 10250 रसोइयों को 2 करोड़ का बजट और जारी कर दिया गया

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