*अलाभित समूह/दुर्लभ वर्ग के बच्चों के लिए निजी स्कूलों में नामांकन के लिए ऑनलाइन आवेदन एवं लॉटरी की प्रक्रिया प्रारंभ* *कछौना, हरदोई।* शैक्षिक सत्र 2024-25 में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब और इलाहाबाद समूह के बच्चों के पड़ोस के निजी स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं में प्रवेश के लिए बेसिक शिक्षा विभाग ने समय सारणी तय कर दी हैं। इच्छुक अभिभावक आवेदन ऑनलाइन करके अपने ब्लॉक संसाधन केंद्र पर जमा कर सकते हैं। बताते चलें निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 12(1)ग के अंतर्गत 3 वर्ष से लेकर 7 वर्ष के आयु तक के अलाभित समूह एवं दुर्लभ वर्ग के बच्चों को जनपद सहित ग्रामीण क्षेत्र में संचालित मान्यता प्राप्त निजी विद्यालय की पूर्व प्राथमिक एवं कक्षा एक मे निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती हैं। जिसकी फीस प्रतिपूर्ति शासन द्वारा विद्यालयों को उपलब्ध कराई जाती है। वर्तमान सत्र 2024 में योजना का लाभ, प्रवेश लेने हेतु ऑनलाइन आवेदन, पोर्टल के माध्यम से चार चरणों में तिथिवार कराये जा सकते हैं। बच्चों में स्कूल का आवंटन जिला स्तर पर केंद्रीय युक्त लाटरी के आधार पर किया जाएगा। प्रवेश प्रक्रिया चार चरणों में संचालित की जाएगी। प्रथम चरण 20 जनवरी से 18 फरवरी तक, द्वितीय एक मार्च से 30 मार्च तक, तृतीय चरण 15 अप्रैल से 8 मई तक, चतुर्थ चरण एक जून से 20 जून तक होगा। लॉटरी निकालने की तिथिवार प्रवेश कराया जाएगा। वार्षिक आय आवेदक की एक लाख तक का प्रमाण पत्र मान्य होगा। निवास हेतु आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, बैंक पासबुक, मतदाता पहचान पत्र आदि में से कोई एक होना अनिवार्य है। शासनादेश एवं आवेदन पत्र का प्रारूप आरटीआई 25 की वेबसाइट www.ete25.upsdc.gov.in पर उपलब्ध है। जन मानस की समस्याओं के निस्तारण हेतु हेल्पलाइन नंबर 05852-232598 पर काल सकते हैं। आवेदन के उपरांत अपलोड किए गए पत्राजांच की एक प्रमाणित प्रति आवेदन पत्र के साथ संलग्न कर संबंधित विकासखंड के खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय में जमा करना अनिवार्य होगा।

बेनीगंज/हरदोई_कस्बे के साथ ही आसपास क्षेत्र में इन दिनों कबाड़ बीनते नौनिहालों को देखा जा सकता है। सीखने की उम्र में यह बच्चे दुकानों पर कमर तोड़ मेहनत कर किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में जुटे हुए हैं। बताते हैं कि शिक्षा का अधिकार कानून वर्ष 2009 से लागू है। यह अधिकार कई साल से कानून के रूप में लागू होने के बावजूद भी फाइलों से निकलकर हकीकत में लागू नहीं हो पा रहा है। कानून का विधिवत रूप से अनुपालन न होने के कारण अब भी बेनीगंज क्षेत्र में छह से 14 वर्ष तक के बच्चे स्कूल जाने की जगह दो वक्त की रोजी रोटी की जुगाड़ में सुबह से स्कूल बैग लेने के स्थान पर कबाड़ बीनने एवं कबाड़ को एकत्र कर कबाड़ की दुकानों पर पहुंचाकर पैसा कमाने के लिए निकल पड़ते हैं। छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में कापी, किताब कलम की जगह कबाड़ से भरी बोरी देख बाल मजदूरी को रोकने का सपना भी अधूरा दिखता है। स्थिति यह है कि सैकड़ों बच्चों का बचपन सफेद आग में झुलस रहा है। तमाम प्रकार की दुकानों सहित अन्य जगहों पर इन बाल मजदूरों को काम , करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। बावजूद इसके इस पर रोक लगाने में श्रम विभाग अनजान बना हुआ है। शासन प्रशासन की उदासीनता से इनका बचपन खो रहा है। इनके पेट की आग के आगे सब नियम कानून दम तोड़ रहे हैं। इनका भविष्य संवारने के लिए सरकार के प्रयास के साथ-साथ ऐसे लोगों का सामाजिक विरोध भी किए जाने की जरुरत है। रोजाना गुलाबी फाइलों को उलटने पलटने वाले जिम्मेदार कहते हैं कि शिकायत मिलने पर जांच कर कार्रवाई की जाएगी। अभियान चलाकर बच्चों को दुकानों से मुक्त कराकर स्कूलों में नामांकन कराया जाएगा और उनके अभिभावकों को इसके लिए प्रेरित भी किया जाएगा। जबकि स्थानीय शिक्षा विभाग का संचालन करने वाले रोजाना बंद गाड़ियों में बैठकर फर्राटा भरते हुए सड़कों से निकल जाते हैं जिन्हें यह तक दिखाई नहीं देता कि नौनिहाल कबाड़ की दुकान पर फेंकी हुई चप्पलों के तलवों को घंटों तोड़कर बेंचने का काम कर रहे हैं।

सरकार हर बार लड़कियों को शिक्षा में प्रोत्साहित करने के लिए अलग-अलग योजनाएं लाती है, लेकिन सच्चाई यही है कि इन योजनाओं से बड़ी संख्या में लड़कियां दूर रह जाती हैं। कई बार लड़कियाँ इस प्रोत्साहन से स्कूल की दहलीज़ तक तो पहुंच जाती है लेकिन पढ़ाई पूरी कर पाना उनके लिए किसी जंग से कम नहीं होती क्योंकि लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने और पढ़ाई करने के लिए खुद अपनी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है। लड़कियों के सपनों के बीच बहुत सारी मुश्किलें है जो सामाजिक- सांस्कृतिक ,आर्थिक एवं अन्य कारकों से बहुत गहरे से जुड़ा हुआ हैं . लेकिन जब हम गाँव की लड़कियों और साथ ही, जब जातिगत विश्लेषण करेंगें तो ग्रामीण क्षेत्रों की दलित-मज़दूर परिवारों से आने वाली लड़कियों की भागीदारी न के बराबर पाएंगे। तब तक आप हमें बताइए कि * -------आपके गाँव में या समाज में लड़कियों की शिक्षा की स्थिति क्या है ? * -------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने की होड़ बाकी है ? * -------साथ ही लड़कियाँ को आगे पढ़ाने और उन्हें बढ़ाने को लेकर हमे किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ?

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