उत्तरप्रदेश राज्य के गोंडा जिला से माधुरी श्रीवास्तव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही है कि मध्य प्रदेश में एक हजार नौ सौ सत्ताईस और उन्नीस सौ उनतीस में महिलाओं का मतदान करने में क्या योगदान है। बिहार और ओडिशा प्रांतों में मताधिकार हासिल किया गया था। उन्नीस सौ बिस के दशक के अंत में, भारत के लगभग सभी प्रांतों में मताधिकार का विस्तार किया गया था। संपत्ति की योग्यता के कारण देश के एक प्रतिशत से भी कम हिस्से को मताधिकार दिया गया था। महिलाएँ मतदान कर सकती थीं। शुद्ध आदर्श प्रकार का मतदान और विचार-विमर्श दिन के अंत में मतदान शक्ति के वितरित शेयरों के आधार पर निर्णय लेने का एक तरीका है। मतों की गणना की जाती है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस गणितीय सीमा का उपयोग किया जाता है बहुमत नियम एक निर्णय में परिणाम देता है।

उत्तरप्रदेश राज्य के गोंडा जिला से सायरा बानो मोबाइल वाणी के माध्यम से मतदान जारूकता गीत सुना रही हैं

किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें

उत्तरप्रदेश राज्य के गोण्डा जिला से संदीप मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि लोकसभा चुनाव होने वाले हैं सभी को अपना वोट जरूर देना चाहिए

नमस्कार, मैं माधुरी श्रीवास्तव हूँ। आज हम गोंडा मोबाइल वाणी से बात करेंगे कि मतदान करना कितना महत्वपूर्ण है। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम सभी मतदान करें। मतदान करने की शक्ति हमारे संविधान से आती है और यह प्रत्येक भारतीय नागरिक का संवैधानिक अधिकार है। कोई भी हमें अलग नहीं कर सकता। सभी को मतदान करना चाहिए। महत्वपूर्ण आदेश में कहा गया है कि चुनावों में मतदान का अधिकार संविधान के अनुच्छेद उन्नीस के तहत मतदाताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है। आपराधिक इतिहास के बारे में जानने के मतदाता के अधिकार के बारे में एक निर्णय में, यह टिप्पणी प्रदान करता है कि अधिकार चुनाव के मामले में मतदान से संबंधित है क्योंकि मतदाता अपना वोट डालता है। --- - --- - --- -

उत्तरप्रदेश राज्य के गोंडा जिला से सायरा बानो मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि मोबाइल वाणी पर चल रहे कार्यक्रम पक्ष विपक्ष के द्वारा चुनाव के बारे में जानकारी मिलती है। इस कार्यक्रम के द्वारा वोट सम्बंधित सभी तरह की जानकारी मिलती है

दोस्तों, प्रधानमंत्री के पद पर बैठे , किसी भी व्यक्ति से कम से कम इतनी उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि उस पद पर बैठने वाला व्यक्ति पद की गरिमा को बनाए रखेगा। लेकिन कल के भाषण में प्रधानमंत्री ने उसका भी ख्याल नहीं रखा, सबसे बड़ी बात देश के पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ खुले मंच से झूठ बोला। लोकतंत्र में आलोचना सर्वोपरि है वो फिर चाहे काम की हो या व्यक्ति की, सवाल उठता है कि आलोचना करने के लिए झूठ बोलना आवश्यक है क्या? दोस्तों आप प्रधानमंत्री के बयान पर क्या सोचते हैं, क्या आप इस तरह के बयानों से सहमत हैं या असहमत, क्या आपको भी लगता है कि चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाना अनिवार्य है, या फिर आप भी मानते हैं कि कम से कम एक मर्यादा बनाकर रखी जानी चाहिए चाहे चुनाव जीतें या हारें। चुनाव आयोग द्वारा कोई कार्रवाई न करने पर आप क्या सोचते हैं। अपनी राय रिकॉर्ड करें मोबाइलवाणी पर।

2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

हमारी सूखती नदियां, घटता जल स्तर, खत्म होते जंगल और इसी वजह से बदलता मौसम शायद ही कभी चुनाव का मुद्दा बनता है। शायद ही हमारे नागरिकों को इससे फर्क पड़ता है। सोच कर देखिए कि अगर आपके गांव, कस्बे या शहर के नक्शे में से वहां बहने वाली नदी, तालाब, पेड़ हटा दिये जाएं तो वहां क्या बचेगा। क्या वह मरुस्थल नहीं हो जाएगा... जहां जीवन नहीं होता। अगर ऐसा है तो क्यों नहीं नागरिक कभी नदियों-जंगलों को बचाने की कवायद को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते। ऐसे मुद्दे राजनीति का मुद्दा नहीं बनते क्योंकि हम नागरिक इनके प्रति गंभीर नहीं हैं, जी हां, यह नागरिकों का ही धर्म है क्योंकि हमारे इसी समाज से निकले नेता हमारी बात करते हैं।

कोई भी राजनीतिक दल हो उसके प्रमुख लोगों को जेल में डाल देने से समान अवसर कैसे हो गये, या फिर चुनाव के समय किसी भी दल के बैंक खातों को फ्रीज कर देने के बाद कैसी समानता? आसान शब्दों में कहें तो यह अधिनायकवाद है, जहां शासन और सत्ता का हर अंग और कर्तव्य केवल एक व्यक्ति, एक दल, एक विचारधारा, तक सीमित हो जाता है। और उसका समर्थन करने वालों को केवल सत्ता ही सर्वोपरी लगती है। इसको लागू करने वाला दल देश, देशभक्ति के नाम पर सबको एक ही डंडे से हांकता है, और मानता है कि जो वह कर रहा है सही है।