उत्तरप्रदेश राज्य के जिला बलरामपुर से नीलू , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहती है कि सरकार के द्वारा बेटियों की पढ़ाई के लिए अभियान चलाया जा रहा है "बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ" ुस्कोहे कहा कि बेटियों को भी बेटे के बराबर पढ़ाना चाहिए
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उत्तर प्रदेश राज्य के बलरामपुर जिला से नीलम पांडेय ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि 'राजीव की डायरी' कार्यक्रम लड़कियों की शिक्षा और स्कूल में शौचालय की व्यवस्था पर विशेष बल दे रहा है।हमारे देश में सभी को शिक्षा का अधिकार है। सरकार ने सभी को शिक्षा प्रदान करने के लिए कई योजनाएं भी शुरू की हैं ।लड़कियों के सपनों को साकार करने के लिए हमें बहुत सारे सामाजिक बदलाव करने की जरूरत है। हमें अपनी सोच को बदलना होगा ।जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलेंगे , हमारे समाज में लड़कियाँ शिक्षित नहीं हो सकेंगी ।शिक्षा महिलाओं की स्थिति में बड़ा परिवर्तन ला सकती है , लेकिन समाज को लैंगिक रूप से संवेदनशील होने की आवश्यकता है । गरीब और वंचित समूह के बच्चों को पहले ही शिक्षा के सिमित अवसर मिलते हैं ।उसमे भी लड़कियों के लिए और भी कम अवसर मिलते हैं । सरकारी स्तर पर चाहे जितने भी प्रयास किए जाएं , जब तक हम समाज के लोग इसके बारे में मुखर नहीं होंगे , तब तक ऐसी भयावह रिपोर्ट सामने आती रहेंगी
उत्तर प्रदेश राज्य के बलरामपुर जिला से नीलम पांडेय ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि 'राजीव की डायरी' कार्यक्रम किसानों और ग्रामीणों को जागरूक कर रहा है। यह कार्यक्रम शिक्षा पर विशेष बल दे रहा है।हमारे देश में सभी को शिक्षा का अधिकार है,लेकिन लड़कियों को इसके लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है ।कई बार घर के काम के बोझ के साथ उन्हें स्कूल बैग का बोझ भी उठाना पड़ता है। कभी लोगों की गंदी नज़रों से बचकर स्कूल जाना पड़ता है। उनके जीवन में कई बाधाएं आती हैं । अगर इन बाधाओं को कम करना है , तो बदलाव करना होगा। जब-तक हम अपने सोच को नही बदलेंगे तब-तक हमारे समाज और देश में लड़कियां शिक्षित नहीं हो पाएंगी।
उत्तर प्रदेश राज्य के बलरामपुर जिला से नीलम पांडेय ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि 'राजीव की डायरी' कार्यक्रम लोगों को बहुत पसंद आया। यह कार्यक्रम शिक्षा पर विशेष बल दे रहा है।हमारे देश में सभी को शिक्षा का अधिकार है,लेकिन लड़कियों को इसके लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है ।कई बार घर के काम के बोझ के साथ स्कूल बैग का बोझ उठाना पड़ता है। कभी लोगों की गंदी नज़रों से बचकर स्कूल जाना पड़ता है। जैसे-तैसे स्कूल पहुंचने के बाद यौन शोषण और भावनात्मक शोषण की अलग चुनौती है । हर दिन उनके धैर्य और साहस की परीक्षा लेती है। ऐसी स्थिति में लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने की ज़िम्मेदारी शासन-प्रशासन के साथ - साथ समाज की भी है ।
उत्तर प्रदेश राज्य के बलरामपुर जिला से प्रियंका सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि शिक्षित लड़कियां जीवन में बहुत कुछ कर सकती है। इसके लिए यह सुनिश्चित करना होगा की लड़कियां स्कूल में सीखें और सुरक्षित महसूस करें। श्रम बाजार में ज्ञान और कौशल प्राप्त करने के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण है
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दोस्तों, भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट से यह पता चला कि वर्तमान में भारत के करीब 6.57 प्रतिशत गांवों में ही वरिष्ठ माध्यमिक कक्षा 11वीं और 12वीं यानी हायर एजुकेशन के लिए स्कूल हैं। देश के केवल 11 प्रतिशत गांवों में ही 9वीं और 10वीं की पढ़ाई के लिए हाई स्कूल हैं। यदि राज्यवार देखें तो आज भी देश के करीब 10 राज्य ऐसे हैं जहां 15 प्रतिशत से अधिक गांवों में कोई स्कूल नहीं है। शिक्षा में समानता का अधिकार बताने वाले देश के आंकड़े वास्तव में कुछ और ही बयान करते हैं और जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति समाज की प्रगति का संकेत देती है, वहीं लड़कियों की लड़कों तुलना में कम संख्या हमारे समाज पर प्रश्न चिह्न भी लगाती है? वासतव में शायद आजाद देश की नारी शिक्षा के लिए अभी भी पूरी तरह से आजाद नहीं है। तब तक आप हमें बताइए कि * ------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने लाइन में खड़ी है ? * ------आपके हिसाब से लड़कियाँ की शिक्षा क्यों नहीं ले पा रहीं है ? लड़कियों की शिक्षा क्यों ज़रूरी है ? * ------साथ ही लड़कियाँ की शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है ?