Transcript Unavailable.

साथियों शहरों में बसावट की रफ़्तार तेज़ी से बढ़ रही है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जो प्रवासी मज़दूर शहर छोड़ कर चले गए थे, वे फिर लौटने लगे हैं। क्योंकि गाँव में स्थिति और ख़राब है। वहाँ न तो मनरेगा का काम है और न ही कोई उद्योग धंधा। साथ ही अगर बीमार पड़े तो उसके लिए अस्पताल तक नहीं हैं। क्या सरकार का यह दायित्व नहीं है कि उन श्रमिकों को रोज़गार दे? साथियों,उद्योग क्षेत्र में काम मिल पाना तो बहुत ही मुश्किल है और साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की गारंटी देने वाली योजना मनरेगा का हाल भी बुरा है। सरकार द्वारा ससमय मजदूरी भुगतान का दावा तो किया जाता है, लेकिन समय पर भुगतान कभी नहीं हो पता है। इससे मजदूरों की परेशानी और भी बढ़ जाती है। साथियों,अब हम आपसे जानना चाहते है कि क्या सरकार बेरोजगारी दूर करने के लिए कोई प्रयास कर रहीं है?क्या आपको लगता है कि सरकार सभी बेरोजगारों को नौकरी देने में सक्षम हो पायेगी ? अगर हाँ तो अब तक रोजगार मुहैया क्यों नही का पा रही है?अपनी बात बताने के लिए दबाएं नंबर तीन का बटन..

बात है दिसम्बर 2007 की। दिल्ली, नोएडा, गुड़गाँव, फरीदाबाद में काम करते जिन मजदूरों पर कानूनी रूप से ई.एस.आई. के प्रावधान लागू होते थे, उन में से 70-75 प्रतिशत पर कम्पनियाँ ईएसआई लागू नहीं करती थी ।जिन मजदूरों को कैजुअल अथवा ठेकेदारों के जरिये रखे जाते थे ,उन में नब्बे प्रतिशत की ई.एस.आई. नहीं होती थी। ऐसे में फैक्ट्री में ज्यादा चोट लगने पर मजदूर को निजी चिकित्सालय ले जाना सामान्य था ।चोट लगने पर मजदूरों को पहचाने से कम्पनी साफ़ माना कर देती थी। साथियों,इसलिये घायल होने पर हो सके तो ई.एस.आई. अस्पताल अवश्य जायें - अगर आपके पास ई.एस.आई. कार्ड नहीं है तो आप कैजुअलटी में भी जा सकते हैं। कम्पनी अगर एक्सीडेन्ट रिपोर्ट भरने से माना करती है तो ई. एस.आई. डाॅक्टर से ज़रूर भरवायें। एक्सीडेन्ट रिपोर्ट की फोटो काॅपी अवश्य लें और उस रिपोर्ट में कम्पनी और ठेकेदार आदि वाली गड़बड़ियों को देखें तथा कर्मचारी राज्य बीमा निगम अधिकारियों को लिखित में शिकायतें करें। ई. एस.आई. डाॅक्टर द्वारा फिटनेस दिये जाने पर फैक्ट्री में ड्युटी के लिये जायें। ड्युटी पर नहीं लेना कानून अनुसार अपराध है। इसकी शिकायत ई.एस.आई. लोकल तथा क्षेत्राीय कार्यालयों में लिखित में तुरन्त करें। कार्यस्थलों की हालात के कारण अनेक पेशेगत बीमारियों की भरमार है, मजदूर बड़े पैमाने पर इन से ग्रस्त होते हैं। साथ ही सेवा निवृति के बाद भी तन और मन के इन पेशेगत रोगों की क्षतिपूर्ति तथा उपचार की जिम्मेदारी कम्पनियों व ई.एस.आई. की होती है। तो साथियों,कैसी लगी आपको आज की यह जानकारी ? अगर आपके पास ई. एस. आई. से सम्बंधित कोई भी शिकायत है तो साझा मंच पर अपनी बात ज़रूर रिकॉर्ड करें अपने फ़ोन में नंबर तीन दबाकर। साथ ही सही जानकारी प्राप्त कर इसके खिलाफ अपना कदम उठाना ना भूलें ।

Transcript Unavailable.

-अनुबंध वार्ता विफल होने के बाद 2,400 से अधिक खनिकों ने हड़ताल की -वॉरियर मेट में कोयला कर्मचारियों की हड़ताल को 2 महीने पूरे हुए

-दो साल के संघर्ष के बाद पेरिस के आईबिस होटल के चैंबरमेड्स ने वेतन वृद्धि की लड़ाई जीती -चरमराई अर्थव्यवस्था और बेरोज़गारी को लेकर ओमान में जारी विरोध प्रदर्शन का चौथा दिन

-यूएस में वॉल्वो ट्रक प्लांट के कर्मचारियों ने समझौते को पुरज़ोर तरीक़े से ख़ारिज किया -अमेरिका के 15 राज्यों में मैकडॉनल्ड कर्मचारी गए हड़ताल पर, समर्थन में आईं बड़ी हस्तियां

-वैश्विक महामारी के दौर में मजदूर विरोधी नीतियों को तेजी से आगे बढ़ाती सरकार -अदालत ने निर्माण श्रमिकों के लिए पेंशन, राहत राशि के भुगतान को समयसीमा निर्धारित की -अमेजॉन अमेरिका में अपने पांच लाख कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाएगी, अमेरिकी राष्ट्रपति डाला था दबाव

Transcript Unavailable.

ग़ुलामी की ज़ंजीरें टूटती जा रही हैं नौकरी के नाम पर नौकर बनाने वाले सरमायेदार अपनी सरकारों को तबाही के दहलीज़ पर ले आएं हैं। बिना काम के काम पैदा करना,दलाल पैदा करना,दलालों के लिए काम पैदा करना,दलालों के नाम पर काम पैदा करना और नौकरी देना कंपनियों और उनकी सरकारों के बस में नहीं रहा। जहाँ दुनियाभर में नौकरियों का बाजा बज गया है वहीं आत्मनिर्भरता शब्द नया झुनझुना लेकर प्रजातांत्रिक बाज़ार में आया है। यह कॉम्पनियों की सरकारों के लिए दलाली,ठेकेदारी,जोड़ीदारी आदि का रास्ता आसान करता है जहां दुनियाभर की सरकारें केवल ठेका देने का विभाग बन गई वहीं आत्मनिर्भरता,वोट निर्भरता बनाये रखने का नया फार्मूला है जो यह बताता है कि प्रजातांत्रिक बाज़ार में निर्भरताओं का संकट गहरा रहा है। जिसको आत्मनिर्भरता के माध्यम से बचाने का प्रयास किया जा रहा है। नौकरी निर्भरता,आत्मनिर्भरता, नेता निर्भरता, कंपनी निर्भरता, आदि पूँजी निर्भरताओं के भिन्न भिन्न रूप हैं जो श्रम संकट जूझ रहे हैं। योजनाओं के चक्रवह में उलझी सरकारें,हम मजदूरों को व्यवस्थाओं में उलझाने में असमर्थ हो गईं हैं? अपने विचार और सवाल हमसे जरूर साझा करें नंबर 3 दबाकर और अगर यह डायरी आपको पसंद आई हैं और दूसरों से साझा करना चाहतें तो दबाएं नंबर 5 शुक्रिया धन्यवाद|