बिहार राज्य के जिला जमुई के गिद्धौर प्रखंड से रुदल पंडित मोबाइल वाणी के माध्यम से हिर्दयानन्द कुमार पंडित से बातचीत कर रहे हैं जिसमें हिर्दयानन्द पंडित जी का कहना है कि ये अमृतसर काम करने जाते हैं तो वहां उनके साथ वहाँ के स्थानीय मजदुर भी काम करते हैं। उन्हें वहाँ बिचौलिये के सहारे काम मिलता है, वहाँ के स्थानीयलोग उस फैक्ट्री में ज्यादा काम नहीं करना पसंद करते, क्यूंकि ज्यादा काम में कम पैसे से काम कराया जाता है। परन्तु प्रवासी लोग उतनी ही मजदूरी में काम कर लेते हैं, क्यूंकि उनके पास वो काम करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं होता। उनकी मज़बूरी होती है काम करना। इसलिए उन्हें वो काम करना पड़ता है। वहां उनके साथ कभी किसी तरह की मुठभेड़ हो जाती है तो आस-पास के लोग थोड़ी बहुत मदद कर देते हैं। रुदल पंडित ने यह भी जानकारी दी कि वहाँ प्रवासी लोगों के साथ किसी भी तरह की कोई लड़ाई नहीं होनी चाहिए इसके लिए सरकार से मदद की आवश्यकता है।
बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौरप्रखंड से रंजन कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से श्रमिकों के बारे में बनाडीह गांव के प्रवासी मजदुर नारायण यादव से बातचीत कर रहे है,जिसमें नारायण जी का कहना है कि ये मुंबई शहर में ऑटो चलाते हैं उनके साथ वहाँ स्थानीय मजदुर भी ऑटो चलाने का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें वहाँ ऑटो उनके मालिक के द्वारा दिया गया है,.साथ ही उन्होंने अपनी परेशानी भी हमारे सामने रखी। जैसे की भाषाओं को सुन कर,उनका जवाब नहीं दे पाना क्यूंकि मुंबई की भाषा उनके अपने गांव से बहुत ही अलग है तो उन्हें समझने में बहुत मुश्किल होती है। उन्होंने बताया कि वहां के स्थानीय लोगो को बहुत कम मात्रा में काम दी जाती है बिहार के लोगों की अपेक्षा। क्यूंकि बिहार के लोग बिना किसी हिचकिचाहट के कम पैसे में ही राजी हो जाते हैं ,जबकि वहाँ के स्थानीय लोग कम पैसे में काम नहीं करना चाहते है। इस वजह से वहां के स्थानीय लोगो को ऑटो नहीं दी जाती है । नारायण जी ने बताया कि उन्हें वहाँ अपनी लड़ाई खुद लड़नी होती है और वहाँ उनका अपना कोई नहीं होता। किसी बात पे बहस होने पर भी वहां उनकी कोई पक्ष नहीं लेता। स्थानीय प्रशासन तक भी वे मजदुर की अपनी बात नहीं पहुंचा पाते।नारायण यादव ने हमे यह भी बताया कि उनका सपना है कि वो काम कर वापस अपने शहर बिहार जाकर अपने बच्चो को पढ़ाना-लिखना चाहते हैं। उनका सपना पूरा करना चाहते हैं।मगर उन्होंने यह भी कहा कि अब तक उनका सपना पूरा नहीं हो पाया है। इस तरह उन्होंने हमारे बिच अपनी बात रखी।
बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से मोबाइल वाणी के माध्यम से संदीप कुमार से श्रमिकों के बारे में बातचीत कर रहे है,जिसमे संदीप जी का कहना है कि ये पंजाब में धागा फैक्ट्री में काम करते है और ये इन्होनें किसी दूसरे के माध्यम से खोजा। उन्होंने यह भी बताया की उन्हें वहाँ के स्थानीय लोगों की बाते समझ नहीं आती, वो उनकी बातें तो सुन लेते पर उन्हें उनका जवाब नहीं दे पाते ,इस तरह से उन लोगो को भाषाओं को लेकर बहुत परेशानी होती है। वहाँ के फैक्ट्री में वहाँ के स्थानीय लोगों को काम नहीं दी जाती क्यूंकि वो कम मजदूरी में ज्यादा काम नहीं करना चाहते। उन्हें पैसे ज्यादा चाहिए होता है साथ ही वे लोग आपस में ही दंगा फ़साद करने लग जाते है। किसी भी मुद्दे पर इस वजह से उन्हें काम नहीं दी जाती। जबकि जो वहाँ काम के सिलसिले में गए हैं उन्हें काम जल्दी मिल जाता है,क्यूंकि ये लोग कम मजदूरी में ज्यादा काम कर लेते है,क्यूंकि ये लोग उसी मकसद से गए हैं। उनका काम करना ही एक लक्ष्य रह जाता है। इसलिए ये मजदुर जैसा भी काम हो स्वीकार लेते है। वहां उनका अपना कोई नहीं होता। उन्हें अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है। उनके दौरान हमें यह भी जानकारी मिली की उन मजदूरों से लगभग चौदह से पंद्रह घंटे काम करवाए जाते है और उन्हें वो काम पूरी सिद्दत से करनी पड़ती है वहाँ उन्हें उनके अनुसार रहना पड़ता है खुद को उनके इशारे पे ढलना पड़ता है।कभी वहाँ किसी भी बात पे विवाद छिड़ जाए तो वहाँ के फैक्ट्री वाले उस बात को फैक्ट्री के अंदर ही दबा कर रख लेते यही। सरकार तक उन मजदूरों की बात पहुंच ही नहीं पाती। इसी दौरान संदीप से पूछा गया की उनके साथ हो रहे दुराचार से कैसे उन्हें या उनके साथी को बचाया जाए तो उन्होंने बताया की सरकार को वैसी ही फैक्ट्रियां अपने शहर में दी जाए, ताकि हम जैसे मजदूरों को बाहर काम करने के लिए नहीं जाना पड़ेगा।
बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से भीम राज मोबाइल वाणी के माध्यम से श्रम के सम्मान के विषय में संतोष कुमार साह से बातचीत कर रहे है,जिसमें संतोष कुमार साह जी का कहना है कि अभी वे मुंबई में रहते हैं और कपड़े की फैक्ट्री में काम करते हैं। वहाँ के स्थानीय लोग भी उस फैक्टरी में काम करते है ।उन लोगों को सीधा मालिक के द्वारा भी काम दिया जाता है परन्तु संतोष ने बताया की उन्हें अपने मालिक के द्वारा काम दिया गया।वहाँ पलायन करते वक़्त से अब तक उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। जैसे भाषा,रहन -सहन ,वहाँ के वातावरण में खुद को ढालना इत्यादि।वहाँ के स्थानीय लोगो को काम मिलने में थोड़ी परेशानी होती है ,परन्तु पलायन किये लोगों को काम आसानी से मिल जाता है , ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि बाहर के लोग कम पैसे में ही काम करने को तैयार रहते है,जबकि वहां के स्थानीय लोग ऐसा नहीं करते है ।अनजान शहर में बाहरी लोगो को किसी भी तरह की परेशानी होती है तो वहाँ के लोग या प्रशासन उनकी किसी भी तरह से मदद नहीं करती। इस वजह से उनकी परेशानी और दुगुनी हो जाती है।
बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से भीम राज मोबाइल वाणी के माध्यम से श्रम के सम्मान के विषय में रतनपुर गांव के प्रभु साहू से बातचीत कर रहे है,जिसमें प्रभु जी का कहना है कि ये अभी कुछ दिन से मुंबई में रह रहे हैं और वहां काम करते हैं। उनके साथ वहाँ के स्थानीय लोग भी काम करते हैं और उन सभी लोगो को मालिक के द्वारा काम मिल जाती है। उन्हें भाषा समझने में भी परेशानी होती है क्यूंकि मुंबई वाले लोग अपनी स्थानीय भाषा प्रयोग करते है। इस वजह से उन्हें भाषा समझने में दिक्कत होती है। वहाँ के स्थानीय लोगों को काम मिलना थोड़ा कठिन होता है,क्यूंकि वे कम पैसे में ज्यादा काम नहीं करना चाहते और बाहर से गए लोग कोई भी काम पकड़ लेते। इसलिए स्थानीय लोगों को काम मिलने में मुश्किल होती है और पलायन लोगों को काम के लिए परेशानी नहीं होती है । इस तरह उन्हें प्रदेश में बहुत सी परेशानी झेलनी पड़ती है।
बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से रंजन कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से श्रम के सम्मान के विषय में बनाडीह गांव के रंजीत कुमार जी से बातचीत कर रहे है,जिसमे रंजीत जी का कहना है कि वे बंगलौर में काम करने जाते हैं और वहां बाहरी लोगों के साथ साथ स्थानीय मजदूर भी काम करने जाते हैं। वे लोग अपने काम के लिए ठेकेदार से बात करते है । उन्हें वहां के वातावरण के साथ-साथ ऐसी बहुत सी परेशानिया उठानी पड़ती है। जैसे : भाषा समझना, वहां के पर्यावरण में खुद को ढालना इत्यादि। अन्य राज्य के ठेकेदार स्थानीय लोगों को काम पर रखने से ज्यादा बिहार के लोगों को रखना पसंद करती है क्योंकि मजदूरी कम मिलती और काम ज्यादा। इसके अलावा अगर उन्हें कोई परेशानी या किसी से कोई बहस छिड़ जाए तो स्थानीय प्रशासन से भी उन्हें किसी भी तरह की कोई सहायता नहीं दी जाती।इस तरह की बहुत सी परेशानी बाहर काम करने गए लोगों को सहना पड़ता है।
बिहार राज्य के जमुई जिला के गिरधौर प्रखंड के बनाडीह गांव से रंजन कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से भरम देव पंडित से बातचीत कर रहे हैं, कि भरम देव पंडित जो की गांव बनाडीह के निवासी हैं और वो कुछ दिन पहले ही दिल्ली गए थे काम करने। वहाँ पर बहुत से लोग काम करने जाते हैं, जैसे - बंगाली , राजस्थानी , मारवाड़ी अनेक जगह के लोग। और वो वहाँ ठेकेदार के माध्यम से काम करते हैं। उन्होंने यह भी बताया की वहाँ उन्हें भाषाओं को लेकर भी बहुत परेशानी होती है उन्हें भाषा समझने में दिक्कत होती है। भरम देव पंडित ने बताया की वहाँ के स्थानीय लोगो को काम कम और मजदूरी ज्यादा दी जाती है।जबकि बाहर से पलायन लोगो से काम ज्यादा और मजदूरी कम दी जाती। उनके साथ भेद भाव की जाती है। इस तरह से बाहर से पलायन लोगों को प्रदेश में ऐसी ही बहुत सी परेशानी उठानी पड़ती है। भरम देव पंडित ने यह भी कहा की किसी बात पे बहस होने पर स्थानीय लोगो के साथ पक्षपात किया जाता है ।
बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड के भौरातांड़ गांव से रंजन जी मोबाइल वाणी के माध्यम से वहां के प्रवासी से बातचीत कर रहे हैं, कि जो गुजरात की घटनाएं हुई हैं वहाँ के निर्देशक, बिहारी के साथ गलत व्यवहार कर रहे हैं काण्ड वहाँ के स्ताहनीय लोग कर रहे और इल्जाम बिहार के लोगों पर डाला जा रहा है।बिहार के लोगों के गरीबी का फ़ायदा उठाया जा रहा है।
बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से रंजन जी मोबाइल वाणी के माध्यम से बनाडीह गांव के महेश कुमार यादव से प्रवासी मजदूरों के बारे में बातचीत कर रहे है। जिसमे महेश जी का कहना है कि गुजरात में उनके रहने की कोई सुविधा नहीं होती है और वो जिस कंपनी में काम करते हैं, वहाँ बारह घंटे काम करने के बाद भी पैसे समय पर नहीं देते हैं ।और एक महीने के पैसे काट लिए आते हैं। उन्होंने यह भी बताया की उनके साथ वहां बहुत भेद भाव किया जाता है। भाषा अलग होते हैं। रहन-सहन में भी असमानता होती है। उन्होंने यह भी कहा की सरकार द्वारा जो भी कल्याणकारी योजनाएं चल रहीं हैं,इन सब का लाभ उन्हें नहीं मिल पता।उनके परेशानी के बारे में उन्होंने कहा कि बिहार के वासी होने के कारण डर-डर कर रहना पड़ता है क्यूंकि वहाँ उनका कोई अपना नहीं होता। यहां तक की सरकार भी उनका साथ नहीं देती। उनके बोल बाले नहीं चलते।उन्हें वहाँ मजदूरी कर रहना पड़ता है। बहुत से ऐसे काम जैसे,पेंट करना,लेबर की तरह मसाला मिलाना,सुई धागा का काम करना। उन्होंने अपने सपने से सम्बंधित जानकारी देते हुए कहा कि उनका सपना था वो काम करेंगे,वापस घर जाकर बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे,पर उनका सपना पूरा नहीं हो पाया।इसके सरकार को वो दोषी ठहराते है क्यूंकि जब बिहार में बाहर के लोग काम करने आते हैं तो उन्हें पूरा मान सम्मान दिया जाता है वैसे ही हमे भी दूसरे जगह मान सम्मान दिया जाए।
बिहार राज्य के गिद्धौर जिले से डब्लू पंडित ,भूत पूर्व प्रमुख श्रवण कुमार से अपनी ख़ास बात चित के दौरान मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहा हैं, की गुजरात में बिहारियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है इस विषय पर बिहार सरकार को भारत सरकार से बात चित करनी चाहिए। और राज्य सरकार।गुजरात सरकार से भी बात करनी चाहिए की ये भारतीय संगी व्यवस्था को ना तोड़ें।न बर्बाद करें वर्ण इससे देश की हानि होगी।उन्होंने यह कहा की जो बिहारी गुजरातसे भाग कर वापस बिहार आते हैं, उनके साथ बेरोजगारी की समस्या, भुखमरी जैसी दिक्कतें होतीं हैं। परन्तु इस पर बिहार सरकार कुछ कदम नई ले रही।उन्होंने यह भी जानकारी दी की शुरू से ही जो बनी हैं वो बिहार और बिहार के लोगों के लिए कुछ नहीं करती। बस अपनी ही रोटी सकती है सरकार। अपने स्वार्थवश ही वो हमेशा से कार्य कर रहे हैं।अगर सरकार ने कोई भी व्यवस्था दी होती तो आज बिहारियों को दूसरे देश में पलायन नहीं करना पड़ता।डब्लू पंडित ने यह भी कहा की जो वापस बिहार लौट आते है उन्हें रोजगार देने के लिए बिहार सरकार के पास कुछ भी नहीं है। इसी कारण वश बिहार के लोग पलायन कर वहां के बेइज्जतों का शिकार बनते हैं।इस पर उन्होंने कहा की बिहार सरकार को उन्हें रोजगार दिलाने के लिए खेती के लिए पहले पानी की व्यवस्था करानी चाहिए तथा उचित मात्रा और उचित मूल्य पर खाद और बीज की मोहिया कराए। और रोजगार के लिए यहाँ उदद्योग बनवाए।उन्होंने यह भी बात राखी की जब से बिहार और झारखं अलग हुए हैं तब से सारे औद्योगिक उदद्योग झारखण्ड राज्य में चले गए जिससे बिहार उद्द्योग के नाम पर शून्य बना पड़ा है।यहां उद्द्योग बनने से ही बिहार का विकास हो सकता है।