-विश्वबैंक ने महामारी में श्रमिकों की मदद के लिए भारत को 50 करोड़ डॉलर ऋण स्वीकृत किया -क्या एक देश एक राशन कार्ड प्रवासी मज़दूरों को राहत दे सकेगा?

-बेरोज़गारी सहायता में कटौती के राज्यों के फ़ैसले से अमेरिकी कर्मचारियों पर संकट -जापान ने साप्ताहिक वर्किंग डे 4 दिन किया

-अनुबंध वार्ता विफल होने के बाद 2,400 से अधिक खनिकों ने हड़ताल की -वॉरियर मेट में कोयला कर्मचारियों की हड़ताल को 2 महीने पूरे हुए

-यूएस में वॉल्वो ट्रक प्लांट के कर्मचारियों ने समझौते को पुरज़ोर तरीक़े से ख़ारिज किया -अमेरिका के 15 राज्यों में मैकडॉनल्ड कर्मचारी गए हड़ताल पर, समर्थन में आईं बड़ी हस्तियां

-काम की स्थिति और शर्तों पर नया कोड : क्या कार्य सप्ताह में चार या छह दिन होने चाहिए? -मारा जा रहा है प्लेटफॉर्म और गिग कर्मियों का हक़

-कामगारों के हितों के मामले में अच्छी रैंकिंग नहीं है अमेरिका की -दक्षिण अफ्रीकाः आर्सेलर प्लांट में तीन श्रमिकों की मौत पर यूनियनों ने जांच की मांग की

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-लारको (LARCO) के निजीकरण के खिलाफ ग्रीक धातुकर्मियों का विरोध: -तुर्की ने 2021 में न्यूनतम वेतन 21.56% बढ़ाया: -श्रम मंत्रालय काम के घंटों में संशोधन करने के लिए उत्सुक है:

लॉकडाउन का खेल ख़त्म हो चुका है और मानवता, मानवता चिल्लाने वाले नेताओं में कमी आयी है। अर्थव्यवस्था को बजाने और मजदूरों को खपाने के लिए वैक्सीन तैयार हो चुकी है। हालांकि चुनावी वैक्सीन,चुनावी रैलियों में आये लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाने में काफ़ी सफल साबित हुई है। आंदोलनों,धरनों और रैलियों का सिलसिला पिछले साल की तरह नये मुददों के साथ फिर से शुरू हो गया है। लाखों की संख्या में किसानों के रूप में बैठी मानवता कॉम्पनियों के मज़दूर बनने को तैयार नहीं हैं| कॉम्पनियाँ की सरकारें इंसान को मज़दूर बनाने में पूरी तरह फेल हो होती जा रही हैं| कोरोना से संक्रमित व्यक्तियों से कहीं ज़्यादा बेरोज़गारों का संक्रमण बढ़ता जा रहा है जो कॉम्पनियों और उनकी सरकारों के लिए बड़ी मुसीबत है और उधर कंपनियों में छटनियों का दौर चालू है बेरोजगारी आन्दोलनों और धरनों का रूप धारण करती जा रही है। जहाँ दुनिया भर की कॉम्पनियों की सरकारें यह मान चुकी हैं कि मजदूरी कराना अब आसान नहीं रहा है दुनिया भर में गिरती अर्थव्यवस्था और बदलते श्रम कानून इस बेचैनी का जीता जागता सबूत हैं| जहां परत दर परत मज़दूरों की निगरानी में खपती पूँजी सरमायेदारों की नींद हराम किये हुए है जिसको हम मज़दूरों की रोती गाती तस्वीरों के ज़रिये छुपाने की कोशिश की जा रही है सख़्त से सख़्त क़ानून बनाने के बाद भी पूंजीवादी व्यवस्थाओं का सिंघासन डामाडोल है| लोगों का व्ययस्थाओं पर बढ़ता गुस्सा और मजदूरों की मेहनत की लूट, कॉम्पनियों और उनकी सरकारों पर भारी पड़ रही है| हाल ही में बैंगलुरु के पास स्थित कोलार जिले के नरसापुरा औधोगिक इलाके में आईफोन कॉम्पनी में काम कर रहें हजारों मजदूरों का गुस्सा फूट पड़ा| मज़दूर साथियों का दावा हैं कि चार महीने से कॉम्पनी मज़दूरों के वेतन में कटौती कर रही थी और शिकायत पर मैनेगमेंट चुप्पी साधे रहा| जिसका नतीजा यह हुआ कि हिंसक प्रदर्शन में कॉम्पनी का 437 करोड़ का नुकसान हो गया है हालांकि नुकसान के आंकड़ों पर अभी मतभेद है| कुछ मज़दूर साथी इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि कॉम्पनियाँ इंसानों को मशीन समझती हैं इनके मालिकों को पैसे के फ़ायदे और नुकसान की ही भाषा समझ आती है| कॉम्पनी का नुकसान होने पर फौरन हिसाब सामने आ गया लेकिन मजदूरों के पैसे का हिसाब सकड़ों साल तक सामने नहीं आता है| न जाने कितनी हीं कॉम्पनियाँ और ठेकेदार हम मजदूरों का कितना पैसा मारकर बैठें हैं जिसका आज तक कोई हिसाब नहीं हैं|

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