किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें

बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से संजीवन ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि सरकार बालिकाओं की शिक्षा पर विशेष जोर दे रही है। इसको ले कर कई योजनाएं भी संचालित कर रही है। इन्ही योजनाओं में से एक है "कन्या उत्थान योजना"।इस योजना के तहत इंटर पास और अविवाहित छात्राओं को सरकार द्वारा पच्चीस हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है।इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए छत्राएं आवेदन कर सकती हैं। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

गिद्धौर प्रखंड में पारा बढ़ने से लोगों को गर्मी सता रही है वहीं इलाके के कई जगहों में जल संकट गहराने लगा है। विस्तार पूर्वक खबर सुनने के लिए ऑडियो क्लिक करें

नासिक में रहने वाली मयूरी धूमल, जो पानी, स्वच्छता और जेंडर के विषय पर काम करती हैं, कहती हैं कि नासिक के त्र्यंबकेश्वर और इगतपुरी तालुका में स्थिति सबसे खराब है। इन गांवों की महिलाओं को पानी के लिए हर साल औसतन 1800 किमी पैदल चला पड़ता है, जबकि हर साल औसतन 22 टन वज़न बोझ अपने सिर पर ढोती हैं। और ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" के नारे से रंगी हुई लॉरी, टेम्पो या ऑटो रिक्शा आज एक आम दृश्य है. पर नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा 2020 में 14 राज्यों में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि योजना ने अपने लक्ष्यों की "प्रभावी और समय पर" निगरानी नहीं की। साल 2017 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में हरियाणा में "धन के हेराफेरी" के भी प्रमाण प्रस्तुत किए। अपनी रिपोर्ट में कहा कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ स्लोगन छपे लैपटॉप बैग और मग खरीदे गए, जिसका प्रावधान ही नहीं था। साल 2016 की एक और रिपोर्ट में पाया गया कि केंद्रीय बजट रिलीज़ में देरी और पंजाब में धन का उपयोग, राज्य में योजना के संभावित प्रभावी कार्यान्वयन से समझौता है।

अधिकांश महिलाएं नामांकन की प्रक्रिया को जटिल और समय लेने वाली बताती हैं, और काम की सीमित उपलब्धता भी मनरेगा में महिलाओं के लिए कठिनाई को लगभग छब्बीस प्रतिशत तक बढ़ाती है। गाँव में ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें मनरेगा में काम करना है, लेकिन वे आवेदन करने में असमर्थ हैं क्योंकि वे आवेदन प्रक्रिया को पूरी तरह से नहीं समझती हैं और अगर गाँव की पच्चीस प्रतिशत महिलाएं काम करने में सक्षम नहीं हैं, विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

महिलाओं की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी और उसके सहारे में परिवारों के आर्थिक हालात सुधारने की तमाम कहानियां हैं जो अलग-अलग संस्थानों में लिखी गई हैं, अब समय की मांग है कि महिलाओं को इस योजना से जोड़ने के लिए इसमें नए कामों को शामिल किया जाए जिससे की ज्यादातर महिलाएं इसका लाभ ले सकें। दोस्तों आपको क्या लगता है कि मनरेगा के जरिए महिलाओँ के जीवन में क्या बदलाव आए हैं। क्या आपको भी लगता है कि और अधिक महिलाओं को इस योजना से जोड़ा जाना चाहिए ?

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

गिधौर मुलवानी से लेकर रतनपुर कुंधूर, पूर्वी गुगुलडीह, सेवा, गंगरा, मौरा, पसंदा पंचायत के दर्जनों गांव, जम्मू लोकसभा क्षेत्र के लिए एनडीए का जनसंपर्क अभियान। भाजपा और एनडीए के उम्मीदवार अरुण भारती ने अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ गिधौर ब्लॉक में रतनपुर पंचायत कुंधूर पंचायत पूर्व गुगुलदी सेवा गंगा पसंद मौरा पंचायत सहित विभिन्न दर्जनों गांवों में एक सार्वजनिक प्रचार अभियान चलाया। विस्तार पूर्व खबर सुनने के लिए ऑडियो क्लिक करें

भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।