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बिहार राज्य के जमुई जिला से विजय कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से जानकारी साझा करते हुए बताते हैं कि हमारे देश में लंबे समय से नौकरी देने का श्रेय भारतीय रेलवे को दिया जाता है।लेकिन कुछ कारणों से पिछले कई सालो से रेलवे में निचले स्तर पर नियुक्तियाँ नहीं हुई थी।जिसका असर साफ़ तौर पर रेलवे के परिचालन और यात्रियों को मिलने वाली सुविधाओं पर देखने को मिल रहा है।इन सारे हालात को देखते हुए रेलवे ने बड़ी संख्या में नौकरियों के लिए आवेदन आमंत्रित किये।लेकिन हमारे देश में रोजगार की कमी को साफ़ देखा जा सकता है कि रेलवे द्वारा निकाली गयी 90 हजार पदों की भर्तियों के लिए अब तक कुल 2 करोड़ 80 लाख आवेदन भरे जा चुकें हैं।इसका मतलब साफ़ है की हर पद के लिए औसतन 311 व्यक्ति दावेदार है।जाहिर है कि इनमे से 310 व्यक्तियों को होड़ से बाहर जाना होगा।असल समस्या तो तब ही शुरू होती है कि ये 310 लोग जायेंगे कहाँ ? एक विकल्प तो यह है की वो दूसरे प्रतियोगिता की होड़ में शामिल हो जायेंगे।लेकिन यह विकल्प हर बेरोजगार युवक के लिए उपलब्ध नहीं होता।हमारा देश दुनिया की सबसे तेज रफ़्तार अर्थव्यवस्था में शामिल होने के बाद भी पर्याप्त मात्रा में रोजगार के अवसर सृजन नहीं कर पा रहा है।

बिहार राज्य के जमुई जिला से विजय कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से जानकारी साझा करते हुए बताते हैं कि हमारे जीवन में जल का होना अनिवार्य है,फिर आज मानव समाज हर बात की अनदेखी कर नदियों में निरंतर कचरा डाल उसे प्रदूषित कर रहा है।जिसके कारण नदियाँ सूखती और सिमटती चली जा रही हैं।जिससे जल और जनजीवन दोनों का ही अस्तित्व खतरे में हैं।सरकार भी नदियों की सफाई पर कोई खासा ध्यान और रूचि नहीं दिखा रही हैं।जिसका परिणाम यह हो रहा है कि अब पशु-पक्षियाँ भी अपने घोंसले और बसेरे छोड़ यहाँ से अन्यत्र पलायन करने लगे हैं।सरकार की स्वच्छ भारत की कल्पना दम तोड़ती नज़र आ रही हैं।वहीं लोग नदियों के अस्तित्व से खिलवाड़ कर रहे हैं।जबकि हमारे जीवन के लिए नदियों और तलाबों का होना बेहद ही जरुरी है।आज हमारा देश पर्यावरण एवं जल संकट से घिरा है ,फिर भी नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए कोई उतरदायित्व लेने को आगे नहीं बढ़ रहा है।

बिहार राज्य के जमुई जिला सिकंदरा प्रखंड से विजय कुमार मोबाइल वाणी के द्वारा कहते हैं कि जल,जंगल और जमीन हमारी धरोहर है।जो हमें प्रकृति द्वारा प्रदत्त है।इसका उपयोग मानव अपनी आवश्यकता अनुसार हमेशा से ही करता रहा है।वर्त्तमान समय में बढ़ती आबादी एवं बढ़ता लालच के कारण प्राकृतिक धरोहर भी अब सीमित मात्रा में बचे हैं।जंगल तो अब बचे ही नहीं हैं,जमीन पर निजी अधिकार हो चूका है।जल और वायु ही अब सिर्फ बचें हैं,जिनका निजीकरण नहीं हो सका है।यही दो चीज़ ऐसे हैं,जिनका प्रयोग लोग अपनी सुविधा अनुसार कर पा रहे हैं।लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि इस आर्थिक उपनिवेशवादी दुनिया में जल और वायु पर भी लोगों का अधिकार हो जाएगा।कई जगहों पर यह देखने को मिल भी रहा है कि जल का व्यवसायीकरण कर के लोग मुनाफा अर्जित करने में लगे हुए हैं।जिसका परिणाम यह हो रहा है कि पीने योग्य जल भी अब प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।प्रकृति के इस धरोहर की सुरक्षा और इसके व्यवसायीकरण पर रोक लगाना सरकार का सबसे प्रमुख कर्तव्य होना चाहिए। इसके साथ ही सरकार को यह भी ध्यान देना चाहिए कि इसका लाभ सभी नागरिकों को आसानी से प्राप्त हो सके।

बिहार राज्य के जमुई जिला से विजय कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते हैं कि जिला में मच्छरों के आंतक से लोग काफी परेशान हैं।समस्या तो यह कि अब ना सिर्फ रात में बल्कि दिन में भी मच्छरों से लोग परेशान रहने लगे हैं।ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में मच्छरों का प्रकोप देखने को मिल रहा है।इनसे बचने के लिए लोग तरह-तरह की अगरबत्ती और लिक्विड का प्रयोग करते नजर आते हैं।किंतु ये सब भी मच्छरों पर बेअसर दिखते हैं,लोगों की मानें तो मच्छर भी इन सब की आदि बन चुके हैं।शाम होते ही मच्छरों का आंतक इतना बढ़ जाता है,कि एक जगह बैठ पाना मुश्किल बात हो गयी है।इतनी समस्या के बावजूद स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम के लोग इस ओर पूर्ण रूप से उदासीनता का रवैया अपनाये हुए हैं।इनके द्वारा मच्छरों से बचने के लिए कोई उपाय नहीं किये जा रहे हैं।जिसके कारण सभी क्षेत्रों के लोग काफी परेशान दिख रहे हैं

बिहार राज्य के जमुई जिला से विजय कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते हैं कि देश में श्रमबल भागीदारी दर में महिलाओं का हिस्सा पिछले तेरह वर्षों के दौरान तेजी से गिरा है। यह कामकाजी उम्र की महिलाओं की कुल संख्या की तुलना में वैसी महिलाओं का अनुपात है, जो पारिश्रमिक पाते हुए रोजगार कर रही हैं। इस अनुपात में आयी गिरावट दरअसल एक अरसे के दौरान आयी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 15 वर्ष से 24 वर्ष की महिलाओं के लिए यह अनुपात 1994 में जहां 35.8 प्रतिशत था, वहीं यह गिरते हुए 2012 तक 20.2 प्रतिशत पर पहुंच गया और उसके बाद भी लगातार इसमें कमी आती ही जा रही है। दूसरी ओर अन्य देशों में यह अनुपात 88 प्रतिशत की ऊंचाई का स्पर्श कर रहा है। गौरतलब यह भी है कि भारत में यह गिरावट महिलाओं के भिन्न-भिन्न उम्रवर्गों के साथ ही पूरे महिला श्रमबल में भी सामने आयी है।

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बिहार राज्य के जमुई जिला के सिकंदरा प्रखंड से ज्योति कुमारी मोबाइल वाणी के माध्यम से अपना विचार साझा करते हुए कहती हैं कि हम अपने प्रतिदिन की दिनचर्या में इतने व्यस्त हो जाते हैं की अपने आस-पास की चीज़ों को नजरअंदाज कर देते हैं।सुबह होते ही लोग अपने काम के लिए तो कुछ काम की तलाश में घरों से निकल पड़ते हैं।हर इंसान अपनी जिंदगी के संघर्ष को लड़ने में ही परेशान है।जैसे भी हमलोग अपनी जिंदगी के पहिये को खींच रहे हैं।दो वक़्त की रोटी के कारण हम जैसे भी अपना चूल्हा तो जला लेते हैं पर उन गरीब असहाय लोगों का क्या जो कुछ भी करने में सक्षम नहीं हैं।जब हम सब घर से निकलते हैं,और हमारी नज़र मानसिक,शारीरिक और आर्थिक रूप से असक्षम लोगों पर पड़ती है,तो हम उनकी मदद करने की जगह उन्हें अनदेखा कर देते हैं।अंत में लाचार हो कर उन्हें कचरे से चुन कर अपना पेट भरना पड़ता है।क्या हम इसे ही मानवता कहते हैं ? हमें अपनी जिंदगी से कुछ समय निकाल कर इनकी खुशियों के लिए भी सोचना और कुछ करना चाहिए

बिहार के जिला सिकंदरा जमुई से विजय कुमार ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि पिछले दिनों तालकटोरा स्टेडियम में छात्रों से परीक्षा पर चर्चा करते हुए माननीय प्रधान मंत्री ने कहा कि मार्क्स जिंदगी नहीं होती ,तथा किसी बच्चे की योग्यता-क्षमता और बुद्धिमत्ता का पैमाना महज अंकों का प्रतिशत नहीं होता ,क्योंकि हर बच्चे के पास अपनी-अपनी प्रतिभा होती है। भीतर छुपी उन्ही क्षमताओं को जगाना चाहिए। प्रधानमंत्री के बातों का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि बोर्ड परीक्षाओं में 95 % से 100 % हासिल करने की अंधी दौड़ मची हुई है। साथ ही 95% से कम अंक पाने वाले छात्र औसत कहलाने लगे हैं। कई बार विद्यार्थी परीक्षा में अपनी उम्मीदों से कम अंक आने पर निराश तथा हताश हो जाते हैं और अपनी जिंदगी दाव पर लगा देते हैं। दुर्भाग्य से हमारे देश में अच्छे अंक लेन की मानसिकता बनी हुई है,जबकि वास्तविकता में ज्ञान का अंकों से कोई खास लेना-देना नहीं होता है।