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कापसहेड़ा से रफ़ी जी बताते हैं कि 71 साल के बाद भी आजादी से पहले की तरह इंसाफ होता है।फर्क सिर्फ इतना है की पहले हम सभी अंग्रेज के कानून के गुलाम थे और आज उस कानून के गुलाम है जो अक्सर अमीरों और फैक्ट्रियों के मालिकों के लिए इंसाफ देता है। जंहा मजदूरों को सिर्फ तारीख मिलती है। एक मजदुर अपने परिवार के साथ गांव को छोड काम की तलाश में दिल्ली आया था। हांथ कट जाने के कारण उनका सारा ख्वाब टूट गया हांथ ना होने की वजह से कोई नौकरी भी हासिल नहीं हुई। बच्चो की परवरिश के खातिर रेवड़ी लगाना शुरू कर दिया। लेकिन आज अतिक्रमण की वजह से यह भी ख़त्म हो गई।
जमुना दास जी साझा मंच के माध्यम से यह कहते हैं कि पीएफ का पैसा ठेकेदार द्वारा जमा नहीं किया जाता है।क्योकि जब इन्होने पीएफ के ऑफिस में जा कर पता किया तो बताया गया की इनका कोई पैसा जमा नहीं किया गया है। श्रम विभाग द्वारा यह जानकारी मजदूरों को दी जाती है कि आप काम करो और काम छोड़ने के बाद आपको पीएफ का पैसा मिल जाएगा। लेकिन यह सब झूठी तसल्ली की बात साबित होती है
गुडगांवा से सुरेश जी बताते हैं कि कुछ दिनों पहले इनके बड़े भाई का बेटा एक हरी पेंटर(हार्ड वेयर शॉप) में काम करता था जंहा मालिक के द्वारा रड से वार करने पर उसका गर्दन टूट गया। हालात गभीर होने पर मालिक उसे धमकी देने लगे
दिल्ली एनसीआर के कापसहेड़ा गाँव से हमारे संवाददाता रफ़ी ने गजेंद्र जी के साथ बातचीत की। इस बातचीत में गजेंद्र जी बताते हैं कि ये एक स्टील फैक्ट्री में काम करने के दौरान अपनी एक ऊँगली गँवा बैठे। सरकार की ओर जो भी सुविधाए मज़दूरों के लिए बनाई जाती है उसका लाभ फैक्ट्री के मालिकों द्वारा मजदूरो को मुहैया कराया जाता है।साथ ही मजदूरों को किस तरह से बेहतर बचाव के साथ काम करना है इसके बारे में ट्रेनिंग नहीं दी जाती है जिसके कारण कई मजदूरों के साथ ऐसा हादसा होता रहता है।
हमारे साथ है रफ़ी जी जो लाल जी के साथ साक्षात्कार ले रहे हैं जिसमे उन्होंने बताया कि एक कंपनी में मजदुर साथी का काम के दौरान हाथ कट गया था और कंपनी के द्वारा इसके लिए न ही कोई मुवावजा दिया और न ही कोई जॉइंनिज लेटर दिया गया है उस मजदुर साथी को। इसके लिए उन्होंने २५ साल तक केस भी लड़ा पर वो भी अब बंद पड़ा हुआ है।