चुनावी रैलियों से कोरोना संक्रमण दूर करने का शोध समाप्त हो गया। प्रजातंत्र में तंत्र को बचाना प्रजा से ज़्यादा ज़रूरी हो गया जबकि मतदान का अधिकार छोड़कर प्रजाओं में कोई सामान्यता नहीं दिखी| कॉम्पनियों में खपने वाले मज़दूर और खपाने वाले पूंजीपतियों में से मज़दूर हमेशा की तरह प्रजातंत्र में प्रजा की ही श्रेणी में नज़र आया आये।

ग़ुलामी की ज़ंजीरें टूटती जा रही हैं नौकरी के नाम पर नौकर बनाने वाले सरमायेदार अपनी सरकारों को तबाही के दहलीज़ पर ले आएं हैं। बिना काम के काम पैदा करना,दलाल पैदा करना,दलालों के लिए काम पैदा करना,दलालों के नाम पर काम पैदा करना और नौकरी देना कंपनियों और उनकी सरकारों के बस में नहीं रहा। जहाँ दुनियाभर में नौकरियों का बाजा बज गया है वहीं आत्मनिर्भरता शब्द नया झुनझुना लेकर प्रजातांत्रिक बाज़ार में आया है। यह कॉम्पनियों की सरकारों के लिए दलाली,ठेकेदारी,जोड़ीदारी आदि का रास्ता आसान करता है जहां दुनियाभर की सरकारें केवल ठेका देने का विभाग बन गई वहीं आत्मनिर्भरता,वोट निर्भरता बनाये रखने का नया फार्मूला है जो यह बताता है कि प्रजातांत्रिक बाज़ार में निर्भरताओं का संकट गहरा रहा है। जिसको आत्मनिर्भरता के माध्यम से बचाने का प्रयास किया जा रहा है। नौकरी निर्भरता,आत्मनिर्भरता, नेता निर्भरता, कंपनी निर्भरता, आदि पूँजी निर्भरताओं के भिन्न भिन्न रूप हैं जो श्रम संकट जूझ रहे हैं। योजनाओं के चक्रवह में उलझी सरकारें,हम मजदूरों को व्यवस्थाओं में उलझाने में असमर्थ हो गईं हैं? अपने विचार और सवाल हमसे जरूर साझा करें नंबर 3 दबाकर और अगर यह डायरी आपको पसंद आई हैं और दूसरों से साझा करना चाहतें तो दबाएं नंबर 5 शुक्रिया धन्यवाद|

लॉकडाउन का खेल ख़त्म हो चुका है और मानवता, मानवता चिल्लाने वाले नेताओं में कमी आयी है। अर्थव्यवस्था को बजाने और मजदूरों को खपाने के लिए वैक्सीन तैयार हो चुकी है। हालांकि चुनावी वैक्सीन,चुनावी रैलियों में आये लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाने में काफ़ी सफल साबित हुई है। आंदोलनों,धरनों और रैलियों का सिलसिला पिछले साल की तरह नये मुददों के साथ फिर से शुरू हो गया है। लाखों की संख्या में किसानों के रूप में बैठी मानवता कॉम्पनियों के मज़दूर बनने को तैयार नहीं हैं| कॉम्पनियाँ की सरकारें इंसान को मज़दूर बनाने में पूरी तरह फेल हो होती जा रही हैं| कोरोना से संक्रमित व्यक्तियों से कहीं ज़्यादा बेरोज़गारों का संक्रमण बढ़ता जा रहा है जो कॉम्पनियों और उनकी सरकारों के लिए बड़ी मुसीबत है और उधर कंपनियों में छटनियों का दौर चालू है बेरोजगारी आन्दोलनों और धरनों का रूप धारण करती जा रही है। जहाँ दुनिया भर की कॉम्पनियों की सरकारें यह मान चुकी हैं कि मजदूरी कराना अब आसान नहीं रहा है दुनिया भर में गिरती अर्थव्यवस्था और बदलते श्रम कानून इस बेचैनी का जीता जागता सबूत हैं| जहां परत दर परत मज़दूरों की निगरानी में खपती पूँजी सरमायेदारों की नींद हराम किये हुए है जिसको हम मज़दूरों की रोती गाती तस्वीरों के ज़रिये छुपाने की कोशिश की जा रही है सख़्त से सख़्त क़ानून बनाने के बाद भी पूंजीवादी व्यवस्थाओं का सिंघासन डामाडोल है| लोगों का व्ययस्थाओं पर बढ़ता गुस्सा और मजदूरों की मेहनत की लूट, कॉम्पनियों और उनकी सरकारों पर भारी पड़ रही है| हाल ही में बैंगलुरु के पास स्थित कोलार जिले के नरसापुरा औधोगिक इलाके में आईफोन कॉम्पनी में काम कर रहें हजारों मजदूरों का गुस्सा फूट पड़ा| मज़दूर साथियों का दावा हैं कि चार महीने से कॉम्पनी मज़दूरों के वेतन में कटौती कर रही थी और शिकायत पर मैनेगमेंट चुप्पी साधे रहा| जिसका नतीजा यह हुआ कि हिंसक प्रदर्शन में कॉम्पनी का 437 करोड़ का नुकसान हो गया है हालांकि नुकसान के आंकड़ों पर अभी मतभेद है| कुछ मज़दूर साथी इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि कॉम्पनियाँ इंसानों को मशीन समझती हैं इनके मालिकों को पैसे के फ़ायदे और नुकसान की ही भाषा समझ आती है| कॉम्पनी का नुकसान होने पर फौरन हिसाब सामने आ गया लेकिन मजदूरों के पैसे का हिसाब सकड़ों साल तक सामने नहीं आता है| न जाने कितनी हीं कॉम्पनियाँ और ठेकेदार हम मजदूरों का कितना पैसा मारकर बैठें हैं जिसका आज तक कोई हिसाब नहीं हैं|

रफ़ी जो अक्सर सबकी परेशानियों,उलझनों और खबरों को लेकर उपस्थित होते रहते हैं। रफ़ी की डायरी कार्यक्रम की पहली कड़ी में रफ़ी अपने अनुभवनो को लेकर आए हैं।इस डायरी में लिखा है, कि मोबाइल वाणी के कामकाज के सिलसिले में रफ़ी की मुलाकात कई तरह के लोगों और घटनाओं से आमने सामने होते रहते हैं। इस दौरान कई ऐसी चीजें देखने को मिलती है। ऐसा क्या मिला था रफ़ी को देखने में। सुनने के लिए इस ऑडियो पर क्लिक करें।

रफ़ी की डायरी कार्यक्रम की कड़ी संख्या 18 में आप सुनेंगे की क्या नियम कानून नेता निति खपते मजदूरों को जीवन की मूल्य सुविधाएं उपलब्ध करा पाएगा खबर को विस्तार पूर्वक सुनने के लिए ऑडियो पर करें क्लिक शुक्रिया,धन्यवाद।

मज़दूरों की दुश्मन तो यह पूरी व्यवस्था है न कि कोई क्षेत्र, न कोई भाषा. मज़दूरों को खटाने के लिए कम्पनियों ने आज मज़दूर को मज़दूर का दुश्मन बना दिया और मज़दूर सस्ते होते ही कंपनियों में बने सामान की कीमत बढ़ जाती हैं और हम मज़दूर बट बट के इनकी सामानों की क़ीमत को बढ़ाते रहते है - क्योंकि इनके माल का कोई क्षेत्र नहीं, कोई भाषा नहीं, कोई राष्ट्र नहीं,कोई मुल्क़ नहीं कुछ है तो सिर्फ़ पैसा क्योंकि माल तैयार करने के लिये मज़दूर मिलना चाहिए। पूरी बातों को जानने के लिए इस ऑडियो पर क्लिक करे.

तमिलनाडु राज्य के इरोड ज़िले की ईस्ट मैन कंपनी के आस-पास शाम रोज़ की तरह सूरज के डूबने का इंतज़ार कर रही थी. अंधेरा उन मज़दूर-बस्तियों को रोशन कर रहा था. मानो दिन भर फैक्ट्रीयों में मेनहत जलती है और फिर शाम का गहरा अँधेरा सिमट आता है। कुछ ही वक़्त गुज़रा था कि मजदूरों की बस्तियों में तकनीक और मोबाइल के माध्यम से मज़दूरों की आवाज़ उठाने वाले कुछ सामुदायिक मीडिया मज़दूर नज़र आने लगे थे और उनके हाथों में कुछ पर्चे थे जिस पर एक मोबाईल नम्बर था। दलाल और ठेकेदारों की नज़र बस्तियों में आने-जाने वाले हर इंसान पर थी। बस्ती की पूरी कहानी को जानने के लिए इस ऑडियो पर क्लिक करें।

रफ़ी की डायरी कार्यक्रम की कड़ी संख्या में आप सुनेंगे की किस तरह कोरोना काल में मजदूरों का काम के खिलाफ़ आन्दोलन खबर को विस्तार पूर्वक सुनने के लिए ऑडियो पर करें क्लिक शुक्रिया,धन्यवाद।

बात कुछ दिनों पहले की है जब एनसीआर में यह आवाज़ बुलंद होने लगी कि एनसीआर का न्यूनतम वेतन समान होना चाहिए तो। इसी एनसीआर के उत्तर प्रदेश के नॉएडा में एक ऐसे ही शख्स से मुलाक़ात हुई, जो अपनी मेहनत को उन मूल्यों में बदलते देख रहा था जिस मुल्क की मिसाल दी जाती है कि उस देश ने इतनी तरक्की कर ली है कि हर इन्सान वहां बहुत सुख है। और ज्यादातर देश के लोग वहां रहना बसना चाहते है। ऐसी क्या खूबी है की मजदुर भाई रहने और बसने को बेबस हैं जानने के लिए इस ऑडियो पर क्लिक करे।

पैरों में टूटी हवाई चप्पल को अपने अंगूठे से सँभालने की कोशिश करता एक मासूम। कंपनियों की सीधी पर उतरते- चढ़ते उदास और बेसहारा चेहरे कुछ तलाश करती नजरें हाथों में एक बड़ा सा प्लास्टिक का बोरा जिसमे किताब नहीं खाली है। वह उस खाली बोरे को लिए इधर उधर बड़ी तेजी से तलाशती फिरती है। इस मासूम बच्चे की पूरी कहानी को सुनने के लिए इस एडीओ पर क्लिक करें