झारखण्ड राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिला के पोटका प्रखंड से कैलाश कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं, कि खड़गपुर रेल मंडल के टाटानगर जक्शन जो टाटा में स्थित है। इससे मिलती हुई कई स्टेशन है जिसमे से एक है आसनमनी स्टेशन जहाँ पहले कंप्यूटर से काट कर टिकट दिया जाता था। लेकिन लगभग दो माह से कंप्यूटर ख़राब होने के कारण टिकट हाथ से ही लिख कर यात्रियों को दिया जा रहा है। कई बार इसकी शिकायत करने पर भी अबतक कोई पहल नहीं की गई है। इससे यात्रियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। टिकट काउण्टर में लम्बी लाइन होने के कारण यात्री बीना टिकट लिए ही रेल में चढ़ जाते हैं।बिना टिकट के यात्रियों को कई तरह की जोखिम भी उठाना पड़ता है। अतः भारतीय रेलकारी द्वारा जल्द से जल्द कंप्यूटर को ठीक करवाया जाए जिससे यात्रियों को राहत मिल सके।

झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग ज़िला के बिष्णुगढ़ प्रखंड से राजेश्वर महतो मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं, कि आज के युग में हर एक व्यक्ति के पास आधुनिक सुविधाएँ हैं। सभी मोबाइल व इंटरनेट का इस्तेमाल आए-दिन करते हैं। इन आधुनिक सुविधाओं के बिना जिंदगी अधूरी हैं। परन्तु इन सुविधाओं से लेस होने के बावज़ूद इसकी पूर्ण गहरी जानकारी के अभाव में लोग इंटरनेट के जरिए होने वाले धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं। यह घटना ज़्यादातर ग्रामीण इलाकों में बढ़ गई हैं। ग्रामीण इलाकों में बैंक के अधिकारी शिविर लगा कर ग्रामीणों का खाता खोलते हैं। ताकि ग्रामीणों को सारी सुविधा प्रदान हो और उनकी जमापूँजी बैंकों में सुरक्षित रहे।परन्तु चालबाज़ लोग मोबाइल में फ़र्ज़ी तरीक़े से कॉल कर ए.टी.एम कार्ड की सुविधा बंद होने की बात कह कर बैंक खाता की जानकारी जैसे खाता नंबर,ए.टी.एम पिन नंबर आदि माँगते हैं। ग्रामीण लोग ऐसी ख़बर सुनते ही अपने सारे बैंक खाता की जानकारी अनजान व्यक्ति को दे देते हैं और उनके खाते से सारी पूँजी उड़ा ले जाते हैं।ग्रामीणों को वित्तीय साक्षरता की जानकारी नहीं मिलती। और जागरूकता के अभाव में ग्रामीण जनता आसानी से इस फ़र्ज़ी कॉल के झांसे में फंस जाते हैं।अतः इस पर लगाम लगाने के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर ग्रामीण इलाकों में शिविर लगा कर इस तरह के घटनाओं के प्रति लोगों को अवगत करवाने की जरुरत है। ताकि अनजान जनता धोखधड़ी से बच सकें।

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झारखण्ड राज्य के धनबाद जिला के बाघमारा प्रखंड से बीरबल महतो मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं, कि सर्दी का मौसम आते ही ठण्ड से लोग परेशान होने लगते हैं। ठण्ड से बचने के लिए लोग गर्म कपडे पहनते हैं तथा घरों में अलाव जलाते हैं। अलाव जलाने के कारण घरों में वायु प्रदूषण फैल जाता है। वायु प्रदूषण फैलने के कारण लोग कई तरह के बिमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। सरकार द्वारा ठंड से बचने के लिए गरीबों को कम्बल देती है। ताकि लोग ठण्ड से बच सकें। अतः सरकार को कम्बल के साथ-साथ जगह जगह अलाव का भी व्यवस्था करवाना चाहिए।

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झारखण्ड राज्य के धनबाद ज़िला से जे.एम रंगीला की झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव व किसान नेता श्यामसुंदर महतो से बातचीत हुई। श्यामसुंदर के अनुसार,1991 में नई आर्थिक व औद्योगिक नीति के लागू होने के बाद उद्योग बड़ी बड़ी प्राइवेट कंपनी द्वारा होने लगी। श्रम कानून में संशोधन होने से सही तरीके से मज़दूरी नहीं होती हैं एवं नौकरी के अभाव में झारखण्ड खनिज़ संपदा से परिपूर्ण होने के बावज़ूद लोग दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं।साथ ही मज़दूरों को दूरसे राज्य में जो वेतन मिलता हैं उससे भी कम उन्हें झारखंड में मिलता हैं इस वज़ह से मज़दूर पलायन कर दूसरे राज्य में नौकरी की तलाश करते हैं। झारखण्ड सरकार जो पलायन किए मज़दूरों के निबंधन के लिए कानून बनाए हैं उसके प्रति गंभीर नज़र नहीं आते हैं।न ही उनके पलायन होने का कारण के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करते हैं। श्यामसुंदर ने बताया कि गोमिया प्रखंड में ही लगभग दस हज़ार मज़दूर पलायन किए हैं।वही पूरा ज़िला से लाखों की तादाद में लोग पलायन किए हैं। दुसरे राज्य में प्रवासियों के साथ शोषण होता ही हैं इसलिए प्रवासियों का सामाजिक सुरक्षा के लिए कानून बननी चाहिए।सरकार युवाओं को रोजगार देने में असमर्थ हैं।देश में पूँजीवादी संकट आने से व बेरोज़गारी बढ़ने से गुजरात में हुई हिंसा जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई हैं।

गुजरात मे हो रहे श्रम अत्याचार को लेकर,जो बात कहि गई,शायद नया अंदाज में ,हमारे समाज मे इस तरह सोचने वाले दीदी भी है हमे आज महसूस हुआ कि बिहार के सम्मान के खातिर सभी को एक जुट होंकर लड़ना पड़ेगा

बिहार राज्य के जमुई जिला के सिकंदरा प्रखंड से मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते हैं कि किसी भी सरकार को गांव की ज़रूरत के हिसाब से निति व योजना बनानी चाहिए। जिससे उन्हें अधिक से अधिक लाभ मिल सकें क्योंकि शहरों एवं गांव की ज़रूरतें अलग अलग होती है। इसलिए गांव की ज़रूरतों को ध्यान अवश्य रखना चाहिए। गांव के लोग मज़बूरी में घर और परिवार को छोड़ कर रोजी-रोटी के तलाश में अन्य शहरों में जाते है। रोजगार के लिए अपने गांव से पलायन करने को विवस विभिन्न शहरों में जाते है। लेकिन इस पर किसी का नहीं रहा । गांव में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए ठोस निति बनायीं नहीं जा रही है। रोजगार के लिए पलायनवादी संस्कृति को रोकने की सख्त ज़रूरत है।