बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला से सलोनी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि आज भी पुरुष के मुकाबले महिलाओं को जमीन में अधिकार कम दिया जा रहा है।पहले पुरुष के नाम से जमीन रजिस्ट्री होता था। क्योंकि पुरुष ज्यादा पढ़े लिखे होते थे और महिलाएं कम पढ़ी - लिखी होती थी।सरकार की निति के फलस्वरूप अब महिलाएं शिक्षित हो रही हैं।शिक्षित महिलाएं अपने हक़ को जानती हैं। इसी महिलाएं जमीन अपने नाम से करवा रही हैं। लेकिन कई पति आज भी पत्नी के नाम जमीन का रजिस्ट्री नही करवाते हैं।

बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला से सलोनी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं की सम्पत्ति होने की बावजूद भी उन्हें स्वतंत्र निर्णय लेने में परेशानी होती है।घर वालों का कहना होता है कि सिर्फ तसल्ली के लिए महिला के नाम से जमीन किया गया है।इसे वो बेच नही सकती हैं।जमीन सम्बंधित निर्णय घर के पुरुष ही करेंगे। महिला बस घर के काम तक ही खुद को सिमित रखें।

बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला से सलोनी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि समाज में हर तरह के लोग होते हैं कुछ अच्छे होते हैं और कुछ बुरे भी होते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि जो महिला सम्पत्ति में हिस्सा लेने के लिए लड़ रही है वो गलत है। घर में महिला का राज होता है और पुरुष का वैलू नहीं रहता है। लेकिन अपने हक़ के लिए लड़ना गलत नही है। बिना किसी की परवाह किए महिलाओं को भूमि में अधिकार के लिए लड़ना चाहिए

झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग जिला से राजकुमार मेहता ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि भारत में शिक्षकों और सुधारकों ने महिला शिक्षा में योगदान दिया है।जिससे उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने में मदद मिली।सन 1948 ईस्वी में भारतीय अग्रदूत ज्योतिबा की पत्नी सावित्री बाई फूले ने अठारह सौ अड़तालीस में पुणे में बालिकाओं के भारत का पहला स्कूल शुरू किया था

झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग जिला से राजकुमार मेहता ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि स्त्री ही सम्पत्ति की परंपरा में मुख्य भूमिका निभाती है।फिर भी प्राचीन समाज से लेकर आधुनिक समाज तक स्त्रियां उपेक्षित ही रही हैं।उन्हें कम से कम सुविधाओं अधिकारों,उन्नति के अवसरों में रखा जाता रहा।इस वजह से महिलाओं की स्थिति अत्यंत निचले स्तर पर है

झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग जिला से राजकुमार मेहता ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि 2005 के हिन्दु अधिकारी अधिनियम ने बेटियों को पैतृक समपत्ति में सहदायिक अधिकार दी गई है। लेकिन यह सामाजिक स्तर पर पूरी तरह लागू नहीं हो पाया था और कुछ बाधाएं भी थी। जैसे कि पितृ सताात्मक संस्कृति,सामाजिक रीति रिवाज,शिक्षा और जागरूकता की कमी और पितृ सतात्मक महिलाओं के भूमि अधिकारों के रास्ते में प्रमुख बढ़ाएं हैं

झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग जिला से राजकुमार मेहता ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाएं भारतीय कृषि और आजीविका का एक बड़ा हिस्सा है।लेकिन उनकी स्थिति अक्सर केवल मजदूर जैसी होती है जिसे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।भारत में 80 -90 प्रतिष्ठान महिलाएं कृषि पर निर्भर हैं। कृषि कार्य के साथ ये महिलाएं घर का काम, पढ़ाई,पशुपालन,इत्यादि भी कर रही हैं।मगर इन्हें कृषि मजदूर समझा जाता है

झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग जिला से राजकुमार मेहता ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं को भूमि अधिकार मिलना चाहिए। 2005 के कानून के बावजूद पितृ सतात्मक संस्कृति,रीति रिवाज और जागरूकता की कमी के कारण वे पुरुषों के बराबर अधिकार और नियंत्रण से वंचित हैं।पैतृक सम्पत्ति में बराबर हिस्सा नही मिल पाता है।सुप्रीम कोर्ट के अनुसार लड़की और लड़का को पैतृक सम्पत्ति में बराबर हिस्सा मिलना चाहिए।

झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग जिला से राजकुमार मेहता ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि भारत में महिलाएं खेती कार्य से जुड़ी हैं। मगर उनको आज भी मालिकाना हक़ नही मिल पा रहा है। अगर इनको मालिकाना हक़ और सम्पत्ति का अधिकार मिल जाता तो लोन लेकर और अच्छे तरीके से खेती कर पाती

उत्तरप्रदेश राज्य के मिर्ज़ापुर ज़िला के मझवां प्रखंड से 42 वर्षीय सुनीता मोबाइल वाणी के माध्यम से कहती है कि जमीन में महिलाओं का नाम होना चाहिए ताकि आगे चल कर स्वावलम्बी बन सके। पति का साथ दे सके।