2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

नमस्कार, मैं गोरखपुर मोबाइलवाड़ी से ताराकेश्वरी श्रीवास्तव हूं, मनरेगा से वंचित 61 महिलाओं के पक्ष और विपक्ष में बोलते हुए, भारत में ग्रामीण आदिवासियों को रोजगार और आर्थिक सुरक्षा का लाभ मिलता है। यह योजना गरीब और वंचित वर्गों को रोजगार और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के मुख्य उद्देश्य के साथ गरीबी, अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ाई में एक प्रमुख उपकरण है। मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देने के प्रयास भी किए जाते हैं। मनरेगा के तहत वंचित महिलाओं को विशेष रूप से लाभ होता है। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को रोजगार प्रदान करती है। वे ऐसे अवसर प्रदान करते हैं जो उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करते हैं, उनके परिवार के सदस्यों का समर्थन करते हैं, और समाज में उनकी मानवीय और आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मदद करते हैं। महिलाओं को उचित मजदूरी और काम के लिए उचित पारिश्रमिक प्रदान किया जाता है, यह उनकी स्वतंत्रता और स्थिति की समानता को बढ़ावा देने के अलावा उनकी अपनी आर्थिक स्थिति को स्वतंत्रता के साथ जोड़ता है।

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अनुराधा मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि जो अमीर हैं वे पैसे के बल पर सभी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते हैं, लेकिन जो हमारे गरीब परिवारों से हैं, वे हमारे अधिकारों का लाभ उठाते हैं। सभी लोग बैठे हैं, पैसे मांगते हैं और पैसे नहीं दे पाते हैं, इसलिए उन्हें उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस लाभ की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन वह अपने धन के बल पर सभी योजनाओं का लाभ उठाता है। इन योजनाओं का लाभ हमारे गरीब परिवारों, हमारे गरीब समाज तक पहुंचना चाहिए, अगर आप देखें तो गरीबी की कोई सीमा नहीं है। हमारी सरकार आवास योजना चला रही है और हमारे गरीब लोगों को उस आवास योजना का लाभ नहीं मिल रहा है, तो इसे चलाने का क्या फायदा? चूंकि उनके बच्चों को समय पर एक बार का भोजन नहीं मिल पाता है, इसलिए उन्हें इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, तब से वे कहीं जा सकते हैं और एक बार की रोटी की व्यवस्था कर सकते हैं, लेकिन हमारी सरकार वही है जो वह है।

भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।

उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर से अदिति श्रीवास्तव ने मोबाईल वाणी के माध्यम से बताया कि भारत गंभीर भुखमरी और कुपोषण से जूझ रहा है। कई अलग-अलग रिपोर्टों के माध्यम से यह बात सामने आई है। भारत की यह स्थिति तब है जब देश में सरकार द्वारा मुफ्त या कम कीमत पर राशन दिया जाता है। फिर भी भारत गरीबी और भुखमरी से जूझ रहा है। ऐसे में सरकारी नीतियों को बदलने की सख्त आवश्यकता है ताकि कोई भी बच्चा भूखा न सो सके । विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर से तारकेश्वरी श्रीवास्तव ने मोबाईल वाणी के माध्यम से बताया कि भूख से तड़पते नवजात बच्चों के बीच शाही तमशा एक दुःखद और सोचने पर मजबूर करने वाला मुद्दा है।यह दृश्य हमें असहाय जीवन की कठिन पीड़ा के प्रति संवेदनशील बनाता है जिसे सीमित साधनों के साथ जीना पड़ता है । इस समस्या का सामना कर रहे बच्चों के भोजन , स्वास्थ्य और शिक्षा की कमी को समझ सकते हैं । इस समस्या को हल करने के लिए समाज में जागरूकता फैलाना और जन समर्थन में बदलाव लाना महत्वपूर्ण है । सरकारी और सामाजिक संगठनों और सामाजिक समूहों को मिलकर इन बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाली आहार ,स्वास्थ्य सुरक्षा और शिक्षा प्रदान करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए । विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

भारत गंभीर भुखमरी और कुपोषण के से जूझ रहा है इस संबंध में पिछले सालों में अलग-अलग कई रिपोर्टें आई हैं जो भारत की गंभीर स्थिति को बताती है। भारत का यह हाल तब है जब कि देश में सरकार की तरफ से ही राशन मुफ्त या फिर कम दाम पर राशन दिया जाता है। उसके बाद भी भारत गरीबी और भुखमरी के मामले में पिछड़ता ही जा रहा है। ऐसे में सरकारी नीतियों में बदलाव की सख्त जरूरत है ताकि कोई भी बच्चा भूखा न सोए। आखिर बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं।स्तों क्या आपको भी लगता है कि सरकार की नीतियों से देश के चुनिंदा लोग ही फाएदा उठा रहे हैं, क्या आपको भी लगता है कि इन नीतियों में बदलाव की जरूरत है जिससे देश के किसी भी बच्चे को भूखा न सोना पड़े। किसी के व्यक्तिगत लालच पर कहीं तो रोक लगाई जानी चाहिए जिससे किसी की भी मानवीय गरिमा का शोषण न किया जा सके।

आज के दौर में आत्महत्या के मामले बहुत बढ़ रहे हैं। जिसका एक प्रमुख कारण तनाव माना जा रहा है। इन दिनों व्यक्ति जितना तनावग्रस्त है ऐसी स्थिति अतीत में पहले कभी नहीं थी। या यूं भी कह सकते हैं कि आज धैर्य हीनता बढ़ गई है। विशेषज्ञ मनोचिकित्सकों का मानना है कि अपने मन की बात दूसरों से साझा करने से नहीं हिचकना चाहिए इससे दिमाग को बहुत राहत मिलती है। निराशा से बचने के लिए लोगों के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए। इसलिए जब भी परेशान हों तो दूसरों की मदद लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। आत्महत्या का किसी व्यक्ति की संपन्नता या विपन्नता से कोई संबंध नहीं है। आजकल हर आयु वर्ग में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। आए दिन ऐसी खबरें मिलती हैं कि किसी परेशानी से आजिज हो कर पूरे परिवार ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली या फिर किसी व्यक्ति विशेष ने आत्महत्या की या इसका प्रयास किया। आइए जानते हैं कि आत्महत्या करने के कारण क्या हैं और इस गंभीर समस्या का समाधान क्या है। इसका एक प्रमुख कारण तनाव है। इन दिनों व्यक्ति जितना तनावग्रस्त है, वैसी स्थिति अतीत में पहले कभी नहीं थी। लोगों की तेजी से बदलती जीवनशैली,रहन-सहन, भौतिक वस्तुओं के प्रति बहुत अधिक आकर्षण,पारिवारिक विघटन और बढ़ती बेरोजगारी और धन-दौलत को ही सर्वस्व समझने की प्रवृत्ति के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। स्ट्रेस दो प्रकार के होते हैं,जो स्ट्रेस हमें जीवन या कॅरियर में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे,उसे हम पॉजिटिव स्ट्रेस कह सकते हैं। जैसे प्रमोशन के लिए ज्यादा काम करना। किसी साहसपूर्ण जोखिम भरे कार्य को अंजाम देना। या कोई बड़ी चुनौती स्वीकार करने के बाद की स्थिति, वहीं स्ट्रेस का दूसरा प्रकार डिस्ट्रेस होता है,जो शरीर में कई बीमारियां पैदा करता है। यह स्ट्रेस का गंभीर प्रकार है। डिस्ट्रेस शरीर में तनाव पैदा करने वाले हार्मोंस को रिलीज करता है। इससे शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। अब जानते हैं डिप्रेशन को-दुख की स्थिति अवसाद या डिप्रेशन नहीं है। डिप्रेशन में पीड़ित व्यक्ति में काम करने की इच्छा खत्म हो जाती है। पीड़ित व्यक्ति के मन में हीन भावना आ जाती है। व्यक्ति को यह महसूस होता है कि अब यह जीवन जीने का कोई फायदा नहीं और वह हताश तथा असहाय महसूस करता है। ऐसी दशा से पीड़ित व्यक्ति आत्महत्या की कोशिश कर सकता है। एक ओर कारण आपाधापी भरी जीवनशैली है। देखा जाए तो आज की जीवनशैली तनावपूर्ण हो गई है। लोगों के पास काम की अधिकता है और वे समुचित रूप से विश्राम नहीं कर पा रहे हैं। आज ऐसे परिवारों की संख्या बढ़ गई है, जहां शांति नहीं है। घरों में माहौल खराब हैं। यह स्थिति व्यक्ति को परेशानी की स्थिति में आत्महत्या के विचार को बढाने में मदद करती है। साथ ही इन दिनों सोशल और इलेक्ट्राॅनिक मीडिया में जो कुछ दिखाया जा रहा है,उसका भी लोगों के दिमाग पर गलत असर हो रहा है। जो दुनियां जिन लोगों ने देखी नहीं है, उसे भी देखने की इच्छा लोगों में बढ़ती जा रही है। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए लोग ऋण ले रहे हैं और आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसी स्थितियां डिप्रेशन से ग्रस्त कर सकती हैं। आत्महत्या में ऐसे में परिजन यदि उसकी तकलीफों को पहले से ही समझ लें और उसकी सहायता करें तो रोगी सहज रूप से जीवन जीना स्वीकार कर लेता है। जब व्यक्ति असामान्य और हताश महसूस करे तो उसे तब तक अकेला न छोड़ें, जब तक किसी मनोचिकित्सक की सुविधा उपलब्ध न हो जाए, और यह छोटा सहयोग एक जीवन को बचा लेगा। आत्महत्या के प्रयास से पहले कुछ ऐसे पूर्व लक्षण मनोरोगी के व्यवहार में नजर आते हैं, जिन्हें रोगी के परिजन या प्रियजन जान लें तो वे उसकी मदद कर सकते हैं। उसे स्पष्ट शब्दों में बताएं कि वह परिवार के लिए,बच्चों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है रोगी को समझाएं कि हम हर वक्त उसके लिए उपलब्ध हैं रोगी को इस बात का विश्वास दिलाएं कि उसके कष्ट सीमित समय के लिए हैं और कुछ ही दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाएगा। समाज में मनोरोगों के प्रति जागरूकता कम है। अगर किसी व्यक्ति से कहें कि आप दिमागी तौर पर बीमार हैं तो वह बुरा मान जाता है। इन्हीं सब कारणों से समय रहते रोगी मनोरोग विशेषज्ञ से इलाज नहीं करा पाता। परेशानी होने पर दूसरों की मदद लेनी चाहिए। अधिकतर लोग मदद नहीं लेना चाहते,क्योंकि उन्हें लगता है कि वे कमजोर हो गए हैं। ऐसी सोच ठीक नहीं होती है।

जब तक दुनियां है गरीब और गरीबी को समाप्त नहीं किया जा सकता है। किंतु जन सामान्य को रहने के लिए घर पहनने के लिए वस्त्र और भोजन तथा उपचार आदि की समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराने के बाद लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया जा सकता है। गरीब और गरीबी को मापने का पैमाना चाहे जैसा भी हो वास्तविकता यही है कि भारत में सरकारी संसाधनों का भरपूर अभाव है। किंतु विकासित राष्ट्रों में जन उपयोगी संसाधन अधिक सुलभ हैं। अमेरिका की कुल आबादी 40 करोड़ के सापेक्ष लगभग 4 करोड़ गरीब हैं। अर्थात महज 10% लोग जबकि भारत में कुल 140 करोड़ की आबादी में 23 करोड़ गरीब हैं। अर्थात 17% से अधिक लोग गरीब हैं। अमेरिका में प्रति व्यक्ति औसत आय के आधार पर गरीबी का पता लगाया जाता है। और वहां सरकार के द्वारा जन सामान्य के लिए पर्याप्त संसाधनों की भरपूर व्यवस्था की जाती है। जबकि भारत में गरीबी का आंकलन आय और क्रय शक्ति के आधार पर किया जाता है यहां प्रति व्यक्ति आय का औसत भी अमेरिका तथा यूरोप के विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम है। तथा संसाधनों का पर्याप्त अभाव बना हुआ है। सच भले ही कड़वा लगे लेकिन सच यही है कि गरीब और गरीबी मिटाने के दावों के आंकड़े कुछ और हैं तथा वास्तविकता के धरातल पर गरीबी का हाल बहुत ही बुरा और भयावह है। आज भी ऐसे बहुत से परिवार हैं जिनके पास रहने के लिए छत और दोनों वक्त भरपेट भोजन करने की व्यवस्था नहीं है। सरकारी आंकड़ों की बाजीगरी सच को झूठ और झूठ को सच बताने में प्रशासन के खेल को भी देश का हर नागरिक जानता है। भारत में बढ़ती जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की घातक प्रवृत्ति से भी गरीबी और गरीबों की रफ्तार बढ़ती नजर आ रही है।

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