अगर इस जहां में मजदूरों का नामोंनिशां न होता, फिर न होता हवामहल और न ही ताजमहल होता!! नमस्कार /आदाब दोस्तों,आज 1 मई को विश्व अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस या मई दिवस मना रहा है।यह दिन श्रमिक वर्ग के संघर्षों और विजयों से भरा एक समृद्ध और यादगार इतिहास है। साथियों,देश और दुनियाँ के विकास में मजदूर भाई-बहनों का योगदान सराहनीय है।हम मजदूर भाई-बहनों के जज्बे को सलाम करते हैं और उनके सुखमय जीवन की कामना करते हैं। मोबाइल वाणी परिवार की तरफ से मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

नमस्कार, मैं गोरखपुर मोबाइलवाड़ी से ताराकेश्वरी श्रीवास्तव हूं, मनरेगा से वंचित 61 महिलाओं के पक्ष और विपक्ष में बोलते हुए, भारत में ग्रामीण आदिवासियों को रोजगार और आर्थिक सुरक्षा का लाभ मिलता है। यह योजना गरीब और वंचित वर्गों को रोजगार और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के मुख्य उद्देश्य के साथ गरीबी, अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ाई में एक प्रमुख उपकरण है। मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देने के प्रयास भी किए जाते हैं। मनरेगा के तहत वंचित महिलाओं को विशेष रूप से लाभ होता है। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को रोजगार प्रदान करती है। वे ऐसे अवसर प्रदान करते हैं जो उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करते हैं, उनके परिवार के सदस्यों का समर्थन करते हैं, और समाज में उनकी मानवीय और आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मदद करते हैं। महिलाओं को उचित मजदूरी और काम के लिए उचित पारिश्रमिक प्रदान किया जाता है, यह उनकी स्वतंत्रता और स्थिति की समानता को बढ़ावा देने के अलावा उनकी अपनी आर्थिक स्थिति को स्वतंत्रता के साथ जोड़ता है।

महिलाओं की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी और उसके सहारे में परिवारों के आर्थिक हालात सुधारने की तमाम कहानियां हैं जो अलग-अलग संस्थानों में लिखी गई हैं, अब समय की मांग है कि महिलाओं को इस योजना से जोड़ने के लिए इसमें नए कामों को शामिल किया जाए जिससे की ज्यादातर महिलाएं इसका लाभ ले सकें। दोस्तों आपको क्या लगता है कि मनरेगा के जरिए महिलाओँ के जीवन में क्या बदलाव आए हैं। क्या आपको भी लगता है कि और अधिक महिलाओं को इस योजना से जोड़ा जाना चाहिए ?

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।

नमस्कार दोस्तों, मोबाइल वाणी पर आपका स्वागत है। तेज़ रफ्तार वक्त और इस मशीनी युग में जब हर वस्तु और सेवा ऑनलाइन जा रही हो उस समय हमारे समाज के पारंपरिक सदस्य जैसे पिछड़ और कई बार बिछड़ जाते हैं। ये सदस्य हैं हमारे बढ़ई, मिस्त्री, शिल्पकार और कारीगर। जिन्हें आजकल जीवन यापन करने में बहुत परेशानी हो रही है। ऐसे में भारत सरकार इन नागरिकों के लिए एक अहम योजना लेकर आई है ताकि ये अपने हुनर को और तराश सकें, अपने काम के लिए इस्तेमाल होने वाले ज़रूरी सामान और औजार ले सकें। आज हम आपको भारत सरकार की विश्वकर्मा योजना के बारे में बताने जा रहे हैं। तो हमें बताइए कि आपको कैसी लगी ये योजना और क्या आप इसका लाभ उठाना चाहते हैं। मोबाइल वाणी पर आकर कहिए अगर आप इस बारे में कोई और जानकारी भी चाहते हैं। हम आपका मार्गदर्शन जरूर करेंगे। ऐसी ही और जानकारियों के लिए सुनते रहिए मोबाइल वाणी,

जब तक दुनियां है गरीब और गरीबी को समाप्त नहीं किया जा सकता है। किंतु जन सामान्य को रहने के लिए घर पहनने के लिए वस्त्र और भोजन तथा उपचार आदि की समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराने के बाद लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया जा सकता है। गरीब और गरीबी को मापने का पैमाना चाहे जैसा भी हो वास्तविकता यही है कि भारत में सरकारी संसाधनों का भरपूर अभाव है। किंतु विकासित राष्ट्रों में जन उपयोगी संसाधन अधिक सुलभ हैं। अमेरिका की कुल आबादी 40 करोड़ के सापेक्ष लगभग 4 करोड़ गरीब हैं। अर्थात महज 10% लोग जबकि भारत में कुल 140 करोड़ की आबादी में 23 करोड़ गरीब हैं। अर्थात 17% से अधिक लोग गरीब हैं। अमेरिका में प्रति व्यक्ति औसत आय के आधार पर गरीबी का पता लगाया जाता है। और वहां सरकार के द्वारा जन सामान्य के लिए पर्याप्त संसाधनों की भरपूर व्यवस्था की जाती है। जबकि भारत में गरीबी का आंकलन आय और क्रय शक्ति के आधार पर किया जाता है यहां प्रति व्यक्ति आय का औसत भी अमेरिका तथा यूरोप के विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम है। तथा संसाधनों का पर्याप्त अभाव बना हुआ है। सच भले ही कड़वा लगे लेकिन सच यही है कि गरीब और गरीबी मिटाने के दावों के आंकड़े कुछ और हैं तथा वास्तविकता के धरातल पर गरीबी का हाल बहुत ही बुरा और भयावह है। आज भी ऐसे बहुत से परिवार हैं जिनके पास रहने के लिए छत और दोनों वक्त भरपेट भोजन करने की व्यवस्था नहीं है। सरकारी आंकड़ों की बाजीगरी सच को झूठ और झूठ को सच बताने में प्रशासन के खेल को भी देश का हर नागरिक जानता है। भारत में बढ़ती जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की घातक प्रवृत्ति से भी गरीबी और गरीबों की रफ्तार बढ़ती नजर आ रही है।

गोरखपुर में पडले गंज चौराहे के पास निर्माणाधीन नाले की दीवार। ढही 10 मजदूर घायल

पक्ष विपक्ष कड़ी संख्या 51 घटती गरीबी और सरकारी डाटा की सच्चाई

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