नया मदरसा मैं महाराष्ट्र के नागपुर से बात कर रहा हूं हमारे देश की लोकतांत्रिक प्रणाली की वर्तमान परंपराएं इतनी कायरतापूर्ण हैं कि इसे विश्वकर्मा जैसे जातिवादियों से जोड़ा गया है । इस योजना को विश्वकर्मा योजना कहा जाता है , जिसमें सरकार आपको ऋण देती है और अठारह महीने के भीतर आपको खर्चों का भुगतान करना होता है । खैर , यह बताया जा रहा है कि कुछ श्रमिक शामिल हैं , खिलौने बनाने वाले हैं , ठीक है , ऐसे श्रमिकों को चुना जा रहा है , बल्कि जो व्यक्ति गरीब है उसके पास रोटी है । क्योंकि , कोई परसाटक नहीं है , कोई रास्ता तय नहीं है , सरकार द्वारा उनके बारे में कोई खुलासा नहीं किया गया है , इतना ही नहीं , ये लोग केवल राम के नाम पर और देश में सबसे बड़ी चोरी करना जानते हैं । लोकतंत्र बता रहा है , यह हमारे देश को दिखा रहा है , यह नीच और जातिवादी व्यवस्था , दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र , यह दर्शाता है कि इन नीच नेताओं के अंदर लोग हैं । किसी भी तरह की तांत्रिक विचारधारा की कोई भावना नहीं है , वे केवल शासन करना जानते हैं , राम नाम का संकल्प बताते हैं और लूटपाट में लगे हुए हैं । जो प्राचीन परंपराएँ हैं , ये ब्राह्मणवादी लाशें समाप्त हो जाएंगी , तब लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुधार होगा , ईमानदारी बनी रहेगी । नमस्कार ।

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मज़दूरों के वोट के लाभ और नेताओं के ठाठ बनाये रखने के लिए लोकतंत्र फैक्ट्री के ठेकेदार अपने नेतृत्व के माध्यम से नागरिकों को संगठित करने और सकारात्मक परिवर्तनों को प्रेरित करने के लिए उत्साहित कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में सफलता के लिए, सार्वजनिक समानता, न्याय, और सहयोग के सिद्धांतों पर ध्यान दिलाया जा रहा है अब इस त्यौहार में कम्पनियों के वांच खिलने लगी है क्यों कि यही वह मौका है जहां राजनीतिक पार्टियाँ जनता से वादा और कम्पनियों से सौदा करती हैं और बदले में ये सारी कम्पनियाँ राजनितिक पार्टियों को चुनवी चंदे की सौगात से नवाजते हैं ताकि आने वाले दिनों में इनके लिए गए कर्ज़, टैक्स मैन कटौकी और कुछ सरकार के टेंडर, लाइसेंस, मुफ़्त में सेज़ के नाम प्रति फैक्ट्री लगाने के लिए ज़मीन मुहैय्या कराया जाता है ताकि इनकी पूँजी की शक्ति और शक्तिशली बने तब भी मजदूरों का शोषण संभव होगा। तो श्रोताओं क्या आपको लगता है कि हम मज़दूरों की मज़दूरी को काटकर पूंजीपति सरकरों को चंदे के रूम में दान कर रहें हैं ताकि कंपनियों की सरकारों को कंपनियों के हित में कानून बनाने और सस्ते मज़दूर मुहैय्या कराये जा सकें ? अपने विचार और सवाल हमसे जरूर साझा करें नंबर 3 दबाकर और अगर यह डेयरी आपको पसंद आयी है और लोगों से साझा करना चाहते हैं तो दबाएँ नंबर 5 शुक्रिया धन्यवाद्

नमस्कार दोस्तों, मोबाइल वाणी पर आपका स्वागत है। तेज़ रफ्तार वक्त और इस मशीनी युग में जब हर वस्तु और सेवा ऑनलाइन जा रही हो उस समय हमारे समाज के पारंपरिक सदस्य जैसे पिछड़ और कई बार बिछड़ जाते हैं। ये सदस्य हैं हमारे बढ़ई, मिस्त्री, शिल्पकार और कारीगर। जिन्हें आजकल जीवन यापन करने में बहुत परेशानी हो रही है। ऐसे में भारत सरकार इन नागरिकों के लिए एक अहम योजना लेकर आई है ताकि ये अपने हुनर को और तराश सकें, अपने काम के लिए इस्तेमाल होने वाले ज़रूरी सामान और औजार ले सकें। आज हम आपको भारत सरकार की विश्वकर्मा योजना के बारे में बताने जा रहे हैं। तो हमें बताइए कि आपको कैसी लगी ये योजना और क्या आप इसका लाभ उठाना चाहते हैं। मोबाइल वाणी पर आकर कहिए अगर आप इस बारे में कोई और जानकारी भी चाहते हैं। हम आपका मार्गदर्शन जरूर करेंगे। ऐसी ही और जानकारियों के लिए सुनते रहिए मोबाइल वाणी,

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भारत में शादी के मौकों पर लेन-देन यानी दहेज की प्रथा आदिकाल से चली आ रही है. पहले यह वधू पक्ष की सहमति से उपहार के तौर पर दिया जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में यह एक सौदा और शादी की अनिवार्य शर्त बन गया है। विश्व बैंक की अर्थशास्त्री एस अनुकृति, निशीथ प्रकाश और सुंगोह क्वोन की टीम ने 1960 से लेकर 2008 के दौरान ग्रामीण इलाके में हुई 40 हजार शादियों के अध्ययन में पाया कि 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया. बावजूद इसके कि वर्ष 1961 से ही भारत में दहेज को गैर-कानूनी घोषित किया जा चुका है. यह शोध भारत के 17 राज्यों पर आधारित है. इसमें ग्रामीण भारत पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है जहां भारत की बहुसंख्यक आबादी रहती है.दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आप क्या सोचते है ? और इसकी मुख्य वजह क्या है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ? *----- और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

चुनावी बॉंड में ऐसा क्या है जिसकी रिपोर्ट सार्वजनिक होने से बचाने के लिए पूरी जी जान से लगी हुई है। सुप्रीम कोर्ट की डांट फटकार और कड़े रुख के बाद बैंक ने यह रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंप दी, अब चुनाव आयोग की बारी है कि वह इसे दी गई 15 मार्च की तारीख तक अपनी बेवसाइट पर प्रकाशित करे।

दिल्ली से असमत अली ने मोबाईल वाणी के माध्यम से भगवान सेप्टा से साक्षात्कार लिया। भगवान सेप्टा ने बताया कि ये किसानों की मांगों को लेकर रामलीला मैदान पहुंचे हैं। इनकी मुख्य मांग कर्ज माफी और एमएसपी है।किसान की हालत बहुत ख़राब है और खेती में घाटा हो रहा है। खेती में लागत ज्यादा है और बाज़ार में माल की कीमत नही मिलती है। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

दिल्ली से असमत अली ने मोबाईल वाणी के माध्यम से चतुर्वेदी जी से साक्षात्कार लिया। चतुर्वेदी जी ने बताया कि ये चंदौली से आये हैं और भारतीय किसान यूनियन टिकैत के मंडल प्रवक्ता हैं।इनके साथ सौ लोग भी आए हैं। किसानों की मांगों को लेकर ये आंदोलन कर रहे हैं। अपने हक़ के लिए दिल्ली आए बच्चे,बूढ़े और महिलाओं सभी लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा है।रास्ते में जगह-जगह पुलिस ने रोका,जिनसे जूझते हुए ये रामलीला मैदान पहुंचे। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।