भारत में जहां 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में एक तरफ राजनीतिक दल हैं जो सत्ता में आने के लिए मतदाताओं से उनका जीवन बेहतर बनाने के तमाम वादे कर रहे हैं, दूसरी तरफ मतदाता हैं जिनसे पूछा ही नहीं जा रहा है कि वास्तव में उन्हें क्या चाहिए। राजनीतिक दलों ने भले ही मतदाताओं को उनके हाल पर छोड़ दिया हो लेकिन अलग-अलग समुदायो से आने वाले महिला समूहों ने गांव, जिला और राज्य स्तर पर चुनाव में भाग ले रहे राजनीतिर दलों के साथ साझा करने के लिए घोषणापत्र तैयार किया है। इन समूहों में घुमंतू जनजातियों की महिलाओं से लेकर गन्ना काटने वालों सहित, छोटे सामाजिक और श्रमिक समूह मौजूदा चुनाव लड़ रहे राजनेताओं और पार्टियों के सामने अपनी मांगों का घोषणा पत्र पेश कर रहे हैं। क्या है उनकी मांगे ? जानने के लिए इस ऑडियो को सुने
बिहार राज्य के मधुबनी जिला से काजल कुमारी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि मधुबनी के नारियल बाजार में कुछ ही दिनों के बाद पानी की समस्या समाप्त हो जाएगी
किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें
कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की स्वीकारोकती के बाद सवाल उठता है, कि भारत की जांच एजेंसियां क्या कर रही थीं? इतनी जल्दबाजी मंजूरी देने के क्या कारण था, क्या उन्होंने किसी दवाब का सामना करना पड़ रहा था, या फिर केवल भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला है। जिसके लिए फार्मा कंपनियां अक्सर कटघरे में रहती हैं? मसला केवल कोविशील्ड का नहीं है, फार्मा कंपनियों को लेकर अक्सर शिकायतें आती रहती हैं, उसके बाद भी जांच एजेंसियां कोई ठोस कारवाई क्यों नहीं करती हैं?
नासिक में रहने वाली मयूरी धूमल, जो पानी, स्वच्छता और जेंडर के विषय पर काम करती हैं, कहती हैं कि नासिक के त्र्यंबकेश्वर और इगतपुरी तालुका में स्थिति सबसे खराब है। इन गांवों की महिलाओं को पानी के लिए हर साल औसतन 1800 किमी पैदल चला पड़ता है, जबकि हर साल औसतन 22 टन वज़न बोझ अपने सिर पर ढोती हैं। और ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।
हांगकांग के फूड सेफ्टी विभाग सेंटर फॉर फूड सेफ्टी ने एमडीएच कंपनी के मद्रास करी पाउडर, सांभर मसाला मिक्स्ड पाउडर और करी पाउडर मिक्स्ड मसाला में कीटनाशक एथिलीन ऑक्साइड पाया है और लोगों को इसका इस्तेमाल न करने को कहा है. ऐसा क्यों? जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें
बिहार राज्य के मधुबनी जिला से काजल कुमारी ने स्थानीय निवासी पिंकी कुमारी से मोबाइल वाणी के माध्यम से बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ के विषय में बात चित की। पिंकी ने बताया कि हमारे समाज में पहले बेटियों को नहीं पढ़ाया जाता था। बेटी को इसलिए नहीं पढ़ाया जाता था क्योंकि पहले बेटियाँ घर से नहीं निकलती थी। उन्हें चारदीवारी के बाहर जाने की अनुमति नहीं थी, लेकिन अब हमारे समाज में बेटियों को पढ़ाया जा रहा है
दोस्तों, प्रधानमंत्री के पद पर बैठे , किसी भी व्यक्ति से कम से कम इतनी उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि उस पद पर बैठने वाला व्यक्ति पद की गरिमा को बनाए रखेगा। लेकिन कल के भाषण में प्रधानमंत्री ने उसका भी ख्याल नहीं रखा, सबसे बड़ी बात देश के पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ खुले मंच से झूठ बोला। लोकतंत्र में आलोचना सर्वोपरि है वो फिर चाहे काम की हो या व्यक्ति की, सवाल उठता है कि आलोचना करने के लिए झूठ बोलना आवश्यक है क्या? दोस्तों आप प्रधानमंत्री के बयान पर क्या सोचते हैं, क्या आप इस तरह के बयानों से सहमत हैं या असहमत, क्या आपको भी लगता है कि चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाना अनिवार्य है, या फिर आप भी मानते हैं कि कम से कम एक मर्यादा बनाकर रखी जानी चाहिए चाहे चुनाव जीतें या हारें। चुनाव आयोग द्वारा कोई कार्रवाई न करने पर आप क्या सोचते हैं। अपनी राय रिकॉर्ड करें मोबाइलवाणी पर।
बिहार राज्य के मधुबनी जिला से टेक नारायण कुशवाहा ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि इससे पहले हमारे देश के समाज में बेटियों को नहीं पढ़ाया जाता था, उन्हें चार दीवारों तक सीमित कर दिया जाता था। उसे घर से बाहर नहीं निकलने दिया गया। पढ़ाने की बात बहुत दूर है। बेटियों को कोई नहीं पढ़ाता था, लेकिन लोग अपने बेटों को पढ़ाते थे। लंबे समय के बाद देखा गया है कि हमारे समाज में बेटियां पढ़ाई कर रही हैं। धीरे-धीरे हमारे समाज में बहुत बदलाव आया है, जहाँ बेटियों को वहाँ भी नहीं पढ़ाया जाता था
बिहार राज्य के मधुबनी जिला से टेक नारायण कुशवाहा ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ कार्यक्रम कागज पर भ्रूण हत्या की जा रही है धरने से अल्ट्रासाउंड खुलने जा रहा है जहां पर भ्रूण की जांच होती है और बेटियों को समाप्त कर दिया जाता है दूसरी तरफ बेटी के पढ़ने में लोगों की उदासीनता देखी जा रही है जहां पर लड़कों पर खर्च किए जा रहे हैं वही बेटियों के प्रति लोग उदासीन हैं नतीजा है बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए सारी कोशिश से खत्म की जा रही है सरकार इस पर करोड़ों रुपए खर्च करती है विज्ञापन और इस कार्यक्रम को धरती पर उतरने के लिए लेकिन साफ स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है कि अभी तक यह कार्यक्रम धरती पर उतरा नहीं गया है नतीजा है बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ कार्यक्रम अभी भी लोगों से दूर है या खासकर यह कहें कि बेटियों से दूर है।