यहां जननी सुरक्षा योजना में घटते आधार का मतलब है सरकारी संस्था हो या प्राइवेट जननी सुरक्षा को लेकर कई प्रश्न उठना लाजिमी हो गया है। बताते चले की सरकारी अस्पतालों में सही ढंग से न तो उपचार संभव हो पता है और ना प्राइवेट में रूपों की बर्बादी होती दिख रही है जिससे लोगों में परेशानी हद से ज्यादा देखी जा रही है साथ ही जितना लाभ मिलता है उससे अधिक खर्च होती है जिससे लोग परेशान नजर आ रहे हैं सरकारी डॉक्टर शरीर में हाथ लगाना भी नहीं जानता सारे टेस्ट करवाए जाते हैं और प्रसव के समय गर्मियों के द्वारा पैसे लूट जाते हैं जिसका कई बार विरोध भी हुआ है।

बिहार राज्य के मधुबानी जिला के फुलपरास प्रखंड से गुड्डू कुमार उर्फ़ राजेश कुमार पांडे ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि मधुबानी जिला के फुलपरास प्रखंड में नगर पंचायत द्वारा नालियों की सफाई नहीं हो रही हैं जिससे नालियों में मच्छर पनप रहे हैं। इससे बचाव के लिए न तो डीसीपी छिड़काव कर रहे हैं और न ही कोई दवा दी जा रही है, ऐसे में लोग परेशान हो रहे हैं।

कोई भी राजनीतिक दल हो उसके प्रमुख लोगों को जेल में डाल देने से समान अवसर कैसे हो गये, या फिर चुनाव के समय किसी भी दल के बैंक खातों को फ्रीज कर देने के बाद कैसी समानता? आसान शब्दों में कहें तो यह अधिनायकवाद है, जहां शासन और सत्ता का हर अंग और कर्तव्य केवल एक व्यक्ति, एक दल, एक विचारधारा, तक सीमित हो जाता है। और उसका समर्थन करने वालों को केवल सत्ता ही सर्वोपरी लगती है। इसको लागू करने वाला दल देश, देशभक्ति के नाम पर सबको एक ही डंडे से हांकता है, और मानता है कि जो वह कर रहा है सही है।

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मधुबानी मोबाइल वानी के लिए , मैं पुलपास रेफरल अस्पताल से बात कर रहा हूँ । आयुष्मान कार्ड बनाने के लिए मैं राशन कार्ड के साथ आधार कार्ड लाया , लेकिन मेरे किसी भी कार्ड को अस्वीकार नहीं किया गया । मैडम कह रही हैं कि लिंक खराब है

एडीआर संस्था ने अपनी एक और रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में राजनीतिक पार्टियों की कमाई और खर्च का उल्लेख है। यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे राजनीतिक पार्टियां अपने विस्तार और सत्ता में बने रहने के लिए बड़े पैमाने पर खर्च करती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे बड़े सत्ता धारी दल ने बीते वित्तीय वर्ष में बेहिसाब कमाई की और इसी तरह खर्च भी किया। इस रिपोर्ट में 6 पार्टियों की आय और व्यय के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीआई एम और बीएसपी और एनपीईपी शामिल हैं। दोस्तों, *---- आपको क्या लगता है, कि चुनाव लडने पर केवल राजनीतिक दलों की महत्ता कितनी जरूरी है, या फिर आम आदमी की भूमिका भी इसमें होनी चाहिए? *---- चुनाव आयोग द्वारा लगाई गई खर्च की सीमा के दायेंरें में राजनीतिक दलों को भी लाना चाहिए? *---- सक्रिय लोकतंत्र में आम जनता को केवल वोट देने तक ही क्यों महदूद रखा जाए?

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तमाम गैर सरकारी रिपोर्टों के अनुसार इस समय देश में बेरोजगारी की दर अपने उच्चतम स्तर पर है। वहीं सरकारें हर छोटी मोटी भर्ती प्रक्रिया में सफल हुए उम्मीदवारों को नियुक्त पत्र देने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन कर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों को भी आमंत्रित कर रही हैं, जिससे की बताया जा सके कि युवाओं को रोजगार उनकी पार्टी की सरकार होने की वजह से मिल रहा है।

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