मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?
अजय कुमार कि रिपोर्ट। बिहार मोबाइल वाणी चंदन सिंह के साथ खास बातचीत अधिक जानकारी हेतु क्लिक करें या डाउनलोड करें।
पहाड़ की तराई का इलाके वाला रक्सौल अनुमंडल क्षेत्र में पिछले एक पखवाड़े से लगातार पड़ने वाले कड़ाके की ठंड से बिहारी मजदूरों के समक्ष रोजगार की समस्या उन्हें बेहाल कर पलायन को मजबूर कर दिया है। शहर में दिहाड़ी मजदूरों को काम न मिलने की स्थिति में वे मुंबई, पंजाब, कश्मीर, लुधियाना, दिल्ली की ओर रोजगार के लिए भारी संख्या में जाने लगे है। इसका खुलासा गुरुवार को हुआ। जब स्थानीय रेलवे स्टेशन पर भारी संख्या में दिहाड़ी मजदूरों को कर्मभूमि एक्सप्रेस ट्रेन जो रक्सौल से मुंबई जाती है पकड़ने जाते पाया गया। उन्होंने बताया की ठंड में यहां कोई काम नहीं मिल रहा है। जॉब कार्ड के बावजूद काम नदारद है। परिवार के समक्ष रोजी रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है। ऐसे में बाहर जाना उनकी मजबूरी है। अनुमंडल के आदापुर श्यामपुर निवासी सुमन भगत व नंदकिशोर ने बताया कि वे लोग मजदूरी काम के लिए मुंबई जा रहे है। शुक्रवार शाम रक्सौल से मुंबई जाने वाली कर्म भूमि एक्सप्रेस ट्रेन में जा रहे दिहाड़ी मजदूरों से जब संवाददाता ने पलायन का कारण जानने का प्रयास किया। तो एक ही जवाब मिला की ठंड में रोजगार की समस्या के कारण बाहर मजदूरी के लिये जा रहे हैं। ठंड में यहां काम नहीं मिल रहा है। तो परिवार का भरण पोषण के लिए बाहर जाना पड़ रहा है। रोजगार की व्यवस्था उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। उनके साथ लगभग एक दर्जन दिहाड़ी मजदूरों का समूह है जो मुंबई के फैक्ट्री में काम करेंगे। उसी प्रकार स्टेशन पर अनुमंडल सहित नेपाल तक के बिभिन्न स्थान से दिहाड़ी मजदूरों को बाहर काम की तलाश मे जाते पाया गया।
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साथियों, पहले तो लोगों को काम नहीं मिल रहा है और दूसरा अगर काम मिल जाए तो वैक्सीन ना लगने की वजह से मौके हाथ से निकल रहे हैं. हमें बताएं कि क्या आप भी इस संकट का सामना कर रहे हैं? क्या आपको भी वैक्सीन ना मिलने के कारण रोजगार की तलाश करने में परेशानी हो रही है? क्या कारखानों में काम देने के पहले वैक्सीन लगवाना अनिवार्य कर दिया गया है? और जो कामगार दूसरों के घरों में काम करते हैं, या फिर मजदूर चौक पर रोजाना आजीविका तलाशते हैं, क्या उन्हें भी टीके का हवाला देकर काम देने से इंकार किया जा रहा है? क्या आपके गांव में, सोसायटी में भी बिना टीके लिए एंट्री नहीं दी जा रही है? अगर ऐसा है तो अब आप कैसे काम तलाश रहे हैं? क्या वापिस गांव लौटने पर आपको काम मिलने की उम्मीद है? अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.
साथियों, परेशानी ये है कि कंपनियां मजदूरों को हवाई जहाज कि टिकिट देकर काम पर तो बुला चुकी हैं पर उनके टीकाकरण की व्यवस्था नहीं कर रहीं हैं. ऐसे में जो लोग अपने गांव से महानगर पहुंच चुके हैं वे बिना टीके के ही रोजगार तलाश रहे हैं और उन्हें काम नहीं मिल रहा है. कम वेतन दिया जाना, स्टॉफ की कटौती करना और नए रोजगार के अवसरों को अस्थाई रूप से बंद कर देने जैसी चुनौतियां अलग हैं. दोस्तों, हमें बताएं कि अगर आपको पहले की तरह काम नहीं मिल पा रहा है तो इसकी क्या वजह है? क्या कंपनी और कारखानों के संचालक ज्यादा नियुक्तियां नहीं करना चाहते? क्या वे पहले की अपेक्षा कम वेतन दे रहे हैं और क्या आपको कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है? क्या काम मांगने के लिए लिखित आवेदन देने के 15 दिन बाद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ? क्या मनरेगा अधिकारी बारिश या कोविड का बहाना करके काम देने या किए गए काम का भुगतान करने में आनाकानी कर रहे हैं? दोस्तों, अपनी बात हम तक पहुंचाएं ताकि हम उसे उन लोगों तक पहुंचा सकें जो आपकी समस्या का समाधान कर सकते हैं. अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.