बिहार राज्य के जिला मुज्जफरपुर से जुल्फिकार मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि एक कहावत है पहला सुख निरोगी काया, अर्थात पहला सुख रोगमुक्त रहना है बीमारी से युक्त नहीं होने देना है। यह तभी संभव है जब हमारा भोजन पोषणयुक्त हो, जीवनशैली संयमित हो और शारीरिक श्रम को हम अपने जीवन में नियमित तौर पर शामिल करें। वहीं इस कोरोना संक्रमण के समय में इस बात की महत्ता और भी ज्यादा बढ़ गयी है कि हम कैसे अपने कोरोना संक्रमण को अपने से दूर रखें। इस संबंध में डब्ल्यूएचओ ने एक पोस्टर जारी करते हुए कुछ सुझावों पर अमल करने को कहा कि जिसकी बदौलत हम अपने शरीर को फिट रख सकते हैं।
कोरोना संक्रमण काल ने हमें रोग प्रतिरोधक क्षमता और उसे बनाए रखने के लिए पोषक तत्वों से युक्त आहार की जरूरत से पूरी तरह अवगत करा दिया है। इन पोषक तत्वों का महत्व गर्भवती और धात्री माताओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में और बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ़ जैसी संस्थाओं के अनुसार विश्व में प्रतिदिन लगभग 810 महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था या प्रसव के दौरान हो जाती है जिसका एक प्रमुख कारण उनमें पोषण की कमी है।
कोरोना के बढ़ते संक्रमण और उसके जांच से संबंधित कार्यवाई हेतु आईसीएमआर के द्वारा स्वदेशी तकनीक से निर्मित एलिसा टेक्नोलॉजी से रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट को मंजूरी मिल गयी है। जिसे स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कोविड कार्य में लगे जिले के फ्रंट लाइन वर्कर्स, हेल्थकेयर वर्कर्स के साथ सरकारी कार्यालयों के कर्मी, बैंक एवं अन्य सार्वजनिक सेवाओं के कर्मियों की जांच की जाएगी। स्वास्थ्य विभाग के इस आदेश पर मुजफ्फरपुर के लिए 200 किट प्रदान किए गये हैं। इस जांच को पटना के आरएमआरआई में किया जाएगा। इस संबंध में आईसीएमआर ने कहा है कि ज्यादा खतरे वाले इलाके, कंटेनमेंट जोन और फ्रंटलाइन वर्कर्स और स्वास्थ्य कर्मचारियों पर ही इस किट का इस्तेमाल किया जाएगा। ऑडियो पर क्लिक कर पूरी जानकारी सुनें।
मुज़फ़्फ़रपुर : यह ख़ुशी की बात है की बिहार के शिशु मृत्यु दर में लगातार सुधार हो रहा है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (2018) के हालिया सर्वेक्षण में बिहार में शिशु मृत्यु दर 32 (प्रति हजार जीवित जन्मे बच्चों में) है। लेकिन राज्य में पोषण से संबंधित संकेतकों में सुधार करने की दिशा में अभी एक लंबा रास्ता तय करना है, विशेष रूप से 5 साल से कम उम्र के बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिए. कॉम्प्रेहेंसिवनेशनल न्यूट्रीसनल सर्वे (सी एन एन एस 2016-18 ) के अनुसार भारत में 57% शिशुओं को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान मिलता है और बिहार में यह आंकड़ा 46 % है। भारत में 58 % बच्चों को छह माह तक सिर्फ माँ का दूध दिया जाता है और बिहार में यह आंकड़ा 62.7 % है। ऑडियो पर क्लिक कर पूरी जानकारी सुनें।
आंखें जितनी अनमोल हैं उतनी ही संवेदनशील भी, पर आज के इस तकनीकी युग में बच्चे मोबाइल फोन, क्म्प्यूटर, लैपटॉप और टैबलेट देखने में बिताते हैं। जिसके चलते छोटी उम्र में ही कई गंभीर आंखों की समस्या होने लगती है। इस संबंध में आइजीआइएमएस के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ ज्ञान भास्कर कहते हैं तकनीक के संपर्क में अधिक रहने से बच्चे छोटी उम्र में ही ग्लूकोमा, कंजक्टीवाइटस और आंख के संक्रमण के शिकार हो जाते हैं। यह अगस्त महीना बच्चों के आंखों के बारे में जागरुक होने का महीना है। जिससे हम उनके सुनहरे सपने को एक नई दिशा दे सकें। अभिभावक को चाहिए कि वे बच्चों के हाथों को साफ रखने का प्रयास करें क्योंकि बच्चे इन्हीं गंदे हाथों से अपने आंखों को भी बार -बार छूते हैं। इससे संक्रमण का खतरा बना रहता है। ऑडियो पर क्लिक कर पूरी जानकारी सुनें।
मुजफ्फरपुर : कोरोना संक्रमण में व्यक्ति का प्रतिरक्षा तंत्र मुख्य संरक्षक के रुप में उभर कर सामने आया है। जिससे लोगों का ध्यान विभिन्न पैथ की दवाओं तथा उनकी विधियों पर गया है। इन सबके बीच हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति की सरलता और सुलभता ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। इसकी विधियां और दवा हमारे रोजमर्रे के जीवन से जुड़ी होती हैं। जिसे व्यवहार में लाकर हम मजबूत इम्यून सिस्टम पा सकते हैं। इसके लिए राज्य स्वास्थ्य समिति ने कोरोना संक्रमण से बचने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सकीय परामर्श का एक पोस्टर जारी किया है। ऑडियो पर क्लिक कर पूरी जानकारी सुनें।
खांसने या छींकने से होता है कोरोना, सुरक्षित रुप से लपेटे डेड बॉडी से नहीं मुजफ्फरपुर : एसकेएमसी हॉस्पिटल में मंगलवार को हुई कोरोना से मौत पर उनके परिजनों की बेरुखी का मामला प्रकाश में आया है। जिसमें परिवार वालों ने शव को लेने से इंकार कर दिया था। बाद में अस्पताल प्रशासन ने राज्य स्वास्थ्य समिति के गाईडलाइन के अनुसार शव का अंतिम संस्कार किया। इस संबंध में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और राज्य स्वास्थ्य समिति ने शवों के निस्तारण पर दिशा-निर्देश भी दिए थे, जिसमें कुछ खास मानकों को ध्यान में रखकर शवों का अंतिम संस्कार की जानकारी दी थी। इस प्रक्रिया में शवों से कोरोना फैलने की संभावना बिल्कुल नगण्य है। ऑडियो क्लिक कर हर प्रकार की छोटी बड़ी खबरें सुनें।
मुजफ्फरपुर : कोरोना का प्रकोप जिस तरह लोगों को अपने आगोश में ले रहा है, ठीक उसी तरह इससे निजात पाने के लिए पूरे विश्व में इस बीमारी के खात्में के लिए टीके और दवाओं पर शोध हो रहे हैं। यह सर्वज्ञात है कि किसी भी बीमारी से लड़ने में मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी मुख्य भूमिका निभाती है। ऐसे में अपने देश में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति देशवासियों के लिए वरदान से कम नहीं है। इसकी दो मुख्य वजहें हैं एक तो कि इस पर ज्यादा पैसे खर्च नहीं करने पड़ते दूसरी कि यह कि यह अपना काम तेजी से बिना किसी साइड इफेक्ट के करती है। ऑडियो क्लिक कर हर प्रकार की छोटी बड़ी खबरें सुनें।
• निर्जलीकरण(डिहाइड्रेशन)की स्थिति साबित हो सकती है जानलेवा • शिशुओं के स्वास्थ्य पर रखें नजर अगले कुछ दिनों में जिले में मानसून के सक्रीय होने की सम्भावना मौसम विभाग ने जताई है. बारिश की फुहारों का आनंद उठाते समय अपने खान पान एवं साफ़ सफाई पर भी ध्यान देने की जरुरत है. बारिश के मौसम में डायरिया की समस्या आम हो जाती है और ससमय इसका प्रबंधन नहीं होने से यह जानलेवा भी साबित हो सकता है. कोरोना संक्रमण के मद्देनजर डायरिया से बचाव की जरूरत भी अधिक है.डायरिया के कारण बच्चों और वयस्कों में अत्यधिक निर्जलीकरण(डिहाइड्रेशन)होने से समस्याएं बढ़ जाती है. इसके लिए डायरिया के लक्षणों के प्रति सतर्कता एवं सही समय पर उचित प्रबंधन कर डायरिया जैसे गंभीर रोग से आसानी से बचा जा सकता है. विस्तृत जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें।