ताने भी नही रोक सकी संजरी की राहें - काम पर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे कर चुके हैं प्रोत्साहित - छुटी पढ़ाई को 39 में किया पूरा - संस्थागत प्रसव और परिवार नियोजन में है महत्वपूर्ण योगदान वैशाली। 20 मई अच्छे काम को हर एक की तारीफ नही मिलती। मगर जब वह काम लोगों की दशा और दिशा बदल दे तो उसे निश्चित रूप से पहचान मिलती है। कुछ ऐसा ही हुआ संजरी खातून के साथ। बचपन से नौकरी की इच्छा थी । इंटर करने के बाद ही शादी हो जाने पर कुछ ठहराव तो आया पर ज्यादा दिनों तक नहीं। 2006 में जब आशा के रूप में संजरी ने अपना काम शुरू किया तो आस - पास के लोगों के तानों ने इनका हौसला तोड़ना चाहा, पर सबकुछ दरकिनार करते हुए अपने काम में व्यस्त थी। संजीदा कहती हैं कि जब वह शुरुआत में टीका और परिवार नियोजन सहित स्वास्थ्य के अन्य मुद्दों को समझाने जाती थी तो लोग उनकी बातों को दरकिनार कर देते थे और हेय दृष्टि से देखते थे। साल- दो साल बीते। एक समय वह भी आया कि लोग उनके पास अब खुद आने लगे । अब तो टीके की तारीख भी संजरी के भरोसे ही रहती और वह भी बड़े मनोयोग से अपने काम को करती रही। 2011 में वह आशा फैसिलैटर बनी । अब उनके अंदर 3 पंचायत और 25 आशा काम कर रही हैं। कोरोना संक्रमण के दौर में जब डोर टू डोर सर्वे करने का अवसर आया। यहां भी संजरी ने अपने 3 टीम के साथ 8 दिनों में 50000 घरों का सर्वे किया। सर्वे के दैरान ही राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने संजरी और उसके टीम का प्रोत्साहन किया । संजरी कहती हैं अब तक उन्होंने लगभग 200 परिवार नियोजन करवाये होंगे । वहीं अब उनके क्षेत्र की 90 प्रतिशत से ऊपर महिलाएं संस्थागत प्रसव करती है। कुल 20 से ऊपर स्वास्थ्य योजनाओ की जिम्मेवारी है उनके ऊपर। संजरी के बारे में गोरौल की बीएचएम रेणु कहती हैं की उसने जमीन से अपनी शुरुआत की थी । अब वह ब्लॉक के आशा और फैसिलैटर क लिए एक आदर्श बन चुकी हैं। संजरी के हौसलों की उड़ान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इंटर के बाद छुटी पढ़ाई को उन्होंने 36 की उम्र में शुरू किया और अब वह समाजशास्त्र में स्नातक भी हैं। आज वह अपने नौकरी और लोगों को जागरूक करने के सपनों के बीच आगे नित नए आयाम जोड़ने का हौसला रखती हैं। वह कहती है कि जो तानों को सह गया वह इस दुनिया मे रह गया । सच में संजरी आज लोगों की आदर्श बन चुकी हैं।