दिल्ली एनसीआर से हमारे संवाददाता की बातचीत साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से एक श्रमिक से हुई। ये कहते है कि क़ानून के तहत श्रमिक को उनके अधिकार मिलना बहुत मुश्किल है। फैक्ट्री के मालिक श्रमिकों का लाभ होने नहीं देती है। श्रम विभाग के इंस्पेक्टर आते है तो कंपनी वाले लिखित में दिखते है कि उन्हें डबल रेट पर ओवरटाइम का पैसा देती है। अगर श्रमिकों के वेतन से मशीन की नुकसान का भरपाई किया जाएगा तो इसमें श्रमिकों का घाटा है। श्रमिक अगर कंपनी में घायल होते है तो ईएसआई के तहत ही उनका इलाज़ हो पाता है।अगर श्रमिकों द्वारा मशीन ख़राब होगी तो इसका भरपाई श्रमिक नहीं कर पाएँगे। अगर काम ज़्यादा रहता है तो श्रमिकों को रविवार को छुट्टी मिलना मुश्किल होता है। जितनी भी सुविधा सरकार से मिलनी चाहिए वो कंपनी श्रमिकों तक पहुँचने नहीं देती है। केवल लिखित कागज़ी में कार्य देखने को मिलता है। कंपनी की कैंटीन में खाना सामान्य ही मिलता है।शहर में वहीं जीवित रह सकता है जो काम करेगा। यूनियन से किसी भी श्रमिक को फ़ायदा नहीं है। यूनियन भी मालिक के पक्ष में चल जाते है ,इसी कारण श्रमिकों का विश्वास यूनियन से उठ चूका है