नमस्कार आदाब साथियों, अभी लॉकडाउन के एक साल पूरे हो गए हैं और इस बीते एक साल के दौरान हम मज़दूरों ने जिस तरह की मुसीबतें झेलीं हैं, विश्व-इतिहास में वैसा कोई दूसरा उदाहरण हमें नहीं मिलता। शहरों ने तो वैसे भी हमें कभी अपना नहीं माना था, लेकिन हमारे अपने गाँव में भी हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं मिला। फिर भी हम बिना हार माने लगातार अपने जीवन का संघर्ष करते रहे। फिर स्थितियां थोड़ी सामान्य होने पर जब हम मजदूर काम की तलाश में उम्मीदों की डोर पकड़े एक बार फिर शहर आये, तो फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों की नौकरियां चली गईं, अधिकांश कंपनियों ने उस दौरान न सिर्फ सैलरी काट ली, बल्कि मज़दूरों को नौकरी से भी बाहर कर दिया। और तो और, अधिकांश श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने वाला विधेयक भी इसी लॉकडाउन के दौरान ही पारित किया गया था। इस कोरोनाकाल के दौरान सरकारी-कार्यप्रणाली की अक्षमता को उजागर करती हुई ऐसी लाखों कहानियां हमारे पास हैं। तो श्रोताओं, यदि आप भी एक श्रमिक हैं और लॉकडाउन के दौरान इस तरह के अनुभवों से आपका भी सामना हुआ है तो इस दौरान आपने क्या देखा और महसूस किया? आपके द्वारा रिकॉर्ड की गयी बातों को हम इस कार्यक्रम में जरूर शामिल करेंगे। तो आने वाले सोमवार, यानि 29 मार्च से शाम 5 बजे हम आपके लिए लेकर आ रहे हैं एक नया कार्यक्रम, जिसका नाम है- "लॉकडाउन का एक साल, हम श्रमिकों को रहेगा याद"।