दिल्ली एनसीआर के कापसहेड़ा बॉर्डर से हमारे एक श्रोता ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि लॉक डाउन के वक़्त वो एक महीनें के लिए अपने गांव चले गए थे। जब वापस आये तो कंपनी प्रबंधन उन्हें यह कह कर वापस काम पर नहीं रख रही कि कंपनी में श्रमिक भर चुके है। वो कंपनी में पांच सालों से कार्यरत है और अब कंपनी वाले उन्हें रिजाइन देने को कह रहे है। कंपनी से ग्रेचुइटी की बात करने पर उन्होंने कहाँ कि अगर ग्रेचुइटी बना होगा तब ही दिया जाएगा

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कभी कभी कम्पन्यां मज़दूरों को काम से रोक देती है और बाद में उन्हें काम से निकाल देती है, यह दोनों एक ही चीज होती है। कोई भी कंपनी अपने मज़दूरों को बिना नोटिस और ठोस कारण के काम से नहीं निकाल सकती, अगर आपके साथ ऐसा हुआ है तो आप लेबर ऑफिस जा सकते हैं। अगर आपकी कम्पनी में 10 से अधिक लोग काम कर रहे हैं तो सोशियल सिक्योरिटी कोड के अंतर्गत आपकी कंपनी को अपने मज़दूरों को एक वर्ष के बाद जब वे किसी भी कारण काम छोड़ते हैं तो उन्हें ग्रेजविटी देना अनिवार्य है। ग्रेजविटी की गणना आपके अंतिम वेतन को काम किये हुए वर्षों और 15 दिनों की संख्या से गुणा करके की जाती है, जिसे 26 से विभाजित किया जाता है। अगर आपके ये हक़ आपको सही तरीके से नहीं मिल रहे तो, हम आपको यह सुझाव भी देते हैं कि पहले आप अपने नियोक्ता से यूनियनों के द्वारा बात करें, और अगर कोई समाधान नहीं मिलता है तभी यूनियन के साथ लेबर ऑफिस जाएं। पहले आपको एक सरल और संक्षेप लिखित शिकायत लेबर ऑफिस में देनी होगी, उसके साथ वह सभी दस्तावेज़ लगाएँ जो यह साबित करें कि आप उस कंपनी में काम कर रहे थे। कंपनी के साथ हुई बातचीत का कुछ लिखित दस्तावेज़ है तो वह भी इस शिकायत के साथ अटैच करें जो बोहत जरूरी होता है। लेबर कमिश्नर दोनों पाकशों को सुनने के बाद आपके और आपके कंपनी के बीच समझौता करने की कोशिश करते हैं, नियम के मुताबिक अगर 45 दिन में समझोता/सेटलमेंट नहीं हुआ तो वो खुद ही संबंधित लेबर कोर्ट में आपके केस को रेफर कर देंगे।
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Oct. 16, 2020, 6:24 p.m. | Tags: govt entitlements   int-PAJ   industrial work   workplace entitlements