चार बैंक यूनियनों ने दो दिन के हड़ताल का ऐलान किया है जो 26 सितंबर से शुरू होगा।अगर इन बैंकों का यह ऐलान सफल होता है तो अगले सप्ताह लगातार 4 दिनों तक बैंक बंद रहेंगे।यह हड़ताल 26 सितंबर से 29 सिंतबर तक रहेगा, जिस दौरान बैंकिंग सेवाएं भी बाधित रहेंगी। इन यूनियनों ने सरकार द्वारा 10 बैंकों का विलय कर 4 बैंक बनाने के फैसले के विरोध में यह फैसला किया है।इन बैंक यूनियनों ने गुरुवार और शुक्रवार को हड़ताल करने की घोषणा की है। 28 सितंबर को महीने के चौथे शनिवार होने की वजह से छुट्टी रहेगी और रविवार को बैंकों का वीकली ऑफ होता है। इसके बाद अगले सप्ताह अधिकतर बैंक केवल तीन दिनों के लिए ही खुले रहेंगे। ऐसे में लगातार चार दिनों तक बैंकों की छुट्टी का असर आम आदमी पर भी पड़ेगा। 30 सितंबर को सोमवार है और इस दिन बैंक खुले रहेंगे। ऐसे में सैलरीड क्लास के लिए राहत की बात है कि उनकी सैलरी नहीं अटकेगी बैंकों बंद होने की वजह से न केवल चेक बल्कि एटीएम सेवाएं भी बाधित हो सकती हैं।हालांकि, हड़ताल के ये दो दिन बैंकों की आधिकारिक छुट्टी नहीं है, ऐसे में उम्मीद है कि इंटरनेट बैंकिंग, ऑनलाइन RTGS, NEFT, IMPS और UPI ट्रांसफर जैसी सुविधांए न बंद हों। कुछ दिन पहले ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों ऐलान किया था कि सरकारी क्षेत्र के 10 बैंकों का विलय करके 4 बैंक बनाये जाएंगे। सरकार इस फैसले के बाद बैंक यूनियनों का कहना है कि विलय के बाद कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने की भी मांग की है। इन बैंक यूनियनों ने यह भी कहा है कि यदि सरकार उनकी बात नहीं मानती है तो वो नवंबर माह में अनिश्चितकाल के लिए हड़ताल पर जाएंगे। एक तरफ त्यौहारों की शुरुआत और दुसरी तरफ बैंको की छुट्टियाँ ऐसे में आम जनता को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है..? क्या बैंक कर्मचारियों की माँगें जायज है..? बैंक कर्मचारियों के बार-बार हड़ताल पर जाने का निर्णय सही है या अपनी माँगें सरकार के समक्ष रखने का कोई और भी विकल्प हो सकता है.?आप अपने कीमती विचार और अनुभव हमारे साथ जरूर साझा करें अपने फोन में नंबर 3 दबा कर। अगर यह जानकारी आपको पसंद आयी तो लाईक का बटन अवश्य दबाएँ।
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जलवायु परिवर्तन के कारण आ रही प्राकृतिक आपदाओं के चलते बांग्लादेश के 1.9 करोड़ बच्चों का जीवन प्रभावित हो रहा है। कई लाख बच्चे छोटी सी उम्र में ही मजदूरी करने को विवश है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, कमजोर तबके के लोग अपने बच्चों को उचित भोजन, शिक्षा व चिकित्सा भी मुहैया नहीं करा पा रहे हैं। इसी कारण देश में बाल-मजदूरी व बाल-विवाह की समस्या बढ़ रही है।यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा, जलवायु परिवर्तन से बांग्लादेश के साथ दुनियाभर में बच्चों का विकास बाधित हो रही है। बांग्लादेश में करीब 1.2 करोड़ बच्चे नदियों के आसपास और 45 लाख तटीय इलाकों में रहते हैं। समय-समय पर चक्रवात व बाढ़ के कारण उनका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। जलवायु परिवर्तन से सूखे की समस्या भी बढ़ गई है।
हर साल की भांति इस साल भी केंद्र सरकार के द्वारा देश का अंतरिम बजट पेश किया गया है। इस बजट में आम और खास सभी लोगों का ख्याल रखा गया है। सरकार ने 'सबका साथ, सबका विकास' एजेंडा के तहत बजट में कई अन्य अहम घोषणाएं की हैं।उन्होंने उम्मीदों के अनुरूप मध्यम वर्ग और किसानों को ध्यान में रखते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। पूर्ण बजट सरकार के सालाना खर्च का ब्यौरा होता है। इसके जरिए सरकार द्वारा साल भर की प्राप्तियों (इनकम) और खर्च का लेखा-जोखा पेश किया जाता है। पूर्ण बजट में आंकड़ों के जरिए सरकार संसद को बताती है कि वो आने वाले वित्त वर्ष में किस चीज पर कितना पैसा खर्च करने वाली है।दोस्तों आप हमें बताए की 2019 का अंतरिम बजट आम जनता के लिए कितना लाभकारी साबित हो रहा है ...? वही अगर बात करे बजट का तो इससे आम किसानों,मजदूरों और एक आम घरेलू महिला के दैनिक जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा ? साथ ही आप ये भी बताएं कि इस बदलाव से आपके और आपके परिवार की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी पर क्या प्रभाव पड़ा है? आपको क्या लगता है सरकार द्वारा बजट के अंर्तगत जो सपने देखे गए है, क्या वह सच हो पाएंगे ? नोटबंदी और जीएसटी के बाद इंकम टैक्स स्लैब में इस बढ़ोतरी को सरकार का सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है लेकिन क्या इससे मध्यम वर्ग को भी बड़ी राहत दी जा रही है ?
-यहां सरकार बना रही किफायती 9592 फ्लैट -मुख्यमंत्री सुकन्या योजना: पढ़ाई से विदाई तक की सौगात -रोजगार आंकड़ों का तंत्र विकसित करना सरकार के लिए अहम -इस हफ्ते आ सकता है आरआरबी ग्रुप डी का रिजल्ट, भर्ती बोर्ड की वेबसाइट पर चेक करें -कुलदीप यादव करियर के सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग पर काबिज, भारत दूसरे स्थान पर
इस वर्ष देश में 17वीं लोक सभा चुनाव होने वाली है। दोस्तों, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव हमेशा ही एक जटिल प्रक्रिया रही है।इसे सरल बनाने के लिए चुनाव आयोग द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का प्रयोगकिया जाता है। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में प्रत्येक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान की प्रक्रिया इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा ही पूरी की जाती है।लेकिन अगर गौर किया जाये तो ईवीएम की गोपनीयता पर हमेशा से ही सवाल उठते रहे हैं।ऐसे में चुनाव के निष्पक्ष नतीजे प्राप्त करने के लिए वर्तमान समय में ईवीएम कितना उपयोगी साबित हो रहा है और इसका क्या-क्या दुष्परिणाम है..? आपके अनुसार वैलेट पेपर से मतदान प्रक्रिया पूरी करने और ईवीएम से कराइ गई चुनाव प्रक्रिया में क्या अंतर है और इन दोनों में से कौन सी प्रक्रिया बेहतर और सुरक्षित है ?और किस तरह से ? अक्सर हमे पढ़ने या सुनने को मिलता है कि मतदान के दौरान ईवीएम ख़राब हो गई, तो क्या कभी आपके चुनाव क्षेत्र में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई है यदि हां तो लोगो ने किस प्रकार अपने मतों का प्रयोग कर मतदान किया है..? साथ ही चुनाव के दिनों में अक्सर खबरें आती है कि मतदान केंद्रों पर ईवीएम मशीन के साथ छेड़-छाड़ की जाती हैं ऐसे में निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को संपन्न कराने में स्थानीय प्रशासन की क्या भूमिका होती है..?
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