बिहार राज्य के जिला मुंगेर से गोरी लाल मंडल , मोबाइल वाणी के माध्यम से चलो चले कार्यक्रम के तहत नेपाल के बारे में बता रहे है।

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एक समय था जब जमालपुर कारखाना एशिया का सबसे बड़ा कारखाना हुआ करता था। इसकी स्थापना 8 फरवरी 1862 को भारत में पहली पूर्ण रेलवे वर्कशॉप सुविधा के रूप में की गई थी। इसकी शुरुआत ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी (ईआईआर) द्वारा भारत में तथाकथित "रेलवे युग" के शुरुआत में की गई थी।

देश में हर साल 26 नवम्बर का दिन संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है ! यह संविधान ही है जो हमें एक आजाद देश का आजाद नागरिक की भावना का एहसास कराता है। जहां संविधान के दिए मौलिक अधिकार हमारी ढाल बनकर हमें हमारा हक दिलाते हैं, वहीं इसमें दिए मौलिक कर्तव्य में हमें हमारी जिम्मेदारियां भी याद दिलाते हैं। 26 नवंबर 1949 का दिन आजाद भारत के इतिहास का बड़ा ऐतिहासिक दिन था!

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भारत आज खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था, एक समय ऐसा भी देश खैरात में मिले अमेरिका के सड़े हुए गेहूं पर निर्भर था। देश की इस आत्मनिर्भरता के पीछे जिस व्यक्ति की सोच और मेहनत का परिणाम है मनकोम्बु संबासिवन स्वामिनाथन जिसे बोलचाल की भाषा में केवल स्वामीनाथन के नाम से जाना जाता था। कृषि को आत्मनिर्भर बनाने वाले स्वामीनाथन का 28 सितंबर 2023 को 98 साल की उम्र में निधन हो गया। उनका जन्म 7 अगस्त 1925, को तमिलनाडु के कुम्भकोण में हुआ था। स्वामीनाथन को देश में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है, जिन्होंने देश की कृषि विकास में अहम योगदान माना जाता है। कृषि सुधार और विकास के लिए दशकों पहले दिए उनके सुझावों को लागू करने की मांग आज तक की जाती है। हालिया कृषि आंदोलन के समय जब देश भर के किसान धरने पर थे तब भी स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग उठी थी, जिसे सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया, जबकि यह वही सरकार है जिसने चुनावों के पहले किसानों को वादा किया था कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का वादा किया था।

कोरोना संक्रमण से उबर चुके लोगों को टीबी से संक्रमित होने का खतरा अधिक, रहें सावधान - लगातार कई दिनों तक खाँसी रहने पर तत्काल कराएं जाँच - जिलाभर के सभी अस्पतालों में निःशुल्क उपलब्ध है टीबी जांच की सुविधा - टीबी के मरीजों को सरकार द्वारा दी जाती है

निमोनिया से बचाव के लिए संपूर्ण टीकाकरण के साथ सतर्कता भी है जरूरी - सर्दियों के मौसम में बढ़ जाती है निमोनिया संक्रमण की संभावना, बच्चों का रखें ख्याल - न्यूमो कॉकल वैक्सीन (पीसीवी) का टीकाकरण निमोनिया से बचाव के लिए है जरूरी मुंगेर, 23 नवंबर। सर्दियों के मौसम में निमोनिया से बचाव के लिए बच्चों का विशेष रूप से ख्याल रखना अति आवश्यक है। दरअसल, बच्चे और बुजुर्गों की रोग- प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है। जिसके कारण इस बीमारी की चपेट में बच्चे व बुजुर्गों के आने की संभावना सर्वाधिक रहती है। मालूम हो कि निमोनिया सांस से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है। यह बैक्टीरिया, वायरस और फंगल की वजह से फेफड़ों में संक्रमण से होता है। इस वजह से बच्चों और बुजुर्गों को सांस लेने में काफी तकलीफ होती है। इस बीमारी से बचने का एकमात्र उपाय न्यूमोकॉकल वैक्सीन (पीसीवी) का टीकाकरण ही है। सभी स्वास्थ्य संस्थानों में निः शुल्क उपलब्ध है पीसीवी का टीका : जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राजेश कुमार रौशन ने बताया कि निमोनिया के प्रारंभिक लक्षण सर्दी- खांसी जैसे हो सकते हैं। ज्यादातर कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग इससे जल्दी ग्रसित हो जाते हैं। जिन बच्चों को पीसीवी का टीका नहीं पड़ा है, उन बच्चों को इस बीमारी की चपेट में आने की संभावना अधिक रहती। इस बीमारी में मवाद वाली खांसी, तेज बुखार एवं सीने में दर्द समेत अन्य परेशानी होती है। इस बीमारी को टीकाकरण से रोका जा सकता है। इसलिए अपने बच्चों को संपूर्ण टीकाकरण के अंतर्गत स्वास्थ्य संस्थानों में उपलब्ध निःशुल्क पीसीवी का टीका निश्चित रूप से लगवाएं। उन्होंने बताया कि बच्चे को जन्म के पश्चात दो साल के अंदर सभी तरीके के पड़ने वाले टीके जरूर लगवाने चाहिए। इससे बच्चे की रोग- प्रतिरोधक क्षमता मजबूत तो होती ही है, इसके अलावा वह 12 से अधिक प्रकार की विभिन्न गंभीर बीमारियों से भी दूर रहता है। - जानें क्या है निमोनिया : उन्होंने बताया कि निमोनिया सांस से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है। इसकी वजह से फेफड़ों में संक्रमण होता है। आम तौर पर यह बीमारी बुखार या जुखाम होने के बाद ही होता है। सर्दी के मौसम में बच्चों और बुजुर्गों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने की वजह से यह बीमारी ज्यादा होती है। निमोनिया का प्रारम्भिक इलाज सीने का एक्स-रे करने के बाद क्लीनिकल तरीके से शुरू होता है। निमोनिया माइक्रो बैक्टीरिया वायरल, फंगल और पारासाइट की वजह से उत्पन्न संक्रमण की वजह से होता है। इसका संक्रमण सामुदायिक स्तर पर भी हो सकता है। - निमोनिया से बचाव के उपाय : ऐसे तो निमोनिया से बचाव का एक मात्र उपाय टीकाकरण हीं है। कुछ सावधानी बरतने के बाद काफी हद तक इसके संक्रमण से बचा जा सकता है। इसके लिए नवजात एवं छोटे बच्चों के रखरखाव, खान-पान एवं कपड़े पहनाने में सावधानी बरतने की आवश्यकता है। सर्दी के मौसम में हमेशा बच्चों को गर्म कपड़े पहनाने एवं खाने-पीने में गर्म पदार्थो का ही इस्तेमाल करना चाहिए। इसके साथ ही वैसे लोगों के संपर्क से दूर रखने की आवश्यकता है, जिन्हें पहले से सांस संबंधी बीमारी हो। इसके साथ बुजुर्गों सहित अन्य लोगों को भी काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। - निमोनिया का यह है प्रारंभिक लक्षण : निमोनिया का प्रारंभिक लक्षण, बुखार के साथ पसीना एवं कंपकपी होना, अत्यधिक खांसी में गाढ़ा, पीला, भूरा या खून के अंश वाला बलगम आना, तेज-तेज और कम गहरी सांस लेने के साथ सांस का फूलना (जैसे कि सांस लेने के दौरान आवाज होना), होंठ या अंगुलियों के नाखून नीले दिखाई देना, बच्चों की परेशानी व उत्तेजना बढ़ जाना है।

शिशुओं को डिप्थीरिया के संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए टीका है जरूरी : डीआईओ - डिप्थीरिया के लक्षणों की जानकारी और नियमित टीकाकरण से बचाव संभव - डिप्थीरिया का टीका केवल नवजात शिशु के लिए ही नहीं किशोरियों और गर्भवतियों के लिए भी है आवश्यक मुंगेर, 13 अक्टूबर। डिप्थीरिया को आम भाषा में गलघोंटू कहा जाता है। यह सांस से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है। 5 साल से कम उम्र के शिशु, रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होने की वजह से आसानी से इस रोग की चपेट में आ सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक शोध के अनुसार विश्व में जिन गंभीर संक्रामक रोगों से लगभग 20 से 30 लाख शिशुओं की मौत हुई है, उनमें डिप्थीरिया भी प्रमुख है। इससे बचाव के लिए जन्म के बाद शिशुओं को डीपीटी (डिप्थीरिया-परटुसिस-टेटनस) का टीका लगाना आवश्यक है। क्या हैं इस रोग के लक्षण और बचाव ? मुंगेर के जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राजेश कुमार रौशन ने बताया कि गला घोंटू ‘कोरनीबैक्टीरियम डिप्थेरी’ जीवाणु से फैलने वाला एक संक्रामक बीमारी है। इसके संक्रमण से बच्चों के गला, नाक और स्वर यंत्र (सांस नली का ऊपरी हिस्सा ) में सूजन आ जाती है । इसके कारण उन्हें सांस लेने या बात करने में दर्द सहित अन्य कठिनाइयां होती है। यहाँ तक की हृदय और आँख भी इससे बिना प्रभावित हुए नहीं रहते हैं। यदि शिशु को कमजोरी, गले में दर्द या खराश, भूख नहीं लगना या खाना निगलने में तकलीफ़ होना, गले के दोनों तरफ टॉन्सिल फूल जाना जैसे लक्षण दिखे तो बिना देर किए चिकित्सक के संपर्क करना चाहिए क्योंकि इस मामले में तनिक भी लापरवाही शिशु के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। इसके लिए आवश्यक है कि प्रत्येक अभिभावक जागरूक होकर अपने शिशुओं को डेढ़, ढाई और साढ़े तीन महीने पर डीपीटी का टीका तथा 18 महीने और 5 वर्ष की उम्र में बूस्टर की डोज़ जरूर दिलवाएँ। सम्पूर्ण टीकाकरण चार्ट के अनुसार सभी टीके दिलवाकर शिशु संबन्धित रोगों को पूर्ण रूप से खत्म किया जा सकता है। गर्भवतियों महिलाओं और किशोरियों को भी डिप्थीरिया से बचाना है जरूरी : उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डिप्थीरिया की वैक्सीन एक निश्चित समय तक ही शरीर को संक्रमण से बचा सकती है। वैक्सीन का प्रभाव खत्म होने पर फिर से रोग होने की संभावना लगी रहती है। इसलिए केवल शिशुओं को ही नहीं बल्कि किशोरियों और गर्भवती महिलाओं को भी गलाघोंटू के संक्रमण से बचाने के लिए वैक्सीन लगाए जाने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्देशित टीकाकरण सूची के अनुसार किशोरियों को भी 10 और 16 साल पर तथा गर्भवती महिलाओं के लिए पहला टीका आरंभिक गर्भावस्था में और दूसरा टीका पहले टीके से एक माह बाद दिया जाता है। बूस्टर डोज तब दिया जाएगा यदि गर्भधारण पिछली गर्भावस्था के तीन वर्ष के भीतर हुआ हो और टीडी की दो खुराक दी जा चुकी हो। डिप्थीरिया के संक्रमण से बचने के लिए धूल-मिट्टी और ठंड से बचाना है आवश्यक : कोई भी संक्रमण गंदे धूल और सीलन से भरे स्थानों पर जल्दी पनपते हैं। दिवाली की साफ-सफाई के दौरान धूल से बच्चों और गर्भवतियों में डिप्थीरिया जैसे रोगों से संक्रमित होने का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए उन्हें इन सबसे बचाकर रखना चाहिए । इसके साथ ही अति आवश्यक होने पर ही घर से बाहर जाने दें। इस दौरान मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग तथा शारीरिक दूरी के नियम का पालन करने के लिए भी जागरूक किए जाने की आवश्यकता है। इसके साथ हीं हवा में फैले महीन धूल के कण और प्रदूषण हानिकारक हो सकते हैं। ठंड से भी गले नाक और मुंह में सूजन या दर्द हो सकता है इसलिए बढ़ते ठंड से बचें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले आहार और पेय पदार्थों को भोजन में शामिल कर अपने शरीर को रोग से लड़ने के लिए मजबूत बनाएँ।

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