हमारे देश में सभी को शिक्षा का अधिकार है लेकिन लड़कियों को इसके लिए कहीं अधिक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार घर के काम के बोझ के साथ स्कूल के बस्ते का बोझ उठाना पड़ता है तो कभी लोगों की गंदी नज़रों से बच-बचा के स्कूल का सफर तय करना पड़ता है। जैसे-तैसे स्कूल पहुंचने के बाद भी यौन शोषण और भावनात्मक शोषण की अलग चुनौती है जो रोज़ाना उनके धैर्य और हिम्मत की परीक्षा लेती है। ऐसे में लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन के साथ साथ समाज की भी है। तब तक आप हमें बताइए कि * -----लड़कियों के स्कुल छोड़ने के या पढ़ाई पूरी ना कर पाने के आपको और क्या कारण नज़र आते है ? * -----आपके हिसाब से हमें सामाजिक रूप से क्या क्या बदलाव करने की ज़रूरत है , जिससे लड़कियों की शिक्षा अधूरी न रह पाए।

जहांगीराबाद (सीतापुर)। मोहल्लाता मिशन के अंतर्गत पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के द्वारा निःशुल्क कम्प्यूटर प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले छात्रों को प्रमाण पत्र वितरण समारोह एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें डी पी आर ओ मनोज कुमार मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंचायत विभाग के रवि शंकर गिरि ने की तथा संचालन अकादमी के प्रबंधक फ़ैज़ान बेग ने किया। वरिष्ठ समाजसेवी एवं पूर्व सभासद एहतिशाम ने अतिथियों का स्वागत किया। इस मौके पर छात्रों को दक्षता प्रमाण-पत्र वितरित किये गये। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डी पी आर ओ मनोज कुमार ने उपस्थित अभिभावकों और छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान समय में कम्प्यूटर का ज्ञान सभी के लिए बहुत जरूरी है। क्योंकि जीवन के हर क्षेत्र में कदम-कदम पर इसकी सभी को आवश्यकता पड़ती रहती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को कम्प्यूटर की जानकारी होनी चाहिए।

सीतापुर। निर्माण श्रमिकों के बच्चों की निशुल्क शिक्षा के लिए लखनऊ जिले के मोहनलालगंज स्थित अटल आवासीय विद्यालय ने आवेदन मांगें हैं। सहायक श्रमायुक्त उमेश कुमार ने बताया कि उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड द्वारा पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के बच्चों को निशुल्क पढ़ाया जाएगा। इसमें कक्षा 6 से 12 तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाएगी। इसके तहत शैक्षिक वर्ष 2024-25 के लिए कक्षा 6 में 140 सीटों (70 बालक व 70 बालिकाओं) और कक्षा 9 में 140 सीटों (70 बालक व 70 बालिकाओं) के प्रवेश के लिए पात्र अभ्यर्थी आवेदन कर सकते हैं। यह आवेदन पत्र ऑफलाइन आमंत्रित किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि आवेदक अपना आवेदन सभी अभिलेखों के साथ 6 फरवरी को शाम 5 बजे तक श्रम विभाग कार्यालय में जमा कर सकते हैं। अभ्यर्थियों की प्रवेश परीक्षा 16 फरवरी को सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक होगी।

सीतापुर। 12460 शिक्षक भर्ती के तहत शुक्रवार को डायट पर काउंसलिंग होगी। काउंसलिंग में करीब 1900 अभ्यर्थियों को बुलाया गया है। इसके लिए बेसिक शिक्षा विभाग में दिनभर तैयारियां चलती रही। बीईओ सहित बीएसए कार्यालय के कर्मचारियों की ड्यूटी डायट पर लगाई गई है। सुबह 10 बजे से डायट पर काउंसलिंग प्रारंभ होगी। इसके लिए पांच काउंटर बनाए गए है। डायट के बाहर लिस्ट चस्पा की जाएगी। इस लिस्ट में अभ्यर्थी अपना नाम देखकर काउंटर पर जाकर काउंसलिंग कराएंगे। जब तक सभी अभ्यर्थियों की काउंसलिंग नहीं हो जाएगी तब तक प्रक्रिया चलती रहेगी। जिले में 860 सीटों के लिए 1900 अभ्यर्थियों को बुलाया गया है। बीएसए अखिलेश प्रताप सिंह ने बताया तैयारियां पूरी हो गई है।

सीतापुर। जिले के 19 विकास खंडों के 1086 विद्यालयों ने यू डायस पोर्टल पर अपनी प्रोफाइल अपडेट नहीं की है। इसमें अधिकांश संख्या शहरी व नगर क्षेत्र में स्थित विद्यालयों की है। बीएसए अखिलेश प्रताप सिंह ने इसकी समीक्षा कर स्कूलों को जल्द डाटा बेस अपडेशन का निर्देश दिया है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक इसमें करीब 600 स्कूल शहरी व नगर क्षेत्र में स्थित हैं। परिषदीय संग वित्त पोषित विद्यालय भी सूची में शामिल हैं। इस सूची में कुछ मदरसे भी शामिल हैं। गौरतलब है कि जिले में बेसिक शिक्षा परिषद के अधीन संचालित सभी शिक्षण संस्थानों को यू डायस पोर्टल पर अपना डेटा बेस अपडेट करना है। बृहस्पतिवार को इसकी समीक्षा में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने 1086 स्कूलों को चिन्हित किया है। इन स्कूलों ने यू डायस पोर्टल पर अपना डेटा बेस अपडेट नहीं किया है। डेटाबेस अपडेट न होने के कारण स्कूलों में शासकीय योजनाओं का लाभ पहुंचने में समस्या आएगी। जिसमें मध्यान्ह भोजन योजना, यूनीफार्म व विद्यालय में अन्य योजनाएं शामिल हैं।

लड़कियों के सपने सच में पुरे हो , इसके लिए हमें बहुत सारे समाजिक बदलाव करने की ज़रूरत है। और सबसे ज्यादा जो बदलाव की ज़रूरत है, वो है खुद की सोच को बदलने की। शिक्षा महिलाओं की स्थिति में बड़ा परिवर्तन ला सकती है लेकिन शिक्षा को लैंगिक रूप से संवेदनशील होने की जरूरत है। गरीब और वंचित समूह के बच्चों को जीवन में शिक्षा में पहले ही सीमित अवसर मिलते हैं उनमें से लड़कियों के लिए और भी कम अवसर मिलते हैं, समान अवसर तो दूर की बात है। सरकारी स्तर पर जितने ही प्रयास किये जा रहे हों, यदि हम समाज के लोग इसके लिए मुखर नहीं होंगे , तब तक ऐसी भयावह रिपोर्टों के आने का सिलसिला जारी रहेगा और सही शौचालय न होने के कारण छात्राओं को मजबूरी में स्कूल छोड़ने का दर्द सताता रहेगा। तब तक आप हमें बताएं कि *----- आपके गांव में सरकारी स्कूल में शौचालय है, और क्या उसकी स्थिति कैसी है? *----- क्या आपको भी लगता है कि सरकारी स्कूल में शौचालय नहीं होने से लड़कियों की शिक्षा से बाहर होने का बड़ा कारण है *----- शौचालय होने और ना होने से लड़कियों की शिक्षा किस प्रकार प्रभावित हो सकती है?

सरकार हर बार लड़कियों को शिक्षा में प्रोत्साहित करने के लिए अलग-अलग योजनाएं लाती है, लेकिन सच्चाई यही है कि इन योजनाओं से बड़ी संख्या में लड़कियां दूर रह जाती हैं। कई बार लड़कियाँ इस प्रोत्साहन से स्कूल की दहलीज़ तक तो पहुंच जाती है लेकिन पढ़ाई पूरी कर पाना उनके लिए किसी जंग से कम नहीं होती क्योंकि लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने और पढ़ाई करने के लिए खुद अपनी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है। लड़कियों के सपनों के बीच बहुत सारी मुश्किलें है जो सामाजिक- सांस्कृतिक ,आर्थिक एवं अन्य कारकों से बहुत गहरे से जुड़ा हुआ हैं . लेकिन जब हम गाँव की लड़कियों और साथ ही, जब जातिगत विश्लेषण करेंगें तो ग्रामीण क्षेत्रों की दलित-मज़दूर परिवारों से आने वाली लड़कियों की भागीदारी न के बराबर पाएंगे। तब तक आप हमें बताइए कि * -------आपके गाँव में या समाज में लड़कियों की शिक्षा की स्थिति क्या है ? * -------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने की होड़ बाकी है ? * -------साथ ही लड़कियाँ को आगे पढ़ाने और उन्हें बढ़ाने को लेकर हमे किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ?

दोस्तों, भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट से यह पता चला कि वर्तमान में भारत के करीब 6.57 प्रतिशत गांवों में ही वरिष्ठ माध्यमिक कक्षा 11वीं और 12वीं यानी हायर एजुकेशन के लिए स्कूल हैं। देश के केवल 11 प्रतिशत गांवों में ही 9वीं और 10वीं की पढ़ाई के लिए हाई स्कूल हैं। यदि राज्यवार देखें तो आज भी देश के करीब 10 राज्य ऐसे हैं जहां 15 प्रतिशत से अधिक गांवों में कोई स्कूल नहीं है। शिक्षा में समानता का अधिकार बताने वाले देश के आंकड़े वास्तव में कुछ और ही बयान करते हैं और जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति समाज की प्रगति का संकेत देती है, वहीं लड़कियों की लड़कों तुलना में कम संख्या हमारे समाज पर प्रश्न चिह्न भी लगाती है? वासतव में शायद आजाद देश की नारी शिक्षा के लिए अभी भी पूरी तरह से आजाद नहीं है। तब तक आप हमें बताइए कि * ------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने लाइन में खड़ी है ? * ------आपके हिसाब से लड़कियाँ की शिक्षा क्यों नहीं ले पा रहीं है ? लड़कियों की शिक्षा क्यों ज़रूरी है ? * ------साथ ही लड़कियाँ की शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है ?

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली और गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी समेत 12 से अधिक विश्वविद्यालयों में जनवरी सत्र से ऑनलाइन कोर्स की पढ़ाई भी हो सकेगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने इन विश्वविद्यालयों में जनवरी सत्र से स्वयं प्लेटफाॅर्म पर चलने वाले ऑनलाइन कोर्स की पढ़ाई की मंजूरी दे दी है। खास बात यह है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में 1247 ऑनलाइन कोर्सेज में जनवरी सत्र में दाखिला होगा, जबकि परीक्षा मई में आयोजित की जाएगी।यूजीसी के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, सभी राज्यों और विश्वविद्यालयाें को ऑनलाइन कोर्स में पढ़ाई के लिए पत्र भेजकर जानकारी दे दी गई है। स्वयं बोर्ड की बैठक में जनवरी 2024 सेमेस्टर के लिए 1247 कोर्सेज को मंजूरी दी गई थी। इन सभी कोर्सेज को यूजीसी (क्रेडिट फ्रेमवर्क फॉर ऑनलाइन लर्निंग कोर्स थ्रू स्टडी वेब्स ऑफ एक्टिव-लर्निंग फॉर यंग एस्पायरिंग माइंड्स ) रैग्लयूलेशन 2021 के तहत मंजूरी दी गई है। इसमें स्नातक और स्नातकोत्तर में नॉन इंजीनियरिंग में 154, यूजी व पीजी इंजीनियरिंग में 743, इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी में 225 डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स, आईआईएम में मैनेजमेंट के 63, यूजीसी के चार, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के 18, टीचर ट्रेनिंग के 40 कोर्सेज शामिल हैं। इन सभी कोर्सेज की पढ़ाई करने पर छात्रों को क्रेडिट भी मिलेंगे। यह क्रेडिट उनकी डिग्री व डिप्लोमा में जुड़ेंगे। इन कोर्सेज के लिए भारतीय समेत कोई भी छात्र पंजीकरण कर पढ़ाई कर सकता है।

राजीव की डायरी को सुनने के बाद जिज्ञासा से सीतापुर की कुछ गॉव में जाकर मिडडे खाने के बारे में जानकारी ली। तो लोगों से बात की लोगों से बात करके यह पता चला कि स्कूलों में जो मिडवे यानी कि यह स्कूलों में जो खाना दिया जाता है, वह कितना स्वास्थ्य होता है या स्वास्थ्य लाभ इसकी जानकारी के लिए स्कूल के प्रधानाचार्य से बात की और साक्षात वहां पर देखा तो सीतापुर की कई स्कूलों में स्थिति काफी अच्छी है| खाना पौष्टिक रहता है और जो समय-समय पर दिया जाता है,वह भी अच्छा होता है| कई शिक्षक मिडिल का ही खाना खाते हैं, जिससे उनको स्वाद का भी पता चलता है कि बच्चों को कैसा खाना दिया जा रहा है| सबसे अच्छी बात यही है कि टीचर और प्रिंसिपल दोनों ही क्योंकि खाने को लेकर बहुत ही सजक रहते हैं|