हमारी सूखती नदियां, घटता जल स्तर, खत्म होते जंगल और इसी वजह से बदलता मौसम शायद ही कभी चुनाव का मुद्दा बनता है। शायद ही हमारे नागरिकों को इससे फर्क पड़ता है। सोच कर देखिए कि अगर आपके गांव, कस्बे या शहर के नक्शे में से वहां बहने वाली नदी, तालाब, पेड़ हटा दिये जाएं तो वहां क्या बचेगा। क्या वह मरुस्थल नहीं हो जाएगा... जहां जीवन नहीं होता। अगर ऐसा है तो क्यों नहीं नागरिक कभी नदियों-जंगलों को बचाने की कवायद को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते। ऐसे मुद्दे राजनीति का मुद्दा नहीं बनते क्योंकि हम नागरिक इनके प्रति गंभीर नहीं हैं, जी हां, यह नागरिकों का ही धर्म है क्योंकि हमारे इसी समाज से निकले नेता हमारी बात करते हैं।

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पन्ना के निवासी चांद गुप्ता ने बताया कि पन्ना के निवासी शिवम परमार ने कोरोना काल मे अपनी निजी जमीन पर एक लाख पेड़ लगाने का संकल्प किया है।

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नगर के युवाओं की पहल, पर्यावरण को हराभरा बनाने में दे रहे अपना योगदान,रानीगंज मोहल्ला वार्ड क्रमांक 16 में रहने वाले कुछ युवाओं द्वारा आम, नीम तथा जामुन के पौधों के साथ पौधारोपण किया गया। ना सिर्फ स्वयं पौधारोपण किया, बल्कि पौधे की सुरक्षा का संकल्प भी लिया, तथा स्थानीय रहवासियों को भी इस मुहिम में अपना योगदान देने की अपील की गई।

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दीपावली दियों से या धमाकों से? अबकि दीवाली पर हमें यह सोचना ही होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे शहरों की हवा हमारे इस उत्साह को शायद और नहीं झेल पा रही है। हवा इतनी खराब है कि सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। भारत की राजधानी दिल्ली इस मामले में कुछ ज्यादा बदनाम है। दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित जगहों में शामिल दिल्ली में प्रदूषण इतना अधिक है कि लोगों का रहना भी यहां दूभर हो रहा है।

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जलवायु की पुकार कार्यक्रम के अंतर्गत इस अंतिम प्रोमों में हम जानेंगे कि हमने जलवायु से सम्बंधित अनेक बातें की हैं और जानकारियों पर विचार भी किया है