महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक स्वतंत्रता के लिए ऐसा क्या किया जा सकता है कि जिससे कि उनके जीवन को बेहतर बनाया जा सके, और एक स्वतंत्र नागरिक के तौर पर माना जा सके बनिस्बत इसके कि वह किसी की बेटी या किसी की पत्नी है? जबकि संविधान महिला और पुरुष में भेद किये बिना सबको समान मानता है, इसका जवाब है, भूमि अधिकार और संपत्ती पर हक। दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं ? *----- "* इतिहास से लेकर वर्तमान तक महिलाओं की सशक्त भूमिका रही है, उसके बाद भी अभी तक उन्हें विकास की मुख्यधारा में नहीं लाया जा सका है, आपको इसके पीछे क्या कारण लगते है ? * महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने और उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने के लिए किस तरह के सुधारों की आवश्यकता है? "

उत्तरप्रदेश राज्य के बलरामपुर ज़िला से लवली पांडेय ,मोबाइल वाणी के माध्यम से नारी पर आधारित एक कविता सुना रही है। 'भूल से भी न कर नारी का अपमान...'

उत्तरप्रदेश राज्य के बलरामपुर ज़िला से श्रीदेवी सोनी ,मोबाइल वाणी के माध्यम से बताती है कि संपत्ति कानून के तौर पर महिलाओं के जीवन को प्रभावित करता है। महिलाओं के लिए जो संपत्ति है उनके जीवन के लिए वो ज़रूरी है। शादी के बाद महिला अपने ससुराल में रहती है ,अगर शादी के कुछ साल बात संपत्ति को हासिल किये बगैर मृत्यु हो जाता है तो उन्हें रहने में समस्या हो जाती है। ससुराल और मायके में महिला को दिक्कत होने लगती है। इसीलिए जिस तरह पुरुषों का संपत्ति में अधिकार है उसी तरह महिला का भी है

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला बलरामपुर से पूजा यादव , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहती है कि महिलाओं को भूमि अधिकार मिलना चाहिए जिससे उनको आर्थिक लाभ मिल जाता।

उत्तरप्रदेश राज्य के बलरामपुर जिला से नीलू पांडेय ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिल रहा है। महिलाओं को उनका अधिकार नहीं मिलने के कारण उन्हें काफी समस्या का सामना करना पड़ता है।

उत्तर प्रदेश राज्य के बलरामपुर जिला से काजल सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि भारत की महिलाएं सामाजिक और आर्थिक रूप से सबसे अधिक पिछड़ी हुई हैं। पिछले दिनों वैश्विक महामारी के कारण उनकी स्थिति पहले से बदतर ही हुई है। इसकी जानकारी महिला शांति एवं सुरक्षा सूचकांक भारत 2019 के 133 वें स्थान से 148 वें स्थान पर आ गया है। भारत में महिलाओं के ज़मीन पर मालिकाना हक़ को लेकर उपलब्ध मौजूदा आंकड़ा व्यापक नहीं है। लेकिन फिर भी यह एक निराशाजनक तस्वीर पेश करता है। आर्थिक रूप से सक्रिय महिलाओं में 80 फ़ीसद महिलाएं कृषि के क्षेत्र में काम करती हैं लेकिन उनमें से केवल 13 फ़ीसद महिलाओं के पास ही खेती की ज़मीन का मालिकाना हक़ है।महिला सशक्तिकरण के साधन के रूप में भूमि अधिकारों का महत्व स्पष्ट है, क्योंकि यह महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा, आश्रय, आय और आजीविका के अवसर प्रदान करता है। लेकिन भारत में भूमि से संबंधित मौजूदा कानूनी ढांचा महिलाओं के भूमि अधिकारों को कितनी गम्भीरता से लेता है? और वे कौन सी समस्याएं हैं जिन पर बात करने की आवश्यकता है

उत्तरप्रदेश राज्य के बलरामपुर जिला से अनीता मिश्रा ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि हिन्दू स्त्रियों के विधवा होने पर मृत पति के संपत्ति में अधिकार प्रदान करने की दृष्टि से 1937 में यह अधिनियम पारित किया गया था। जिसमे प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का बटवारा किये बिना ही मर गया है तो उसकी विधवा को भी पुत्र के बराबर हिस्सा मिलेगा। विस्तारपूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुने पूरी खबर।

उत्तरप्रदेश राज्य के बलरामपुर ज़िला से अंकिता मिश्रा ,मोबाइल वाणी के माध्यम से कहती है कि वर्तमान में भारत में विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं का कुल कार्यशील संख्या 31.6 है तथा संगठित क्षेत्र में नौकरी करने वाली महिलाओं की संख्या 49 लाख से अधिक है। सरकार ने महिला के सामाजिक व आर्थिक कल्याण के लिए कई योजना बनाई है। इससे महिलाओं की स्थिति में सुधार हुई। है

उत्तर प्रदेश राज्य के बलरामपुर जिला से प्रियंका सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिला आज पुरुषों से किसी भी मामले में कम नहीं है। हर क्षेत्र में महिलायें अपनी पहचान बना रही है। महिलायें जमीन की कुशल प्रबंधक होती है। अगर महिलाओं को कानूनी तौर पर उन्हें अधिकार प्राप्त हो तो वो सशक्त बनेंगी। जिससे उन्हें बाहर के खतरों का कम डर होगा

उत्तर प्रदेश राज्य के बलरामपुर जिला से प्रियंका सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिला और पुरुष में भेदभाव हर जगह है। कहीं ज्यादा तो कहीं कम है। काफी प्रयासों के बाद हर क्षेत्र में महिला कार्य कर रही हैं और सुधार भी देखने को मिल रहा है। भारत का विकास गांव से जुड़ा हुआ है। हमारे संविधान में भी इस बात का उल्लेख है की गांव के विकास के लिए उन्हें शक्ति और अधिकार पर्याप्त मात्रा में प्रदान किये जाने चाहिए। इन्हीं बातों का ख्याल रखते हुए ग्रामीण महिलाओं को गांव का नेतृत्व करने के लिए अधिकार और प्रशिक्षण दिए गए हैं