कोरोना-संक्रमण के कारण लगे लॉकडाउन ने एक तरफ़ जहाँ मज़दूरों की परेशानी बढ़ा दी, वहीं दूसरी तरफ कम्पनियों में हो रही छँटनी ने उनके संकट को दुगना कर दिया है। इस तरह इस दोहरी मार ने मज़दूरों की कमर तोड़ कर रख दी है। लेकिन यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि उद्योग जगत भी लॉकडाउन के कारण उनके व्यापार को हुए घाटे से अछूता नहीं है और चिंतित है। लेकिन हमें यह भी जानने और समझने की ज़रूरत है कि अपने नुक़सान का हवाला देते हुए बिना सूचना दिए, श्रमिकों को धमकी देकर अगर कोई कम्पनी मनमाने तरीके से श्रमिकों को काम से बे-दखल कर रही है, तो यह सरासर गैर क़ानूनी है। तो चलिए बिना देर किये सुनते हैं इस विषय पर श्रमिक साथियों की राय-प्रतिक्रिया.... जैसे-जैसे उत्पादन का आकार बढ़ता गया, उसी के समानांतर पूँजीवादी-व्यवस्था बाज़ार पर हावी होती गयी और श्रमिकों का शोषण बढ़ता गया और श्रमिकों द्वारा इसका विरोध किये जाने पर औद्योगिक विवाद भी उठते रहे। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि जिन श्रमिकों को शहर से, यानि काम से निकाला जा रहा है, तो बेरोज़गार होकर अब वे कहाँ जायेंगे? अपना जीवन-यापन कैसे करेंगे? क्या इस मुश्किल समय में सरकार का कोई कर्तव्य नहीं बनता? हमें ज़रूर बताएँ अपने फोन में नंबर 3 दबाकर