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जंगल में आग लगने से जीव जंतु के साथ पर्यावरण की भी भारी क्षति होती है :मुकेश महतो
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शुरुआती दौर में मनुष्य प्रकृति के वास्तविक रुप के प्रति आकृषित होता है। उसे निस्वार्थ भावना से संजोता है। परन्तु जब तक उसे अपने आर्य से नहीं जोड़ता तब तक उसके प्रति समर्पण का भाव कमतर होता है।
प्राकृतिक सौंदर्यता जीवन कल के विभिन्न परिस्थितियों पर आश्रित है।
पर्यावरण को गति ही आनंदित करती है जैसे लहराते खेत खलियान, झूमता बारिश, सरसरती हवाये, खुशनुमा बाग बगीचे इत्यादि जो हमें काल्पनिक दुनिया से वास्तविक दुनिया का अनुभूति करती हे। जो हर लोगों को आनंदित करती है।
आज के समय पर्यावरण नाम समर्पित है इसे कहना अनुचित नही होगा। प्रकृति ही जान और जहान है।
प्रकृति कभी किसी के भाव से नहीं चलता, इसका संरक्षण बहुत जरूरी है। किसी भी वस्तु का अत्यधिक होना या उसके पीछे भागना नुकसान देह है। प्यार और भावना हमे पर्यावरण से जोड़ता जरूर है, पर उसके प्रति झुकाव होना जरूरी है।
विश्व मंच पर भारत का अभिन स्थान होने का एक प्रमुख कारण ये हे कि हम प्रकृति को जीवन में अमूल्य स्थान देते हे।
बिना अनुमति का सी सी एल द्वारा प्रदूषण फैलाने का आरोप आमजन ट्रेड यूनियन नेताओं तथा सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा लगातार लगाया जाता रहा है।