2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

हमारी सूखती नदियां, घटता जल स्तर, खत्म होते जंगल और इसी वजह से बदलता मौसम शायद ही कभी चुनाव का मुद्दा बनता है। शायद ही हमारे नागरिकों को इससे फर्क पड़ता है। सोच कर देखिए कि अगर आपके गांव, कस्बे या शहर के नक्शे में से वहां बहने वाली नदी, तालाब, पेड़ हटा दिये जाएं तो वहां क्या बचेगा। क्या वह मरुस्थल नहीं हो जाएगा... जहां जीवन नहीं होता। अगर ऐसा है तो क्यों नहीं नागरिक कभी नदियों-जंगलों को बचाने की कवायद को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते। ऐसे मुद्दे राजनीति का मुद्दा नहीं बनते क्योंकि हम नागरिक इनके प्रति गंभीर नहीं हैं, जी हां, यह नागरिकों का ही धर्म है क्योंकि हमारे इसी समाज से निकले नेता हमारी बात करते हैं।

कल्याणपुर प्रखंड के पंचायत समिति सभागार व बुनियादी विद्यालय जनार्दनपुर में आगामी लोक सभा चुनाव को लेकर शुक्रवार को सेक्टर पदाधिकारियों की बैठक हुई। एसडीओ दिलीप कुमार के उपस्थिति में हुई बैठक में कुल सोलह मुद्दो पर चर्चा हुई।जिसमें वोटिंग प्रतिशत को अधिक बढ़ाना ,सभी लोगों का नाम मतदाता सूची में सुनिश्चित करना ,उसका मतदाता क्रमांक सहित एक सूची तैयार करना,बूथ लेवल पर एजेंट से संपर्क करना है और कार्यों की जानकारी देना और फीडबैक लेना दिव्यांग एवम् 85 वर्ष से अधिक मतदाताओं का सूची तैयार करना, जो मतदाता बाहर चले गए हैं या जिस मतदाता की मृत्यु हो गया है वैसे मतदाता को चिन्हित करने, समय से पूर्व मतदाता पर्ची वितरण की तैयारी , बूथ लेवल असिस्टेंट एक्टिव करने, मतदान केंद्र पर दीवार लेखन हो मतदान केंद्र का नाम संख्या स्पष्ट मुद्रित , शाम तक मतदान केन्द्र का भौतिक सत्यापन प्रतिवेदन प्रस्तुत करने , प्रत्येक बुथ से 10 व्यक्तियों का नाम चिन्हित करने, ए एम एफ मतदान केंद्रों पर सारी सुविधाएं उपलब्ध हो इसको सुनिश्चित करना ,हेल्प डेस्क के लिए पर्याप्त जगह हो उसकी व्यवस्था,बीएलओ एप पर फैसेलिटीज को अपडेट करना, सभी बीएलओ अपना डायरी बनाकर उसमें मतदान केंद्र से संबंधित डिटेल जानकारी रखना ,सभी सेक्टर पदाधिकारी सप्ताह में एक दिन सभी बीएलओ के साथ डिटेल समीक्षा बैठक करना , मतदान केंद्रों पर पहुंचने के लिए रूट चार्ट क्लियर मुद्रित रहने के बारे में सभी सेक्टर पदाधिकारी से प्रतिवेदन प्रतिदिन करने का की बात करने का निर्देश दिया।मौके पर प्रखंड विकास पदाधिकारी देवेंद्र कुमार ने बताया कि सभी सेक्टर पदाधिकारी प्रतिदिन समीक्षा बैठक में दिए गए टास्क का प्रतिवेदन निर्वाचन कोषांग में प्रस्तुत करें। जिसके आधार पर आगामी चुनाव से पूर्व सभी लक्ष्य समय से पूर्व हासिल कर लिया जाए।

कोई भी राजनीतिक दल हो उसके प्रमुख लोगों को जेल में डाल देने से समान अवसर कैसे हो गये, या फिर चुनाव के समय किसी भी दल के बैंक खातों को फ्रीज कर देने के बाद कैसी समानता? आसान शब्दों में कहें तो यह अधिनायकवाद है, जहां शासन और सत्ता का हर अंग और कर्तव्य केवल एक व्यक्ति, एक दल, एक विचारधारा, तक सीमित हो जाता है। और उसका समर्थन करने वालों को केवल सत्ता ही सर्वोपरी लगती है। इसको लागू करने वाला दल देश, देशभक्ति के नाम पर सबको एक ही डंडे से हांकता है, और मानता है कि जो वह कर रहा है सही है।

देश में इस समय माहौल चुनावी है और राजनीति हावी है। यह चुनाव अहम है क्योंकि पिछले कुछ साल भारतीय राजनीति के लिए अप्रत्याशित रहे हैं। इस दौरान ऐसा बहुत कुछ हुआ जो पहले लोकतंत्र के लिए अनैतिक कहा जाता था।

गुजरे जमाने के मशहूर समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया कहते थे अगर देश को सही रास्ते पर चलाना है तो मजबूत विपक्ष का आवश्यकता है, वर्ना सरकार निरंकुश हो जाएगी। जिसको हम आज की वर्तमान परिस्थितियों में देख और महसूस कर सकते हैं। देश की एक प्रमुख और सबसे बड़े विपक्षी दल का बैंक खाता सीज कर दिया गया है, जबकि चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी है, हां अगर सरकार की मंशा ही है कि उसके अलावा देश के बाकी राजनीतिक दल चुनाव ही न लड़ें तो फिर बात ही अलग है।

विद्यापतिनगर। लोकसभा निर्वाचन 2024 की आचार संहिता लागू होते ही प्रखंड क्षेत्र में रविवार को प्रखंड प्रशासन द्वारा युद्धस्तर पर अभियान चलाकर विद्युत पोल व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लगे राजनैतिक दलों के होर्डिग-झंडे व बैनर उतरवाए गए थे। जिसके बाद दीवार पुतवाने का कार्य आरंभ किया गया।अंचलाधिकारी कुमार हर्ष ने कर्मचारियों से मुख्य मार्ग विद्यापतिधाम, राजाचौक, ब्लॉक रोड व वाजिदपुर जाने वाले मार्ग से पोस्टर, बैनर हटवाए तथा दीवारों पर लिखे राजनैतिक पार्टियों की वाल पेंटिग को भी पुतवा दिया। उन्होंने हलका कर्मचारियों को भी निर्देशित किया कि वे अपने क्षेत्र मे निगाह बनाए रखें व राजनैतिक पाíटयों से संबधित होडिंग, पोस्टर बैनर एवं वाल पेंटिग न होने दें। किसी भी राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता बिना किसी अनुमति के कार्यक्रम अथवा सभा करते हुए पाए गए तो आचार संहिता के उल्लंघन का मुकदमा दर्ज किया जाएगा।

भारत में शादी के मौकों पर लेन-देन यानी दहेज की प्रथा आदिकाल से चली आ रही है. पहले यह वधू पक्ष की सहमति से उपहार के तौर पर दिया जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में यह एक सौदा और शादी की अनिवार्य शर्त बन गया है। विश्व बैंक की अर्थशास्त्री एस अनुकृति, निशीथ प्रकाश और सुंगोह क्वोन की टीम ने 1960 से लेकर 2008 के दौरान ग्रामीण इलाके में हुई 40 हजार शादियों के अध्ययन में पाया कि 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया. बावजूद इसके कि वर्ष 1961 से ही भारत में दहेज को गैर-कानूनी घोषित किया जा चुका है. यह शोध भारत के 17 राज्यों पर आधारित है. इसमें ग्रामीण भारत पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है जहां भारत की बहुसंख्यक आबादी रहती है.दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आप क्या सोचते है ? और इसकी मुख्य वजह क्या है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ? *----- और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

चुनावी बॉंड में ऐसा क्या है जिसकी रिपोर्ट सार्वजनिक होने से बचाने के लिए पूरी जी जान से लगी हुई है। सुप्रीम कोर्ट की डांट फटकार और कड़े रुख के बाद बैंक ने यह रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंप दी, अब चुनाव आयोग की बारी है कि वह इसे दी गई 15 मार्च की तारीख तक अपनी बेवसाइट पर प्रकाशित करे।