बिहार राज्य के जमुई जिला के सिकंदरा प्रखंड से ज्योति कुमारी मोबाइल वाणी के माध्यम से बताती हैं, कि वर्तमान में जल संकट गंभीर रूप धारण कर लिया है। जल की कीमत उनसे पूछें, जो इसकी खोज में दूर-दूर तक भटक रहे हैं।आज मरुस्थल में लोग रूपए, पैसे और भोजन के बिना तो रह सकता है लेकिन पानी के बिना कभी नहीं। आख़िर हमने ग़लती कहाँ की हमने अपने ज्ञान का उपयोग पानी को बरबाद करने में किया है। साथ ही धरती की छाती में मशीनों से छेद बना कर उसके अंदर छिपे हुए भूमिगत जल का अनियंत्रित तरीके से दोहन किया है। हमने कभी भी इस जल को दोबारा भूमि में पहुंचाने का प्रयास नहीं किया बल्कि कुआँ और नलकूपों की गहराई बढ़ती चली गई। सदियों से हमारे बुजुर्ग पीढ़ी ने यह कहा जाता है कि खेतों का गहना है पानी, धरती माँ की कोख़ में है जल का भंडारा। फिर भी बून्द-बून्द को तरसते हैं हम लाचार,जल के दोहन के लिए लगा दिया हमने सब ज्ञान।

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विजय कुमार सिंह,जिला जमुई के सिकंदरा प्रखंड से मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि शिक्षा विभाग के आंकड़े के अनुसार जिले में प्राथमिक से लेकर हायर सेकेंडरी तक कुल सत्रह सौ चार विद्यालय संचालित है जिनमें चार लाख आठ हजार दो सौ पैतालीस बच्चे शिक्षा ग्रहण करते है लेकिन इनमें कई विद्यालयों के भवन स्वीकृत नहीं होने के कारण झोपड़ियों या शेडो में संचालित हो रही है।यहाँ की व्यवस्था कैसी होगी यह तय करने की जरुरत तो नहीं है लेकिन इन केन्द्रो में अभी भी पढ़ाई जारी है।शिक्षा विभाग प्रतिवर्ष शिक्षा के नाम पर करोड़ो रूपये खर्च करते है लेकिन उसका आंशिक असर धरातल पर देखने को नहीं मिलता है।वही अगर सर्व शिक्षा अभियान के आंकड़े के अनुसार देखा जाये तो इस वित्तीय वर्ष में शिक्षकों के मानदेय हेतु पांच करोड़ पैतालीस लाख तथा विद्यालय भवन को छोड़कर सिर्फ प्राथमिक विद्यालय और मध्य विद्यालय के विकास अनुदान हेतु इस वित्तीय वर्ष में चौदह लाख चालीस हजार तथा रख-रखाव एवं मरम्मति अनुदान के रूप में उनीस लाख पैंतीस हजार आबंटित किये गए है परन्तु उच्य विद्यालय आज भी भवन का रोना रो रहे है।वही एक ओर माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत मॉडल स्कूल खोले जाने की बात हो रही है तो वही दूसरी ओर एक विद्यालय को अपना भवन भी नसीब नहीं है।

बिहार के जिला जमुई,प्रखण्ड सिकंदरा से विजय कुमार सिंह जी मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बावजूद भी अभी तक पुरे प्रदेश में कुल दो हजार पचास शिक्षकों ने अपने मन से त्याग पत्र दिया।ज बकि सूबे में कुलमिलाकर 40 प्रतिशत फर्जी शिक्षक कर्यरत है।और प्रतिमाह करोड़ो का राजस्व उनके वेतन पर खर्च हो रहा है। शिक्षा विभाग की गलत नीतियों के कारण ही इस तरह की गलत नीतियाँ इस विभाग में होती रहती है। और पदाधिकारी इस बात को नजरअंदाज करते रहते है। इस तरह के क्रियाकलाप में दण्ड के भागी केवल शिक्षक बनते है जो की निंदनीय है।दण्ड उस पदाधिकारियों को भी मिलनी चाहिए जो शीर्ष पदों पर बैठे हुए है। सरकार की गलत नीतियों के कारण आज शिक्षा विभाग में वैसे शिक्षकों की भर्ती कर दी गयी है जो शिक्षक की मर्यादा को तार-तार कर रहे है।शिक्षक और छात्र के बीच की मर्यादा समाप्त हो गयी है।पढ़ाई की व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गयी है।विद्यालय केवल प्रोत्साहन राशि और मिड डे मिल का जरिया बन कर रह गयी है। सरकार शिक्षकों की हड़ताल से अपनी कुर्सी को बचाने के लिए वेतनमान देकर अपना पिंड छुड़ाती है।इससे शिक्षा का कभी भला नहीं हो सकता। यही कारण है की बिहार के जो बच्चे सरकारी विद्यालयों में पठन-पाठन करते है वो अन्य निजी विद्यालयों के बच्चों से लगातार पिछड़ रहे है।

जिला जमुई प्रखंड सिकंदरा से विजय कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से जानकारी दे रहे है कि केंद्र सरकार की कैबिनेट मीटिंग में पांचवी से लेकर आठवीं कक्षा तक के बच्चों को फेल ना करने की नीति को ख़त्म करने की मंजूरी दे दी गयी है।ज़ाहिर है अब शिक्षा के अधिकार कानून में संशोधन किया जायेगा।केंद्र सरकार का यह फैसला सराहनीय है।क्योंकि विद्यार्थी अक्सर यह सोचते है की वे नहीं पढ़ेंगे तब भी पास हो ही जायेंगे।पर अब यह नहीं होगा विद्यार्थियों को पढ़ना होगा तभी वे सही मायने में तरक्की कर पाएंगे।हालाँकि सिर्फ इसी नीति के बुते देश में शिक्षा की तस्वीर ठीक नहीं हो सकती है।जब तक अच्छे शिक्षकों की कमी बनी रहेगी तब तक शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं होगी।बच्चों को फेल करे लेकिन देश का शैक्षणिक माहौल को भी बेहतर करे।इसके आलावा समान शिक्षा नीति पर भी जोर देने की जरुरत है

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बिहार, जिला जमुई प्रखण्ड सिंकदरा, से विजय कुमार सिंह जी मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि राज्य के विभिन्न स्थानों से नकली दवाओं का जखीरा पकड़े जाने के संकेत मिल रहे है। राज्य में लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ का खेल बड़े पैमाने पर चल रहा है।पटना में ही कुछ महीनो में करोड़ो के मूल्य की एक्सपायरी और नकली दवाएं पकड़ी जा चुकी है।हर बार नकली दवाओं के साथ इनके सौदागर भी पकड़े जाते है किन्तु कमजोर कानून और लचर पैरवी के चलते ये अपराधी कुछ दिन में ही जमानत पाकर जेल से बाहर आ जाते है और फिर से उसी काले धंधे में लिप्त हो जाते है।बिहार राज्य के पुलिस के पास कानून व्यवस्था संबंधित इतनी अधिक व्यवस्था रहती कि फिर भी वो नकली दवाओं के कारोबार से निपटने को प्राथमिकता नहीं दे पाती है।सरकार को इसके लिए पुलिस विभाग में अलग से टीम गठित की जाये, जो सिर्फ उसी काम पर ध्यान केंद्रित रखे।और इस कारोबार से जुड़े व्यक्तियों को कठोर सजा दिलवाए।नकली दवा के कारोबार को जघन्य अपराध मानकर इसके लिए अलग कानून बनाया जाये। शराबबंदी कानून की तरह कठोर सजा का प्रावधान हो।

जिला जमुई,प्रखंड अलीगंज से विजय कुमार सिंह जी मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे कि बिहार में बढ़ती बेरोजगारी के कारण प्रतिदिन हजारो युवाओं को दूसरे प्रदेशो में काम करने के जाते देखा जा रहा है।इन युवाओं का कहना है कि बिहार की सरकार को बनाने में काफी मेहनत किया और इन्हे लगा की अब काम के सिलसिले में बाहर जाने की नौबत नहीं आएगी और अपने परिवार के साथ रहकर उनका भरण-पोषण आसानी से कर लेंगे।किन्तु इस सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे बेरोजगारों को रोजगार मिल सके और लोग बाहर पलायन ना करे।इनलोगो का कहना है की वे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए बाहर जाते है और अगर यही हाल रहा है तो वे वंही स्थायी रूप से रह जायेंगे जहाँ स्थायी रूप से इन्हे काम मिलेगा।