कभी प्रक्रिया में विलंब होने, टेलीफोन व्यस्त रहने तो कभी डीजल मिलने में विलंब होने के कारण गम्भीर मरीज को एम्बुलेन्स मिलने में विलंब होता है। नतीजतन जख्मी सरकारी एम्बुलेन्स के बजाय निजी एम्बुलेन्स को ही बुलाते हैं।बताया जाता है कि सरकारी निर्देश के अनुसार 102 पर एम्बुलेन्स के लिए फोन करने पर 10 मिनट के अंदर घटना स्थल पर एम्बुलेन्स पहुंच जाना है, मगर ऐसा नहीं होता। सरकारी एम्बुलेन्स के लिए कम से कम आधा घण्टा इंतजार करना पड़ता है। क्योंकि102 एम्बुलेन्स में डीजल का कार्ड पटना से जारी होता है। डीजल लेने में भी समय लगता है। तब तक आधा घण्टा समय बीत जाता है। ऐसी स्थिति में ज़ख्मी की हालत काफी गम्भीर हो जाती है। कई बार तो ऐसा हुआ है कि विलंब से एम्बुलेन्स मिलने के कारण मरीज की मौत हायर सेंटर जाने के क्रम में हो गयी है। पूर्व में मोतिहारी से रेफर मरीज का मेहसी में मौत हो गयी। मरीज मधुबनी घाट का था। वहीं सुगौली बनस्पति माई स्थान के पास दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को विलंब से एम्बुलेन्स मिलने के कारण मोतिहारी आते आते मौत हो गयी। बताते हैं कि 102 एम्बुलेन्स 102 डायल करने पर उठता तो जरूर है मगर डीजल के अभाव में तुरंत मूव नहीं कर पाता है। क्योंकि 102 एम्बुलेन्स संचालक एम्बुलेन्स में उतना ही डीजल देते हैं जितना दूर जाना आना है। फिर आगे जाने के लिए एम्बुलेन्स में डीजल नहीं होता है। अगर एम्बुलेन्स में रिजर्व में कम से कम सौ किलोमीटर का डीजल होता तो 102 एम्बुलेन्स सूचना पर तुरन्त घटना स्थल पर पहुंच सकता है और जख्मी की जान बच सकती है। व्यवस्था की कमी के कारण निजी एम्बुलेन्स जख्मी व बीमार की मजबूरी बन गया है। सिविल सर्जन डॉ. अंजनी कुमार बताया कि 102 एम्बुलेन्स का संचालन एनजीओ के माध्यम से होता है। यह व्यवस्था उनको करना है। एम्बुलेन्स में हमेशा रिजर्व में डीजल रहनी चाहिए। नहीं रखने पर जबाब तलब किया जाएगा।
