घटिया सामग्री के प्रयोग का ग्रामीणों ने किया विरोध - जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र संग्रामपुर क्षेत्र में बन रहे आरोग्य मंदिर (एनम सेन्टर) में घटिया सामग्री का प्रयोग करने पर ग्रामीणों ने विरोध किया।पूरा मामला क्षेत्र के भौसिंहपुर में आरोग्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है।यह निर्माण कार्यदाई संस्था द्वारा किया जा रहा है‌। निर्माण कार्य में घटिया ईंट के साथ घटिया बालू का प्रयोग किया जा रहा है आज आरोग्य मंदिर में घटिया ईंट को पर प्लास्टर का कार्य शुरू हुआ । भौसिंहपुर के कुछ ग्रामीणों की नजर इस निर्माणाधीन आरोग्य मंदिर पर पड़ी तो ग्रामीणों ने काम कर रहे मजदूरों से जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि यह कार्य कार्यदाई संस्था द्वारा कराया जा रहा है हम मजदूर हैं जो ठेकेदार सामाग्री उपलब्ध करायेगा हम उसी सामाग्री पर काम करेगे। ग्रामसभा भौसिंहपुर निवासी विनय सिंह ने बताया कि यहां पुराना एनम सेन्टर था जो कई वर्षों तक स्वास्थ्य सेवाएं देता रहा लेकिन जर्जर होने के चलते यहां नया आरोग्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है।यह निर्माण किसी ठेकेदार द्वारा कराया जा रहा है जिसमें घटिया सामग्री के साथ निर्माण कार्य किया जा रहा है जिसका हम लोग विरोध कर रहे हैं ।इसी प्रकार राकेश सिंह ने बताया कि कोई भी भवन का निर्माण जल्दी जल्दी नहीं होता है।यह हमारे लिए एक स्वास्थ्य मंदिर बनाया जा रहा है जिसके निर्माण में गलत बालू व घटिया ईंट का प्रयोग करके किया जा रहा है ।इसी प्रकार मिठाई गुप्ता,सरदार कश्यप, सहित दर्जनों लोगों ने इस कार्य पर उंगली उठाई।

दोस्तों, हंसने-हंसाने से इंसान खुश रहता है, जिससे मानसिक तनाव, चिंता और डिप्रेशन कम होता है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए हंसी-मज़ाक बहुत ज़रूरी है। इसीलिए मोबाइल वाणी आपके लिए लेकर आया है कुछ मजेदार चुटकुले, जिन्हें सुनकर आप अपनी हंसी रोक नहीं पाएंगे।

पीआरडी जवानों को पुनः प्रशिक्षित किया जाएगा इसके लिए बजट का इन्तजार है

गांव में महिला खिलाडियों की भरमार सांसद खेल प्रतियोगिता में सैकड़ों महिलाओं ने लिया भाग

एक बार फिर आ गया है... ग्लेनमार्क कुकिंग कॉम्पटीशन!! जहां आपको रिकॉर्ड करनी है पोषक तत्वों से भरे व्यंजनों की रेसिपी. चुने हुए प्रतिभागियों को मिलेगा मुंबई जाने का मौका.. तो फोन में नम्बर 3 का बटन दबाएं और रिकॉर्ड करे रेसिपी!!

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानि की NCRB के हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में 23,178 गृहिणियों ने आत्महत्या की थी। यानी देशभर में हर दिन 63 और लगभग हर 22 से 25 मिनट में एक आत्महत्या हुई है। जबकि साल 2020 में ये आंकड़ा 22,372 था। जितनी तेज़ी से संसद का निर्माण करवाया, सांसद और विधायक अपनी पेंशन बढ़ा लेते है , क्यों नहीं उतनी ही तेज़ी से घरेलु हिंसा के खिलाफ सरकार कानून बना पाती है। खैर, हालत हमें ही बदलना होगा और हमें ही इसके लिए आवाज़ उठानी ही होगी तो आप हमें बताइए कि *---- आख़िर क्या वजहें हैं जिनके कारण हज़ारों गृहणियां हर साल अपनी जान ले लेती हैं? *---- घरेलू हिंसा को रोकने के लिए हमें क्या करना चाहिए ? *---- और क्या आपने अपने आसपास घरेलू हिंसा को होते हुए देखा है ?

हम सभी रोज़ाना स्वास्थ्य और बीमारियों से जुड़ी कई अफवाहें या गलत धारणाएं सुनते है। कई बार उन गलत बातों पर यकीन कर अपना भी लेते हैं। लेकिन अब हम जानेंगे उनकी हकीकत के बारे में, वो भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मदद से, कार्यक्रम सेहत की सच्चाई में। याद रखिए, हमारा उद्देश्य किसी बीमारी का इलाज करना नहीं, बल्कि लोगों को उत्तम स्वास्थ्य के लिए जागरूक करना है।सेहत और बीमारी को लेकर अगर आपने भी कोई गलत बात या अफवाह सुनी है, तो फ़ोन में नंबर 3 दबाकर हमें ज़रूर बताएं। हम अपने स्वास्थ्य विशेषज्ञों से जानेंगे उन गलत बातों की वास्तविकता, कार्यक्रम सेहत की सच्चाई में।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में एक महिला क्या सोचती है... यह जानना बहुत दिलचस्प है.. चलिए तो हम महिलाओं से ही सुनते हैं इस खास दिन को लेकर उनके विचार!! आप अपने परिवार की महिलाओं को कैसे सम्मानित करना चाहेंगे? महिला दिवस के बारे में आपके परिवार में महिलाओं की क्या राय है? एक महिला होने के नाते आपके लिए कैसे यह दिन बाकी दिनों से अलग हो सकता है? अपने परिवार की महिलाओं को महिला दिवस पर आप कैसे बधाई देंगे... अपने बधाई संदेश फोन में नम्बर 3 दबाकर रिकॉर्ड करें.

हथकिला मिसरौली माइनर में पानी नहीं पहुंचा है माइनर में झाड़ियां उगी हुई है पानी न आने से किसान चिंतित हैं

पिछले 10 सालों में गेहूं की एमएसपी में महज 800 रुपये की वृद्धि हुई है वहीं धान में 823 रुपये की वृद्धि हुई है। सरकार की तरफ से 24 फसलों को ही एमएसपी में शामिल किया गया है। जबकि इसका बड़ा हिस्सा धान और गेहूं के हिस्से में जाता है, यह हाल तब है जबकि महज कुछ प्रतिशत बड़े किसान ही अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। एक और आंकड़ा है जो इसकी वास्तविक स्थिति को बेहतर ढ़ंग से बंया करत है, 2013-14 में एक आम परिवार की मासिक 6426 रुपये थी, जबकि 2018-19 में यह बढ़कर 10218 रुपये हो गई। उसके बाद से सरकार ने आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिए इससे पता लगाना मुश्किल है कि वास्तवितक स्थिति क्या है। दोस्तों आपको सरकार के दावें कितने सच लगते हैं। क्या आप भी मानते हैं कि देश में गरीबी कम हुई है? क्या आपको अपने आसपास गरीब लोग नहीं दिखते हैं, क्या आपके खुद के घर का खर्च बिना सोचे बिचारे पूरे हो जाते हैं? इन सब सरकारी बातों का सच क्या है बताइये ग्रामवाणी पर अपनी राय को रिकॉर्ड करके