बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला से मोबाइल वाणी संवाददाता शिव कुमारी ने रेशमी देवी से बातचीत की जिसमें उन्होंने जानकारी दी कि लड़का और लड़की बराबर हैं, इसलिए हम अपनी बेटी को भी जमीन पर अधिकार देंगे क्योंकि दहेज़ में दिया गया सामान या पैसा लड़की को नहीं मिलता है। इसलिए वो गरीब और असहाय हो जाती हैं। अगर उनके नाम से जमीन रजिस्ट्री की जाए तो लड़कियों का भविष्य सुरक्षित होगा

बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला से मोबाइल वाणी संवाददाता शिव कुमारी ने रीता देवी से बातचीत की जिसमें रीता ने जानकारी दी कि महिलाओं को भूमि पर अधिकार मिलना चाहिए। लड़का और लड़की बराबर हैं, इसलिए हम अपनी बेटी को भी जमीन पर अधिकार देंगे। बेटी को दहेज़ में जो कुछ दिया जाता है, वो बेटी को नहीं मिलता है। इसलिए दहेज़ के जगह बेटी को भूमि में हिस्सा देंगे

बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला से शिवकुमारी देवी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि वे गाँव में जाती है तो देखती है कि बेटा और बेटी को समानता का अधिकार तो दिया जाता है, लेकिन संपत्ति में बेटियों को अधिकार नहीं दिया जाता है। क्योंकि बेटी को दहेज़ दे कर उसका विवाह करवा दिया जाता है। लेकिन दहेज़ देने से बेटियों को ससुराल में वो अधिकार नहीं मिलता है, जो उन्हें मिलना चाहिए। इसलिए बेटियों को दहेज़ देने के बजाय उन्हें संपत्ति का अधिकार देना चाहिए

बिहार राज्य के जिला औरंगाबाद से अशोक कुमार , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि शादी के बाद पिता की संपत्ति बेटों में बाँट दिया जाता है । जब हम बेटा और बेटी दोनों को समान शिक्षा देते है तो फिर हम दोनों जमीन पर समान अधिकार भी दे सकते है। सारे समाज को बदलना पड़ेगा , सबसे पहले दहेज़ प्रथा को बंद करना पड़ेगा

बेटों की चाह में बार-बार अबॉर्शन कराने से महिलाओं की सेक्शुअल और रिप्रोडक्टिव लाइफ पर भी बुरा असर पड़ता है। उनकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ भी खराब होने लगती है। कई मनोवैज्ञानिको के अनुसार ऐसी महिलाएं लंबे समय के लिए डिप्रेशन, एंजायटी का शिकार हो जाती हैं। खुद को दोषी मानने लगती हैं। कुछ भी गलत होने पर गर्भपात से उसे जोड़कर देखने लगती हैं, जिससे अंधविश्वास को भी बढ़ावा मिलता है। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि * -------आखिर हमारा समाज महिला के जन्म को क्यों नहीं स्वीकार पाता है ? * -------भ्रूण हत्या और दहेज़ प्रथा के आपको क्या सम्बन्ध नज़र आता है ?

दहेज में परिवार की बचत और आय का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है. वर्ष 2007 में ग्रामीण भारत में कुल दहेज वार्षिक घरेलू आय का 14 फीसदी था। दहेज की समस्या को प्रथा न समझकर, समस्या के रूप में देखा जाना जरूरी है ताकि इसे खत्म किया जा सके। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आपके क्या विचार है ? *----- आने वाली लोकसभा चुनाव में दहेज प्रथा क्या आपके लिए मुद्दा बन सकता है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

भारत में शादी के मौकों पर लेन-देन यानी दहेज की प्रथा आदिकाल से चली आ रही है. पहले यह वधू पक्ष की सहमति से उपहार के तौर पर दिया जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में यह एक सौदा और शादी की अनिवार्य शर्त बन गया है। विश्व बैंक की अर्थशास्त्री एस अनुकृति, निशीथ प्रकाश और सुंगोह क्वोन की टीम ने 1960 से लेकर 2008 के दौरान ग्रामीण इलाके में हुई 40 हजार शादियों के अध्ययन में पाया कि 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया. बावजूद इसके कि वर्ष 1961 से ही भारत में दहेज को गैर-कानूनी घोषित किया जा चुका है. यह शोध भारत के 17 राज्यों पर आधारित है. इसमें ग्रामीण भारत पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है जहां भारत की बहुसंख्यक आबादी रहती है.दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आप क्या सोचते है ? और इसकी मुख्य वजह क्या है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ? *----- और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

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हसपुरा थानाक्षेत्र के टाल गांव टोला बीबीपुर गांव निवासी बिजेंद्र राजबंशी , जोखनी देवी, विकास कुमार को दहेज उत्पीड़न के मामले में पुलिस में शनिवार को गिरफ्तार किया है। पांच माह पहले एक विवाहिता की हत्या ससुराल वाले मिलकर कर दिया था। जिसे लेकर विवाहिता के पिता द्वारा हसपुरा थाना में मामला दर्ज कराया गया था।

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