Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.

बंधक बनाकर आदिवासी युवक को बेरहमी से पीटा, डीजल चोरी का लगाया आरोप, दहशत के मारे 2 दिन छिपा रहा जंगल में, बड़वारा में हुई घटना, रिपोर्ट दर्ज कर जांच में जुटी पुलिस कटनी। आदिवासी युवक को बंधक बनाकर बेरहमी से पिटाई करने का सनसनी खेज मामला प्रकाश में आया है।

कलेक्टर ने रीठी क्षेत्र के दर्जनों गांवों के जनजातीय समाज को चिरौंजी की वाजिब कीमत दिलाने शुरू किए प्रयास, निपनिया और केवलारी गांवों की तर्ज पर गठित की जायेगी समिति और लगाई जायेगी प्रसंस्करण इकाई कटनी। जिले के बहोरीबंद क्षेत्र के निपनिया और केवलारी सहित आस-पास के गांवों के आदिवासियों द्वारा संग्रहित अचार चिरौंजी की ब्रांडिंग कर उनकों चिरौंजी का वाजिब बाजार मूल्य दिलाने के बाद जिला प्रशासन ने अब रीठी क्षेत्र के अचार चिरौंजी संग्राहक जनजातियों को भी उनके उत्पाद की बेहतर कीमत दिलाने की दिशा मे ठोस और गंभीर प्रयास शुरू कर दिया है

स्केट गर्ल आशा पर जर्मन महिला की लिखी किताब 15 देशों में हुई रिलीज स्केट विलेज के रूप में दुनियाभर में चर्चित जनवार गांव की आदिवासी लड़की आशा अभी महज 23 साल की है और उस पर पूरी एक किताब लिख दी गई है। जर्मन समाजसेवी और लेखिका उलरिके रेनहार्ट की अग्रेजी भाषा में लिखी गई 256 पेज की इस किताब को हाल में ही दुनिया के 15 देशों में एकसाथ रिलीज किया गया। अमेजन इंडिया में यह पुस्तक ऑनलाइन उपलब्ध है। स्केट गर्ल आशा शीर्षक से प्रकाशित इस किताब में लेखिका ने इस आदिवासी लड़ी के जीवन के उन पहलुओं को छूने का प्रयास किया है, जो उसकी जीवन में स्केट पार्क से जुड़ने से लेकर अब तक आए है। किताब की लेखिका उलरिके ने बताया, आशा जनवार में आए सामाजिक बदलावों की ब्रांड एम्बेसडर के रूप में उभरी है। किताब में यह बताने का प्रयास किया है कि छोटे से गांव की इस आदिवासी लड़की को समाजिक रूढियों और परंपराओं को तोड़ने में किस तरह का संघर्ष करना पड़ा है। करीब 15 साल की उम्र में आशा स्केट बोर्डिंग से जुड़ी। बोर्ड के पहियों में जिंदगी आई तो उसके लिए पूरी दुनिया ही छोटी पड़ गई। गांव से निकलकर आशा अंग्रेजी सीखने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी पहुंच गई तो स्केटबोर्डिंग की नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतने के बाद वह वर्ल्ड चैम्पियनशिप में देश का नेतृत्व करते हुए चीन तक पहुंची थी इस पुस्तक के मार्केट में आने से आशा काफी प्रसन्न हैं। वह कहती हैं, पहले परिवार के लोग ही तय करते थे कि मेरे लिए क्या अच्छा और क्या खराब रहेगा। मैं अपनी आवाज और उसकी ताकत को नहीं पहचान पा रही थी। स्केट बोर्डिंग से जुड़ने के बाद जैसे बस कुछ बदल सा गया है। मुझे मेरी आवाज तो मिली ही, साथ ही उसकी ताकत का भी आभास हुआ। अब चुनौतियां आने पर उनसे बचने का प्रयास नहीं करती, बल्कि उन्हें स्वीकार कर उनसे पार पाने का उपाय तलाशती हूं उलरिके बताती हैं, आज आशा जनवार गांव से कहीं आगे निकलकर संघर्ष कर रही लाखों लड़कियों की मजबूत आवाज बनकर उभरी है। किताब में यह बताने का प्रयास किया गया है कि आशा ने बदलावों के दौर में आने वाली समस्याओं से कैसे निपटा है

Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.