बेनीगंज/हरदोई_कस्बे के साथ ही आसपास क्षेत्र में इन दिनों कबाड़ बीनते नौनिहालों को देखा जा सकता है। सीखने की उम्र में यह बच्चे दुकानों पर कमर तोड़ मेहनत कर किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में जुटे हुए हैं। बताते हैं कि शिक्षा का अधिकार कानून वर्ष 2009 से लागू है। यह अधिकार कई साल से कानून के रूप में लागू होने के बावजूद भी फाइलों से निकलकर हकीकत में लागू नहीं हो पा रहा है। कानून का विधिवत रूप से अनुपालन न होने के कारण अब भी बेनीगंज क्षेत्र में छह से 14 वर्ष तक के बच्चे स्कूल जाने की जगह दो वक्त की रोजी रोटी की जुगाड़ में सुबह से स्कूल बैग लेने के स्थान पर कबाड़ बीनने एवं कबाड़ को एकत्र कर कबाड़ की दुकानों पर पहुंचाकर पैसा कमाने के लिए निकल पड़ते हैं। छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में कापी, किताब कलम की जगह कबाड़ से भरी बोरी देख बाल मजदूरी को रोकने का सपना भी अधूरा दिखता है। स्थिति यह है कि सैकड़ों बच्चों का बचपन सफेद आग में झुलस रहा है। तमाम प्रकार की दुकानों सहित अन्य जगहों पर इन बाल मजदूरों को काम , करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। बावजूद इसके इस पर रोक लगाने में श्रम विभाग अनजान बना हुआ है। शासन प्रशासन की उदासीनता से इनका बचपन खो रहा है। इनके पेट की आग के आगे सब नियम कानून दम तोड़ रहे हैं। इनका भविष्य संवारने के लिए सरकार के प्रयास के साथ-साथ ऐसे लोगों का सामाजिक विरोध भी किए जाने की जरुरत है। रोजाना गुलाबी फाइलों को उलटने पलटने वाले जिम्मेदार कहते हैं कि शिकायत मिलने पर जांच कर कार्रवाई की जाएगी। अभियान चलाकर बच्चों को दुकानों से मुक्त कराकर स्कूलों में नामांकन कराया जाएगा और उनके अभिभावकों को इसके लिए प्रेरित भी किया जाएगा। जबकि स्थानीय शिक्षा विभाग का संचालन करने वाले रोजाना बंद गाड़ियों में बैठकर फर्राटा भरते हुए सड़कों से निकल जाते हैं जिन्हें यह तक दिखाई नहीं देता कि नौनिहाल कबाड़ की दुकान पर फेंकी हुई चप्पलों के तलवों को घंटों तोड़कर बेंचने का काम कर रहे हैं।

शिक्षा विभाग के करीब तीन दर्जन स्कूलों में पढ़ाई लिखाई का स्तर खराब पाया गया है। इसे ठीक कराने की जिम्मेदारी हेडटीचरों को दी गई है। जल्द सुधार न होने पर कड़ी कार्रवाई होगी। बावन ब्लाक के प्राइमरी स्कूल पोखरी, सरंगापुर, हरपालपुर के डिडवान, सुरजनपुर, जीवनपुरवा, हरियांवा के हरिसंगपुर, महोलिया, माधौगंज के देवीपुरवा, शुक्लापुर, अहिरोरी के करीमनगर सैदापुर, नीर, मल्लावां के लकड़हा, हरीगंज, भरखनी के उमरापुर, कछौना के उच्च प्राथमिक स्कूल कटियामऊ, महरी, कोथावां के बेलवारखेड़ा, तेरिया, सुरसा के बहरैया, कैरेमर, सांडी के भौंराजपुर, उल्लामऊ, संडीला के महामऊ, गढ़ी विद्यालय में शिक्षा का स्तर निम्न पाया गया। बीएसए विजय प्रताप सिंह का कहना है कि फिलहाल हेडटीचर का वेतन रोका गया है। उन्हें निर्देश दिए गए हैं कि नियमित रूप से बच्चों को पढ़ाएं। निपुण भारत को नियमानुसार साकार कराएं। लापरवाही बरतने पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।

उत्तर प्रदेश राज्य के हरदोई जिला से कपिल चौहान ने मोबाइल वाणी के माध्यम से राधेश्याम कनौजिया से बातचीत की जिसमें उन्होंने जानकारी दी की। लोकसभा चुनाव से पहले ई . वी . एम . मशीन है, उसके माध्यम से पूरे देश में संदेह है कि यह गड़बड़ी पैदा करती है। यह लोकतंत्र और संविधान की गरिमा की रक्षा नहीं करती है। ऐसे में ई . वी . एम . को हटा कर केवल मतपत्र के माध्यम से चुनाव कराने चाहिए। जो लोकतंत्र के लिए जनहित को मजबूत करेगा। गाँव के अंदर एक जनसंपर्क सड़क , एक उद्यान , पानी की उचित व्यवस्था , शिक्षा की व्यवस्था , स्वास्थ्य की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। आज की शिक्षा रोजगार से जुड़ी नहीं है। इसलिए ऐसी शिक्षा होनी चाहिए की लोगों को रोजगार भी मिले। बच्चों को मध्याह्न भोजन मिलें इस बात का ध्यान देना चाहिए। सरकारी स्कूल में शिक्षक बनना चाहता है लेकिन कोई पढ़ाना नहीं चाहता , यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है

दोस्तों, भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट से यह पता चला कि वर्तमान में भारत के करीब 6.57 प्रतिशत गांवों में ही वरिष्ठ माध्यमिक कक्षा 11वीं और 12वीं यानी हायर एजुकेशन के लिए स्कूल हैं। देश के केवल 11 प्रतिशत गांवों में ही 9वीं और 10वीं की पढ़ाई के लिए हाई स्कूल हैं। यदि राज्यवार देखें तो आज भी देश के करीब 10 राज्य ऐसे हैं जहां 15 प्रतिशत से अधिक गांवों में कोई स्कूल नहीं है। शिक्षा में समानता का अधिकार बताने वाले देश के आंकड़े वास्तव में कुछ और ही बयान करते हैं और जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति समाज की प्रगति का संकेत देती है, वहीं लड़कियों की लड़कों तुलना में कम संख्या हमारे समाज पर प्रश्न चिह्न भी लगाती है? वासतव में शायद आजाद देश की नारी शिक्षा के लिए अभी भी पूरी तरह से आजाद नहीं है। तब तक आप हमें बताइए कि * ------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने लाइन में खड़ी है ? * ------आपके हिसाब से लड़कियाँ की शिक्षा क्यों नहीं ले पा रहीं है ? लड़कियों की शिक्षा क्यों ज़रूरी है ? * ------साथ ही लड़कियाँ की शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है ?