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उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अर्जुन त्रिपाठी मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि आज के दौर में आत्महत्या के मामले बहुत बढ़ रहे हैं। जिसका एक प्रमुख कारण तनाव माना जा रहा है। इन दिनों व्यक्ति जितना तनावग्रस्त है ऐसी स्थिति अतीत में पहले कभी नहीं थी। या यूं भी कह सकते हैं कि आज धैर्य हीनता बढ़ गई है। विशेषज्ञ मनोचिकित्सकों का मानना है कि अपने मन की बात दूसरों से साझा करने से नहीं हिचकना चाहिए इससे दिमाग को बहुत राहत मिलती है। निराशा से बचने के लिए लोगों के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए। इसलिए जब भी परेशान हों तो दूसरों की मदद लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। आत्महत्या का किसी व्यक्ति की संपन्नता या विपन्नता से कोई संबंध नहीं है। आजकल हर आयु वर्ग में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। आए दिन ऐसी खबरें मिलती हैं कि किसी परेशानी से आजिज हो कर पूरे परिवार ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली या फिर किसी व्यक्ति विशेष ने आत्महत्या की या इसका प्रयास किया। आइए जानते हैं कि आत्महत्या करने के कारण क्या हैं और इस गंभीर समस्या का समाधान क्या है। इसका एक प्रमुख कारण तनाव है। इन दिनों व्यक्ति जितना तनावग्रस्त है, वैसी स्थिति अतीत में पहले कभी नहीं थी। लोगों की तेजी से बदलती जीवनशैली,रहन-सहन, भौतिक वस्तुओं के प्रति बहुत अधिक आकर्षण,पारिवारिक विघटन और बढ़ती बेरोजगारी और धन-दौलत को ही सर्वस्व समझने की प्रवृत्ति के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। स्ट्रेस दो प्रकार के होते हैं,जो स्ट्रेस हमें जीवन या कॅरियर में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे,उसे हम पॉजिटिव स्ट्रेस कह सकते हैं। जैसे प्रमोशन के लिए ज्यादा काम करना। किसी साहसपूर्ण जोखिम भरे कार्य को अंजाम देना। या कोई बड़ी चुनौती स्वीकार करने के बाद की स्थिति, वहीं स्ट्रेस का दूसरा प्रकार डिस्ट्रेस होता है,जो शरीर में कई बीमारियां पैदा करता है। यह स्ट्रेस का गंभीर प्रकार है। डिस्ट्रेस शरीर में तनाव पैदा करने वाले हार्मोंस को रिलीज करता है। इससे शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। अब जानते हैं डिप्रेशन को-दुख की स्थिति अवसाद या डिप्रेशन नहीं है। डिप्रेशन में पीड़ित व्यक्ति में काम करने की इच्छा खत्म हो जाती है। पीड़ित व्यक्ति के मन में हीन भावना आ जाती है। व्यक्ति को यह महसूस होता है कि अब यह जीवन जीने का कोई फायदा नहीं और वह हताश तथा असहाय महसूस करता है। ऐसी दशा से पीड़ित व्यक्ति आत्महत्या की कोशिश कर सकता है। एक ओर कारण आपाधापी भरी जीवनशैली है। देखा जाए तो आज की जीवनशैली तनावपूर्ण हो गई है। लोगों के पास काम की अधिकता है और वे समुचित रूप से विश्राम नहीं कर पा रहे हैं। आज ऐसे परिवारों की संख्या बढ़ गई है, जहां शांति नहीं है। घरों में माहौल खराब हैं। यह स्थिति व्यक्ति को परेशानी की स्थिति में आत्महत्या के विचार को बढाने में मदद करती है। साथ ही इन दिनों सोशल और इलेक्ट्राॅनिक मीडिया में जो कुछ दिखाया जा रहा है,उसका भी लोगों के दिमाग पर गलत असर हो रहा है। जो दुनियां जिन लोगों ने देखी नहीं है, उसे भी देखने की इच्छा लोगों में बढ़ती जा रही है। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए लोग ऋण ले रहे हैं और आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसी स्थितियां डिप्रेशन से ग्रस्त कर सकती हैं। आत्महत्या में ऐसे में परिजन यदि उसकी तकलीफों को पहले से ही समझ लें और उसकी सहायता करें तो रोगी सहज रूप से जीवन जीना स्वीकार कर लेता है। जब व्यक्ति असामान्य और हताश महसूस करे तो उसे तब तक अकेला न छोड़ें, जब तक किसी मनोचिकित्सक की सुविधा उपलब्ध न हो जाए, और यह छोटा सहयोग एक जीवन को बचा लेगा। आत्महत्या के प्रयास से पहले कुछ ऐसे पूर्व लक्षण मनोरोगी के व्यवहार में नजर आते हैं, जिन्हें रोगी के परिजन या प्रियजन जान लें तो वे उसकी मदद कर सकते हैं। उसे स्पष्ट शब्दों में बताएं कि वह परिवार के लिए,बच्चों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है रोगी को समझाएं कि हम हर वक्त उसके लिए उपलब्ध हैं रोगी को इस बात का विश्वास दिलाएं कि उसके कष्ट सीमित समय के लिए हैं और कुछ ही दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाएगा। समाज में मनोरोगों के प्रति जागरूकता कम है। अगर किसी व्यक्ति से कहें कि आप दिमागी तौर पर बीमार हैं तो वह बुरा मान जाता है। इन्हीं सब कारणों से समय रहते रोगी मनोरोग विशेषज्ञ से इलाज नहीं करा पाता। परेशानी होने पर दूसरों की मदद लेनी चाहिए। अधिकतर लोग मदद नहीं लेना चाहते,क्योंकि उन्हें लगता है कि वे कमजोर हो गए हैं। ऐसी सोच ठीक नहीं होती है।

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उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से दिति श्रीवास्तव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि शादी के बाद या शादी से पहले दहेज से जुड़ी अलग - अलग बातों के बारे में बात करने के लिए लड़कियों पर बहुत दबाव होता है । इस पक्ष से बात करते हुए कि उन्हें पसंद नहीं है जब बहुत अधिक बल होता है , सिर पर बहुत अधिक पानी होता है , तो महिलाएं कोई गलत कदम उठाने के लिए आगे बढ़ती हैं , जिसमें आत्महत्या का नाम आता है , जो कि आत्महत्या है । हो सकता है कि यह कुछ ऐसा है जिससे वे परेशान हैं या कुछ ऐसा है जिससे वे बहुत परेशान हैं , यह जरूरी नहीं कि यह दहेज से संबंधित हो , यह एक पारिवारिक मुद्दा हो सकता है । कुछ लोग पति के साथ झगड़ा करते हैं , कुछ परिवार के सदस्यों द्वारा ताना मारना , या ये सब बातें , अगर आप इसके लिए कौन जिम्मेदार है , तो कभी - कभी ऐसा होता है कि महिलाएं खुद जिम्मेदार होती हैं ,

कैंसर जांच शिविर में 114 लोगों का मुफ्त परीक्षण और बचाव के उपाय बताए। सिकरीगंज के जूनियर हाई स्कूल में हुआ आयोजन। सिकरीगंज गोरखपुर।। स्वदेशी RHC महिला जागरूकता अभियान के तहत हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर अस्पताल एवं शोध संस्थान के सौजन्य से सहयोग से सिकरीगंज कस्बे में स्थित जूनियर हाई स्कूल परिसर में कैंसर की नि:शुल्क प्राथमिक जांच और प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में कैंसर अस्पताल के चिकित्सक डॉ. सी.पी.अवस्थी और डॉ.राकेश श्रीवास्तव ने शिविर में दिखाने एवं परामर्श लेने आए 114 लोगों की जांच की और उन्हें परामर्श दिया, ज्यादातर लोगों को फेफड़े,पेट, प्रोस्टेट,पैरों में गांठ,ब्रेस्ट की गांठ, गर्भाशय,मुंह,अंडाशय,पित्त की थैली आदि में परेशानी थी। सभी की समस्या का उचित निदान किया गया और निशुल्क दवाइयां दी गईं। इस दौरान कैंसर के विभिन्न प्रकार और उसके लक्षण के संबंध में सभी मरीजों तथा उनके परिजनों को प्रशिक्षण तथा इलाज के बारे में विस्तार के साथ जानकारियां दी गईं। कैंसर जागरूकता अभियान के तहत इस स्वास्थ्य शिविर आए लोगों को प्रारंभिक लक्षणों के आधार पर कोर कैंसर से बचाव, लक्षण और उसके इलाज के बारे में परामर्श देते हुए बताया गया कि यदि कैंसर का समय पर इलाज नहीं किया गया तो यह शरीर के अन्य भागों में भी फैल जाता है। बताया गया कि हम खुद अपने आपको कैंसर से बचाव की पहली इकाई हैं, क्योंकि हम अपने शरीर में ही खतरे के संकेत को पहचान सकते हैं। नियमित रूप से पूरी शारीरिक जांच कराना कैंसर से हमारे सबसे अच्छे बचाव का उपाय है। साथ ही खतरे के संकेतों या चेतावनी में कोई भी लक्षण दिखाई देने पर तुरंत कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाएं। कैंसर का बाद में पता चला तो यह बहुत खरतनाक साबित हो सकता है। बताया गया कि भरपूर पानी पीने से मूत्राशय के कैंसर का खतरा कम करने में विशेष रूप से उपयोगी है, क्योंकि पानी कैंसर का कारण बनने वाले एजेंटों की एकाग्रता को कम कर सकता है और उन्हें नष्ट कर सकता है। स्वस्थ आहार खाने में कोई संदेह नहीं है। विभिन्न अनाज, फलों,सब्जियों और दालों जैसे पोषक तत्वों से भरा स्वस्थ आहार स्वस्थ जीवन शैली की कुंजी है। जो कि विभिन्न प्रकार के कैंसर के ख़तरों को कम करता है। हरी सब्जियां खाने का सुझाव इसलिए है क्योंकि ऐ मैग्नीशियम से समृद्ध होती हैं और कैंसर का खतरा कम करती हैं, विशेष रूप से महिलाओं में पेट के कैंसर के खतरे को कम करती हैं। रिपोर्टों से पता चलता है कि 90% लोग कभी बीमार नहीं पड़ते अगर वो अपने पानी के सेवन पर ध्यान दें। पानी की कमी से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कब्ज,एसिडिटी बढ़ जाती है। इसके अलावां पानी की कमी से मस्तिष्क पर हमारा नियंत्रण कम हो जाता है। जिसे संज्ञानात्मक विचारों,भावनाओं का नुकसान तथा प्रतिदिन के तनाव को संभालने में शक्तिहीन हो जाना। बताया गया कि उल्लिखित सभी समानताएं पानी के कम सेवन से जुड़ी हैं जो कि बाद में कैंसर की शुरुआत से जुड़ी हैं। इसलिए उचित मात्रा में पानी का सेवन हमें कैंसर से जुड़ी संभावनाओं से और कैंसर से भी बचाता है। स्वस्थ आदतों का पालन करने के साथ ही तंबाकू,शराब का सेवन कम करना जरूरी है। शोधकर्ताओं के अनुसार लगभग 70% कैंसर के ज्ञात कारण जीवनशैली से संबंधित होते हैं और इसका थोड़ा प्रयास करके इनसे बचा जा सकता है। स्वस्थ आहार का पालन करना,नियमित रूप से व्यायाम करना स्वस्थ्य रहने के लिए आवश्यक है। इस दौरान सभी लोगों को कैंसर से संबंधित पत्रक, विवरण पुस्तिका दी गई जिससे कि वे स्वयं तथा अन्य लोगों को कैंसर से जागरुक कर सकें। शिविर में अजय श्रीवास्तव,उमेश जायसवाल,प्रदीप कसौधन, सत्यवती तिवारी,राजकमल कुमार, श्रीभगवान यादव,पूनम कसौधन, सुशीला वर्मा,प्रमोद जायसवाल, अंकित पांडेय,नारद मुनि सहित अन्य का उल्लेखनीय योगदान रहा।

उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अर्जुन त्रिपाठी मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि आज के समय में आत्महत्या एक मानसिक बीमारी की तरह हो गई है । किसी कारण से बच्चों की संख्या में कमी आई है । बच्चों में किसी न किसी तरह की मानसिकता रही है । परिवार में किसी तरह की कलह हो गई है । किसी तरह की लड़ाई हुई है । लोगों में एक मानसिकता रही है , लेकिन यह पूरी तरह से गलत है । हमें इसके बारे में सोचना चाहिए , हमें अपनी मानसिकता को थोड़ा बदलना चाहिए ताकि हम लोगों पर किसी भी तरह का दबाव न डालें , अगर हमारे बच्चे पढ़ने में थोड़े कमजोर हैं तो हम उन पर वह दबाव न डालें । कि हमें इतनी सारी संख्याओं की आवश्यकता है , ठीक है , आपका बच्चा नब्बे संख्याओं के साथ नहीं आ पा रहा है , शायद आप उसे थोड़े प्यार से समझा सकते हैं , शायद उसके पास सत्तर संख्याएँ हैं , कभी - कभी ऐसा होता है कि जिसने अध्ययन किया है वह भी अच्छा है । वह डर में रहता है और अचानक उसके दिमाग से निकल जाता है कि इस सवाल का जवाब क्या होगा , कभी - कभी पेपर उसे इतना मुश्किल लगता है कि वह पेपर ठीक से नहीं कर पाता है । यदि आप चीजों में कमजोर हैं , तो आप उसे प्रोत्साहित करते हैं , अगली बार उसके अच्छे अंक आएंगे ।

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अनुराधा श्रीवास्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि चुनावों में जो पैसा इस्तेमाल किया जाता है , जैसा कि नेता अक्सर कहते हैं , कि हमारे पार्टी फंड से होता है । चाहे वह वास्तव में जनता की ओर से दिया गया दान हो या किसी व्यवसायी की ओर से दिया गया दान , इस बारे में सोचना चाहिए क्योंकि कोई भी व्यवसायी जो दान करता है , वह बैंक खातों से गुजरता है । बैंक खाते से पार्टी फंड को देती है और पार्टी इसका इस्तेमाल करती है , लेकिन यह राशि इतनी बड़ी कैसे हो जाती है कि व्यापारी अपनी जेब से ये सारा पैसा दे देते हैं ? यह सारा पैसा अपने लाभ से दें , क्या यह संभव नहीं है , क्योंकि जो पैसा गलत तरीके से कमाया जाता है , वह गलत पक्ष को दिया जाता है । कोष में धन एकत्र किया जाता है ताकि छोटे श्रमिकों से लेकर बड़े श्रमिकों तक के टिकट खरीदे जा सकें ।