सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

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भारत में सिर्फ बच्चों में ही नहीं हर आयु वर्ग में पोषण की कमी अर्थात कुपोषण के शिकार लोग औसत से अधिक हैं। किंतु बच्चों और महिलाओं की स्थिति अधिक चिंताजनक है। सरकारी योजनाएं जब तक धरातल पर नहीं उतरतीं उसका समुचित लाभ वास्तविक हकदार लोगों को नहीं मिल पाता है तो ऐसी योजनाएं कागजों में सिमट कर रह जाती हैं। मुफ्त खाद्यान्न को अपने घरों से चुरा कर उसे बेच कर शराब पीने वाले भी इसी समाज में मौजूद हैं। वहीं दावतों में मंहगे व्यंजन बना कर उन्हें प्लेट में परोस कर डस्टबिन में फेंकने वाले भी नजर आते हैं। महिला कल्याण एवं बाल विकास विभाग की कार्यशैली से देश का हर व्यक्ति परिचित है। फिर भला यह कैसे मान लिया जाए कि सरकारें कुछ नहीं जानती हैं। अपने देश में कुपोषण की स्थिति ऐसी है कि आज भी हमारे बीच (15-49 वर्ष) पुरुष वर्ग 25.0% (15-49 वर्ष) महिलाएँ 57.0% (15-19 वर्ष) पुरुषों की किशोर आयु वर्ग में 31.1% (15-19 वर्ष) महिलाओं की किशोर जनसंख्या में 59.1% (15-49 वर्ष) गर्भवती महिलाएँ 52.2% 6 से 69 माह के बच्चों में 67.1% कुपोषित हैं। जिसका मूल कारण इतना सामान्य नहीं है कि सभी को आसानी से समझ आ जाए। इसकी असली वजह जानने के लिए हमें अपनी जड़ों को भी कुरेदना होगा। एक स्वस्थ सभ्य समाज और सामाजिक चोरों की तलाश करनी होगी। हमारे देश की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार ग्रहण करने की रेटिंग ही नहीं रखती है बस जो मिला उसे खा लिया, जबकि 39% खाद्य सुरक्षा और पोषण प्राप्त करने में अक्षम हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 55 प्रतिशत बच्चे कम वजन के है। और 55 प्रतिशत बच्चों की मौते कुपोषण के कारण होती है। यूनिसेफ और महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रकाशन-बाल संजीवनी के अनुसार कुछ और महत्वपूर्ण बिंदु भी हैं, जैसे देश के मध्यप्रदेश में देश में सर्वाधिक कम वजन के बच्चे हैं और यह स्थिति 1990 से यथावत बनी हुई है। सरकार कुपोषण दूर करने के लिए मुफ्त खाद्यान्न में फोर्टिफाइड चावल के दाने मिलाकर दे रही है। टीकाकरण आयरन फोलिक एसिड कैल्शियम की गोलियां मुफ्त दी जाती हैं। किंतु जागरूकता के अभाव में इसका लाभ अंतिम पायदान तक नहीं पहुंच रहा है।

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