बुलिंग का सामना करना कोई आसान काम नहीं होता हमारे समाज में कई ऐसे लोग हैं जो इसका शिकार है क्या आपने या आपके किसी जानने वाले ने कभी अपने जीवन में बुलिंग का सामना किया है ? आखिर क्या वजह है कि हमारे समाज में बुलिंग जैसी समस्या मौजूद है और लोग इस समस्या से जूझने के लिए मजबूर होते हैं ? अगर कोई व्यक्ति इस समस्या से जूझ रहा है तो ऐसी स्थिति में वह खुद को इससे बाहर निकालने के लिए क्या कर सकते हैं ? और बुलिंग जैसी समस्या को समाज से मिटाने के लिए सामुदायिक स्तर पर किस तरह की पहल की जा सकती ?
सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...
उत्तर प्रदेश राज्य के संत कबीर नगर जिला से के. सी. चौधरी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि देश में महिलाओं के लिए नौकरी का अवसर नही है। महिलाएं कम पैसों में जगह - जगह काम करने के लिए मजबूर हैं। सरकार की कमजोरियों के वजह से समाज के प्रत्येक महिलाओं तक शिक्षा नही पहुँच पाया है। ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का अभाव है और महिलाएँ स्कूल भी नही जा पाती हैं। प्राथमिक और जूनियर को छोड़कर, महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा के लिए बहुत दूर जाना बहुत मुश्किल है, इसलिए परिवार भी महिलाओं को शिक्षा के लिए दूर नही भेजना चाहते हैं । यही कारण है कि महिलाएं अशिक्षित हैं और नौकरी से दूर हैं।
दोस्तों, मोबाइलवाणी के अभियान क्योंकि जिंदगी जरूरी है में इस बार हम इसी मसले पर बात कर रहे हैं, जहां आपका अनुभव और राय दोनों बहुत जरूरी हैं. इसलिए हमें बताएं कि आपके क्षेत्र में बच्चों को साफ पानी किस तरह से उपलब्ध हो रहा है? क्या इसमें पंचायत, आंगनबाडी केन्द्र आदि मदद कर रहे हैं?आप अपने परिवार में बच्चों को साफ पानी कैसे उपलब्ध करवाते हैं? अगर गर्मियों में बच्चों को दूषित पानी के कारण पेचिस, दस्त, उल्टी और पेट संबंधी बीमारियां होती हैं, तो ऐसे में आप क्या करते हैं? क्या सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों से बच्चों का इलाज संभव है या फिर इलाज के लिए दूसरे शहर जाना पड रहा है? जो बच्चे स्कूल जा रहे हैं, क्या उन्हें वहां पीने का साफ पानी मिल रहा है? अगर नहीं तो वे कैसे पानी का इंतजाम करते हैं?
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संतकबीरनगरः पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की संख्या साल दर साल घटती जा रही है। पिछले साल से 28 हजार बच्चे कम हो गए है जो विभाग के लिए परेशान का सबब बन गया है।बेसिक शिक्षा परिषद के शहर से लैकर गांवों तक स्कूल हैं। कुल 1247 विद्यालयों में 4768 शिक्षक कार्यरत है। ज्यादा से ज्यादा बच्चे इन विद्यालयों में आए, इसके लिए सरकार की ओर से तमाम सहूलियतें दी जाती हैं। फिर भी बच्चों की संख्या बढ़ने की जगह कम होती जा रही है। साल प्राप्त आंकड़े के अनुसार 2022-23 में एक लाख 32 हजार थी। इस वर्ष 2023-24 में यह संख्या एक लाख चार हजार पहुंच गई है। बच्चों के नामांकन के लिए एक जुलाई से स्कूल चलो अभियान शुरू किया गया था। 15 जुलाई तक स्कूलों में बच्चों के दाखिले किए जाने थे। लेकिन वह भी पूरा नहीं हुआ। कुल एक लाख चार हजार ही पंजीकरण हो पाया। इस बारे में पूछे जाने पर बीएसए अमित कुमार सिंह ने बताया कि परिषदीय विद्यालय में बच्चों को विभिन्न तरह की सुविधाएं दी जाती है जैसे पठन पाठन की व्यवस्था नि:शुल्क होती है। मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराया जाता है। नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती है। दो जोड़ी यूनिफाॅर्म, जूते और बैग खरीदने के लिए अभिभावकों के खाते में 1200 रुपये भेजे जाते है। फिर भी बच्चों की संख्या में कमी आ रही जल्द अध्यापकों पर नकेल कसा जायेगा।
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संतकबीरनगरः सांथा विकास खण्ड क्षेत्र ग्राम पंचायत रमवापुर सरकारी प्राथमिक विद्यालय में भरा लबालब पानी कैसे होगा पठन पाठन जब विद्यालय बना तालाब जिम्मेदार अधिकारी बेपरवाह