सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

उत्तरप्रदेश राज्य के बस्ती जिला से अरविन्द श्रीवास्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि लोगों के लिए लैंगिक भेदभाव की गंभीरता को समझना बहुत महत्वपूर्ण है और यह हमारे समाज में कैसे प्रचलित है। जिसमें लिंग भेदभाव गर्भधारण से शुरू होता है और वयस्कता तक जारी रहता है। और यह भेदभाव आगे एक गंभीर रूप ले लेता है हमेशा गर्भधारण के समय लोग परीक्षण कराते हैं और लिंग का पता लगाने के बाद जो कहीं न कहीं हत्या जैसा है। किया जाता है, लेकिन अगर किसी कारण से उन्होंने पूरी तरह से हत्या नहीं की है और घर में एक बच्ची का जन्म हुआ है, तो उनका भेदभाव वहीं से शुरू होता है, जैसे समय पर भोजन की देखभाल न करना और बीमार पड़ने पर बच्चे की उचित देखभाल न करना लैंगिक भेदभाव का सबसे बड़ा कारण है।

उत्तरप्रदेश राज्य के बस्ती जिला से अरविन्द श्रीवास्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं के गर्भज में आने से पहले ही हत्या का प्रयास किया जाता है। पुरुष प्रधान देश होने के कारण लोग लड़के को लड़की से ज्यादा मान्यता देते हैं

उत्तरप्रदेश राज्य के बस्ती जिला से विजय पाल चौधरी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि शिक्षित लोग भी समाज में कुरीतियों को बढ़ावा देते हैं। ये जानते हुए भी दहेज़ प्रथा, व लैंगिक भेदभाव का साथ देते है। साथ ही उन्होंने कहा कि लड़के और लड़कियों को एक समान अधिकार मिलना चाहिए

उत्तरप्रदेश राज्य के बस्ती ज़िला से अरविन्द ,मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि महिलाएँ अपने नाम से नहीं जानी जाती है ।महिलाओं को सम्मान भी नहीं मिलता है। भ्रूण में ही महिलाओं को पनपने नहीं दिया जाता है। पैसा के दम पर लिंग जाँच करवा कर लड़कियों को मार दिया जाता है। अगर किसी कारण लड़की का जन्म होता है तो माता और बच्ची दोनों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है।

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला बस्ती से अरविन्द श्रीवास्तव , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि आज महिलाओं पर कई अत्याचार होते है। भ्रूण हत्या कर दिया जाता है , यौन शोषण होता है , बाल विवाह कर दिया जाता है , मानव तस्करी होता है , और भी कई तरीकों से महिलाओं के साथ हिंसा किया जाता है। महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता है।

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला बस्ती से अरविन्द श्रीवास्तव , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि समाज जो लड़कियों को स्वीकार नहीं करता है, यह परंपरा अभी भी चली रही है, चाहे कितना भी कार्य किया जाए या नारा दिया जाए कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, ये सभी नारे मिथ्य लगते हैं। इसका कारण यह है कि आज भी समाज में जो है वह प्रसव पूर्व परीक्षण है और बालिका को उसके जन्म से पहले ही मार दिया जाता है। लड़कों की तुलना में लड़कियों को बहुत कम देखा जाता है क्योंकि इस शिक्षित समाज में, जो अब है, लड़के और लड़की के बीच कोई अंतर नहीं है जो लगभग न के बराबर है। लेकिन जहां निरक्षरता है और जहां गरीबी है, लोग अभी भी लड़कों को प्राथमिकता देते हैं। लड़कों के बीमार पड़ने पर यह अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में देखा गया है। इसलिए उन्हें रात में या किसी भी समय तुरंत अस्पताल ले जाया जाता है। अगर उनके स्थान पर कोई लड़की है, अगर वह बीमार हो जाती है, तो उसे अस्पताल ले जाने के लिए सुबह तक प्रतीक्षा करना पड़ता है । लोग आज भी ऐसा करते हैं जिसके कारण अक्सर लड़कियों की मौत हो जाती है। यदि उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया जाता है, तो ऐसी स्थिति पैदा नहीं होती । शिक्षा के क्षेत्र में भी, लड़कियों को पाँच या आठ के बाद की स्थिति में बढ़ावा देने का विचार अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत दुर्लभ है। उनका मानना है कि घरेलू काम में लगी लड़कियों को हमेशा घर के लिए काम करने वाली माना जाता है, जबकि लड़कों को रोजी-रोटी कमाने वाला माना जाता है।

उत्तरप्रदेश राज्य के बस्ती ज़िला से विजय ,मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते है कि वर्तमान समय में भ्रूण हत्या जोरो पर है। बेटो की लालच में भ्रूण हत्या बढ़ा हुआ है। यह बहुत ही बड़ी समस्या है। बेटियों के बिना संसार की रचना सही नहीं है ,इसीलिए भ्रूण हत्या नहीं होनी चाहिए।

साल 2013-2017 के बीच विश्व में लिंग चयन के कारण 142 मिलियन लड़कियां गायब हुई जिनमें से लगभग 4.6 करोड़ लड़कियां भारत में लापता हैं। भारत में पांच साल से कम उम्र की हर नौ में से एक लड़की की मृत्यु होती है जो कि सबसे ज्यादा है। इस रिपोर्ट में एक अध्ययन को आधार बनाते हुए भारत के संदर्भ में यह जानकारी दी गई कि प्रति 1000 लड़कियों पर 13.5 प्रति लड़कियों की मौत प्रसव से पहले ही हो गई। इस रिपोर्ट में प्रकाशित किए गए सभी आंकड़े तो इस बात का प्रमाण है कि नई-नई तकनीकें, तकनीकों में उन्नति और देश की प्रति व्यक्ति आय भी सामाजिक हालातों को नहीं सुधार पा रही हैं । लड़कियों के गायब होने की संख्या, जन्म से पहले उनकी मृत्यु भी कन्या भ्रूण हत्या के साफ संकेत दे रही है। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- आखिर हमारा समाज महिला के जन्म को क्यों नहीं स्वीकार पाता है ? *----- शिक्षित और विकसित होने के बाद भी भ्रूण हत्या क्यों हो रही है ? *----- और इस लोकसभा चुनाव में महिलाओ से जुड़े मुद्दे , क्या आपके लिए मुद्दा बन सकता है ??

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला बस्ती से रमजान अली , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि बेटों की इच्छा में अक्सर यह देखा जाता है कि महिलाओं के सामाजिक और विकसित जीवन से महिलाओं का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है। इससे भी बदतर, कई मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसी महिलाएं लंबे समय तक पिछले दुर्व्यवहार का शिकार हो जाती हैं, खुद को दोषी मानना शुरू कर देती हैं। ऐसा लग रहा था कि इससे अंधविश्वास भी बढ़ेगा।