आपका पैसा आपकी ताकत की आज की कड़ी में हम सुनेंगे अपने श्रोताओं की राय

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

आपका पैसा आपकी ताकत की आज की कड़ी में हम जानेंगे एसएचजी यानि की स्वयं सहायता समुह से जुड़ने के क्या फायदे हैं और इससे जुड़ कर कैसे आप अपने जीवन में बदलाव ला सकते हैं।

प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार दोनों के नेता यह दावा करते हैं कि उनकी सरकार ने घर-घर गैस सिलेंडर पहुंच कर महिलाओं को धुएं से निजात दिला दी परंतु यह दवा गांव में कहीं भी खुश होता देखा जा सकता है गांव में आज भी सैकड़ो घरों में उपले या लड़कियों से खाना बनता है क्योंकि गैस सिलेंडर इतना महंगा है कि हर व्यक्ति हर महीने नहीं भर सकता।

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राजधानी के विकासखंड माल की ग्राम पंचायत गोपालपुर के निवासी रमेश सिंह देसी और जर्सी नस्ल की 25 गायें पाल रखे हैं जिनको वह रोज सुबह 10बजे गांव से 3 किमी0 दूर सस्पन पुलिया तक ले जाते हैं और चराते हुए 4 बजे तक वापस घर ले आते हैं।60 वर्ष की उम्र में यह इनकी दिन चर्या है।

गरीबों के लिए कोई भी मौसम आरामदायक या सुविधाजनक नहीं होता है क्योंकि इस मौसम में सबसे अधिक परेशानी गरीबों को ही होती है क्योंकि उनको अपनी जान बचाने के लिए आग का ही सहारा होता है।

इसके बरक्स एक और सवल उठता है कि क्या सरकारें चाहती हैं कि वह लोगों का खाने-पीने और पहनने सहित सामान्य जीवन के तौर तरीकों को भी तय करें? या फिर इस व्यवसाय को एक धार्मिक समुदाय को निशाना बनाने के लिए इस तरह के आदेश जारी किये जा रहे हैं। सरकार ने इस आदेश को जारी करते हुए इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि उसके एक आदेश से कितने लोगों की रोजी रोटी पर असर पड़ेगा

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