समाज में महिलाओं के साथ हो रही दुर्व्यवहार के बारे में बातचीत करते हुए वह अपनी जमीन अपनी आवाज पर भी बातचीत करते हुए

जमीन में महिलाओं को हिस्सा न मिलने पर बातचीत करते हुए

बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ प्रधानमंत्री की एक कल्याणकारी योजना है जो अच्छी तरह से और सुचारू रूप से चल रही है। लोगों को अपनी बेटियों को भी अच्छी तरह से शिक्षित करना चाहिए। कुछ लोग हैं जो कहते हैं कि नई बेटियों को कम पढ़ाया जाना चाहिए, हम अपने बेटे को बढ़ावा देंगे। अगर बेटी पढ़ती है तो वह भविष्य में मां बनेगी। वह भी एक बच्चे को जन्म देगी, तभी वह अपने बच्चों को पढ़ा पाएगी, नहीं तो वह पढ़ नहीं पाएगी, तो वह बच्चों को क्या सिखाएगी। बेटी होने पर उनकी अच्छी तरह से देखभाल की जा सकती है

महिलाओं के पास भी अपनी सम्पत्ति होनी चाहिए जिससे उनका कोई शोषण न कर सके। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को बहुत कम अधिकार हैं। अधिकार हैं, लैंगिक असमानता मुख्य कारण है, भूमि और प्रकृति संसाधनों के समान अधिकारों के बिना लैंगिक समानता हासिल नहीं की जा सकती है, आज भी हमारा समाज पुरुष प्रधान है, आज भी हमारा समाज पुरुष प्रधान है। इसके अलावा, अपने पिता या पति की पहचान करना बहुत महत्वपूर्ण है, पति या पिता के नाम के बिना, महिला समाज एक महिला को स्वीकार नहीं करता है। जो आज भी हमारे रीति-रिवाजों और कानूनों को अधिकार देगा, वह महिलाओं को अधिकार देने में संकोच करता है। समाज में महिलाओं का काम सिर्फ घर चलाना है, बच्चे का जन्म सिर्फ दो काम हैं जिन्हें अधिक शुद्धता दी जाती है और समाज में एक महिला समाज से अधिक घृणित है।

सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

उत्तरप्रदेश राज्य से पूनम वर्मा ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि आजकल महिलाओं की पहचान इतनी बढ़ गई है कि महिलाएं हर चीज में आगे हैं। मान लीजिए कि डी. डी. एस. का कोई पद चल रहा है, उसमें एक फॉर्म भरा जा रहा है, जिसमें मुखिया का नाम केवल महिला है, कार्ड उनके नाम से भरना है, उनका आधार मोबाइल लगता है। वह अपने पति से आगे रहती है और जन्म तिथि से पहले महिला का नाम लिखा जाता है, उसके बाद वह क्या करना चाहती है, वह कितना पढ़ती है, यह भी लिखा जाता है।

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Transcript Unavailable.

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बच्चे और महिलाओं को जागरुक करते हैं और मानव तस्करी से बचाने का उपाय बताते हैं।