गुरुग्राम से नंद किशोर साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि कोई भी कामगार अपने गृहराज्य से बाहर काम की तलाश में तभी जाते हैं, जब उन्हें वहाँ काम नहीं मिलता। इस कोरोना-संक्रमण के बाद अधिकांश कामगार अब अपने गृहराज्य में ही रोज़गार तलाश रहे हैं और काम न मिलने की स्थिति में ही बाहर जाना चाहते हैं। अपने गृहराज्य से बाहर जाकर काम करने वाले प्रवासी कामगार सबसे अधिक उत्तर प्रदेश और बिहार से होते हैं। इस लॉक डाउन में काम बंद होने के बाद उनके वापस आने पर अधिकांश राज्य सरकारें उन्हें कुशल, अर्धकुशल और अकुशल श्रेणियों में बाँटकर उनका पंजीकरण कर उन्हें गृहराज्य में ही रोज़गार मुहैया कराने की कोशिश कर रही हैं और इसमें सबसे अधिक सहायक हुआ है मनरेगा। इसके साथ ही सरकार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों में भी इन्हें समायोजित करने का प्रयास भी कर रही है। इन तमाम प्रयासों के बावजूद ऐसा लग रहा है कि कामगारों को उनकी योग्यता के अनुसार पारिश्रमिक नहीं मिल पाएगा और इस स्थिति में वे अपनी मेहनत के पारिश्रमिक के लिए मोल-टोल के अवसर भी खो देंगे। लॉक डाउन के बाद वापस लौट रहे प्रवासी कामगारों की सुविधाओं का पहले से बेहतर ध्यान कम्पनियाँ रख रही हैं, जो एक शुभ संकेत है।